गया : कारगिल युद्ध के नायक परमबीर विक्रम बत्रा के शहादत की गया ओटीए में 25वीं वर्षगांठ मनाई गई. विक्रम बत्रा के सर्वोच्च बलिदान को याद कर लोगों की आंखें छलक आईं. इस कार्यक्रम में शहीद विक्रम बत्रा के पिता गिरधारी लाल बत्रा और जुड़वा भाई विशाल बत्रा भी मौजूद थे. कारगिल युवक के दौरान विक्रम बत्रा के कमांडर कमांडिंग ऑफिसर रहे वाईके जोशी ने भी उनकी बहादुरी को लोगों के बीच साझा किया.
1999 में हुआ था कारगिल युद्ध : जून 1999 में कारगिल की सबसे ऊंची चोटी प्वाइंट 5140 पर पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कब्जा कर लिया. देश के सामने सबसे ऊंची चोटी पर दुश्मन चुनौती बनकर बैठा था, तो हाड़ जमा देने वाली ठंड और कम ऑक्सीजन लेवल भी चुनौती थी. सभी चुनौतियों को भेदकर कैप्टन बत्रा और उनके जांबाज सैनिकों ने पॉइंट 5140 पर तिरंगा फहरा दिया.
'जब कैप्टन ने कहा था.. ये दिल मांगे मोर' : विक्रम बत्रा के तत्कालीन कमांडिंग ऑफिसर वाईके जोशी ने कहा कि विक्रम बत्रा के नाम से पाकिस्तानी घुसपैठिए कांपते थे. पॉइन्ट 5140 पर तिरंगा फहराना विक्रम बत्रा जैसे जांबाज की सर्वोच्च शहादत का नतीजा था. 'ऑपरेशन विजय' के दौरान ऐसी कई चोटियों पर विजय पाई और दुश्मनों को खदेड़कर दम लिया. पॉइंट 5140 पर तिरंगा लहराने के बाद उन्होंने अपने कमांडिंग ऑफिसर को मैसेज किया, हमें दूसरा टास्क दें क्योंकि 'ये दिल मांगे मोर'. कैप्टन का ये विजयघोष पूरे देश में गूंज उठा.
परमवीर विक्रम बनने की कहानी : 7 जुलाई को प्वाइंट 5140 पर विक्रम बत्रा अपने सहयोगियों को बचा रहे थे तभी एक गोली सीने में लगी और लहुलुहान हो गए. ऐसे जख्मी हालत में भी उन्होंने 5 पाकिस्तानी घुसपैठियों को जहन्नुम पहुंचाया. महज 25 वर्ष की आयु में विक्रम बत्रा का यह सर्वोच्च बलिदान और उनकी बहादुरी-जांबाजी की कहानी युगों युगों तक याद रखी जाएगी. चोटियों पर विजय पाने के बाद विक्रम बत्रा ने संदेश दिया था 'ये दिल मांगे मोर'. उनके इसी सर्वोच्च बलिदान पर उन्हें भारतीय सेना में वीरता का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा गया.
''कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन विक्रम बत्रा 13वीं जम्मू कश्मीर राइफल की डेल्टा कंपनी के कप्तान थे. पाकिस्तानियों की घुसपैठी कारगिल युद्ध का कारण बनी थी. नियंत्रण रेखा पर यह घुसपैठी हुई थी. यह वह स्थान था, जहां कई हजार फीट ऊंची चोटियां थीं. तापमान लुढ़ककर -60 डिग्री पर था. पहले मौसम से लड़ना था और उसके बाद दुश्मनों तक पहुंचना था. हमने रणनीति बनाई. कारगिल वार को लेकर 'ऑपरेशन विजय' चलाया. 14 हजार से लेकर 18 हजार फीट की ऊंची चोटियों पर दुश्मन थे. ऑक्सीजन की कमी थी. मूवमेंट स्लो होता था. ऐसे ही इलाके में विक्रम बत्रा जैसे जांबाज कैप्टन ने जो बहादुरी दिखाई और हम कारगिल वार के 'ऑपरेशन विजय' में सफल रहे.''-वाईके जोशी, विक्रम बत्रा के तत्कालीन कमांडिंग ऑफिसर
'तिरंगा फहराकर आउंगा या लिपटकर' : वहीं, कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता गिरधारी लाल बत्रा ने कहा कि 25 वर्ष पहले नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तानियों ने घुसपैठ किया था. कारगिल युद्ध में विक्रम बत्रा की वीरता और बलिदान की गाथा सुनहरे पन्ने में अंकित है. 1999 में कारगिल युद्ध को लेकर 'ऑपरेशन विजय' चला था. इसमें अदम्य साहस के बीच विक्रम बत्रा चुनौती वाली कई चोटियों को जीतने के बाद शहीद हो गए थे.
''विक्रम बत्रा का सर्वोच्च बलिदान अमर है. मुझे गर्व है, कि मैं विक्रम बत्रा का पिता हूं. जब विक्रम बत्रा 'ऑपरेशन विजय' पर जा रहे थे तो कहा था, तिरंगा फहराकर आऊंगा या फिर तिरंगे में लिपट कर आऊंगा. विक्रम बत्रा जैसी शख्सियत एक समय बाद जन्म लेती है.''- गिरधारी लाल बत्रा, विक्रम बत्रा के पिता
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