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मृत शरीर किसी और के काम आ सके...ग्रामीणों में ऐसी भावना, 185 लोगों ने किया देहदान - Body Donation

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jul 1, 2024, 10:32 PM IST

Karnataka Villagers Donated Their Bodies in Belagavi: कर्नाटक के एक गांव में करीब 185 ग्रामीणों ने मेडिकल छात्रों के लिए देहदान किया, जिनमें से 17 लोगों की मौत हो चुकी है और उनकी डेड बॉडी मेडिकल कॉलेजों को रिसर्च के लिए सौंपी जा चुकी है. युवा और महिलाएं भी देहदान करने के लिए आगे आ रहे हैं.

Karnataka Villagers Donated Their Bodies in Belagavi
कर्नाटक में एक गांव के 185 ग्रामीणों ने मेडिकल छात्रों के लिए देहदान किया (ETV Bharat)

बेलगावी: कर्नाटक के एक गांव में देहदान कर मिसाल पेश की है. गांव के करीब 185 लोगों ने मेडिकल छात्रों की मदद के लिए देहदान किया. उनके इस कदम की हर कोई सराहना कर रहा है. बेलगावी जिले के इस गांव का नाम 'शेगुनासी' (Shegunasi) है. यहां के ज्यादातर ग्रामीण मेडिकल कॉलेजों को देहदान कर देते हैं. अब तक 185 लोग देहदान के लिए राजी हो चुके हैं, जिनमें से 17 लोगों की मौत हो चुकी है और उनकी डेड बॉडी मेडिकल कॉलेजों को रिसर्च के लिए सौंपी जा चुकी है. खास बात यह है कि युवा और महिलाएं भी देहदान करने के लिए आगे आ रहे हैं.

शेगुनासी गांव के निवासी मंतेश सिद्धाना ने बताया कि गांव में वर्ष 2010 में एक संस्था द्वारा योगाभ्यास शिविर का आयोजन किया गया था. इस कार्यक्रम में डॉक्टर महांतेश रामनवर आए थे और उन्होंने लोगों को देहदान के प्रति जागरूक किया. इस जागरुकता के बाद 108 लोगों ने मौके पर ही स्वेच्छा से देहदान के लिए पंजीकरण कराया. हमने यह निर्णय इस उद्देश्य से लिया है कि मृत्यु के बाद शव राख में तब्दील न हो, बल्कि दूसरों के काम आए. गांव के कई लोग पहले ही देहदान कर चुके हैं. ग्रामीण ने कहा कि यहां जाति-पाति का कोई भेदभाव नहीं है. अभी तक कोई विरोध नहीं हुआ है. हम पूजा-पाठ करने के बाद शवों को सौंप देते हैं. हमारी एकमात्र उम्मीद यही है कि मृत देह किसी और के काम आ सके.

डॉ. महंतेश रामनवर ने कहा कि हमारे पिता बसवण्यप्पा भी दंत चिकित्सक थे. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया था, जब 13 नवंबर 2008 को मेरे पिता का निधन हुआ, तो उनकी इच्छा के अनुसार उनका मृत देह केएलई संस्था को दान कर दिया गया. दो साल बाद मैंने अपने पिता के देह का चीर-फाड़ करके और मेडिकल छात्रों को शरीर अंगों के बारे में पढ़ाकर पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया. इससे कई लोग देहदान करने के लिए आगे आए हैं. दूसरी जगहों पर भी कई लोग देहदान कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि देहदान के प्रति जागरुकता के बाद केएलई संस्था में 5,000 से अधिक लोग पंजीकरण करा चुके हैं और 200 से अधिक शव दान के रूप में प्राप्त हो चुके हैं.

डॉ. महंतेश ने कहा कि देहदान के बाद छात्र दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि देते हैं और फिर शाव का चीर-फाड़ करके अध्ययन करते हैं. शवों को बेलगावी से राज्य के कई मेडिलक कॉलेजों में भेजा गया है. उन्होंने कहा कि शेगुनासी गांव में 185 लोग पहले ही पंजीकरण करा चुके हैं और देश में सबसे अधिक देहदान करने वाले यहीं पर हैं. इसके अलावा, महालिंगपुरा में 100 लोगों ने देहदान के लिए पंजीकरण कराया है. यहां देहदान करने वालों की संख्या सबसे अधिक है. गांव-गांव में लोग देहदान के लिए आगे आ रहे हैं.

