हरिद्वार: करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र मां गंगा का पानी हरिद्वार में आचमन करने लायक भी नहीं है. ये दावा किसी और का नहीं, बल्कि हर महीने गंगा के पानी की गुणवत्ता को लेकर जांच करने वाले उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने किया है. गंगा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की नवंबर महीने की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है. हालांकि रिपोर्ट में एक बात ये अच्छी कही गई है कि गंगा का पानी पीने लायक भले ही न हो, लेकिन स्नान करने लायक जरूर है.
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी राजेंद्र सिंह के अनुसार उन्होंने हरिद्वार के ऊपर और नीचे यानी यूपी बॉर्डर तक करीब आठ जगहों पर गंगा के पानी की हर महीने जांच करती है. जांच का डाटा देखा तो एक बात साफ होती है कि हरिद्वार में गंगा के पानी की क्वालिटी B क्लास की है. क्योंकि हरिद्वार में घुलनशील अपशिष्ट (फेकल कोलीफॉर्म) और घुलनशील ऑक्सीजन (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) का स्तर मानक से अधिक मिला है. नहाने योग्य नदी जल के लिए ऑक्सीजन का मानक पांच मिली ग्राम प्रति लीटर होता है.
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक गंगा में मिलने वाला कॉलीफॉर्म 120 एमपीएन तक है. यानी गंगा का जल नहाने योग्य है, लेकिन पीने योग्य नहीं है. उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एक और बड़ा दावा किया है. उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक गंगा की हालत में पिछले पांच सालों से अंदर काफी सुधार हुआ है. यानी में प्रदूषण बढ़ने के बजाए कम हुआ है.
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी राजेंद्र सिंह की मानें तो पांच साल पहले गंगा में मिलने वाले बैक्टीरिया और एमपीएन की मात्रा 500 से अधिक पहुंच गई थी. इस कारण गंगा का पानी सी क्लॉस में चला गया था. गंगा प्रदूषण मुक्त करने के जो प्रयास किए गए, ये उसी का नतीजा है कि आज गंगा का पानी सी से बी क्लॉस में आ गया है. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि पांच साल पहले जो पानी नहाने लायक भी नहीं था, वो पानी इतना तो साफ हो गया है कि आज उसमें स्नान किया जा सके.
क्षेत्रीय अधिकारी राजेंद्र सिंह ने दावा किया है कि उनकी टीम लगातार गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के प्रयास में लगी हुई है. हरिद्वार में जिन जगहों से यह सैंपल लिए गए हैं, उनमें हरकी पौड़ी क्षेत्र के साथ-साथ सप्त ऋषि, रंजीतपुर और सुल्तानपुर के अलावा अन्य स्थान मौजूद हैं.
पढ़ें--