यह भी पढ़ें- मिलिए कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. नीलेश मेहता से, जो टी20 वर्ल्ड कप के दौरान क्रिकेट पत्रकार बने

बेलगावी: कर्नाटक के एक गांव में देहदान कर मिसाल पेश की है. गांव के करीब 185 लोगों ने मेडिकल छात्रों की मदद के लिए देहदान किया. उनके इस कदम की हर कोई सराहना कर रहा है. बेलगावी जिले के इस गांव का नाम 'शेगुनासी' (Shegunasi) है. यहां के ज्यादातर ग्रामीण मेडिकल कॉलेजों को देहदान कर देते हैं. अब तक 185 लोग देहदान के लिए राजी हो चुके हैं, जिनमें से 17 लोगों की मौत हो चुकी है और उनकी डेड बॉडी मेडिकल कॉलेजों को रिसर्च के लिए सौंपी जा चुकी है. खास बात यह है कि युवा और महिलाएं भी देहदान करने के लिए आगे आ रहे हैं.

शेगुनासी गांव के निवासी मंतेश सिद्धाना ने बताया कि गांव में वर्ष 2010 में एक संस्था द्वारा योगाभ्यास शिविर का आयोजन किया गया था. इस कार्यक्रम में डॉक्टर महांतेश रामनवर आए थे और उन्होंने लोगों को देहदान के प्रति जागरूक किया. इस जागरुकता के बाद 108 लोगों ने मौके पर ही स्वेच्छा से देहदान के लिए पंजीकरण कराया. हमने यह निर्णय इस उद्देश्य से लिया है कि मृत्यु के बाद शव राख में तब्दील न हो, बल्कि दूसरों के काम आए. गांव के कई लोग पहले ही देहदान कर चुके हैं. ग्रामीण ने कहा कि यहां जाति-पाति का कोई भेदभाव नहीं है. अभी तक कोई विरोध नहीं हुआ है. हम पूजा-पाठ करने के बाद शवों को सौंप देते हैं. हमारी एकमात्र उम्मीद यही है कि मृत देह किसी और के काम आ सके.

डॉ. महंतेश रामनवर ने कहा कि हमारे पिता बसवण्यप्पा भी दंत चिकित्सक थे. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया था, जब 13 नवंबर 2008 को मेरे पिता का निधन हुआ, तो उनकी इच्छा के अनुसार उनका मृत देह केएलई संस्था को दान कर दिया गया. दो साल बाद मैंने अपने पिता के देह का चीर-फाड़ करके और मेडिकल छात्रों को शरीर अंगों के बारे में पढ़ाकर पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया. इससे कई लोग देहदान करने के लिए आगे आए हैं. दूसरी जगहों पर भी कई लोग देहदान कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि देहदान के प्रति जागरुकता के बाद केएलई संस्था में 5,000 से अधिक लोग पंजीकरण करा चुके हैं और 200 से अधिक शव दान के रूप में प्राप्त हो चुके हैं.

डॉ. महंतेश ने कहा कि देहदान के बाद छात्र दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि देते हैं और फिर शाव का चीर-फाड़ करके अध्ययन करते हैं. शवों को बेलगावी से राज्य के कई मेडिलक कॉलेजों में भेजा गया है. उन्होंने कहा कि शेगुनासी गांव में 185 लोग पहले ही पंजीकरण करा चुके हैं और देश में सबसे अधिक देहदान करने वाले यहीं पर हैं. इसके अलावा, महालिंगपुरा में 100 लोगों ने देहदान के लिए पंजीकरण कराया है. यहां देहदान करने वालों की संख्या सबसे अधिक है. गांव-गांव में लोग देहदान के लिए आगे आ रहे हैं.

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