हजारीबाग: देश आजादी का जश्न मना रहा है. आजादी के इस जश्न में देश उन वीर बांकुरों को भी नमन कर रहा है जिन्होंने देश की आजादी में अहम भूमिका निभाई. झारखंड का हजारीबाग वीरों की धरती कहलाती है. आजादी की लड़ाई में इस धरती से सैकड़ों लोगों ने अपनी सहभागिता निभाई है. हजारीबाग के कटकमसांडी प्रखंड का पबरा गांव ऐसा ही एक गांव है, जहां के 17 लोगों ने आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी. इन सभी को अंग्रेजों ने जेल में डाल दिया था. क्योंकि आजादी की लड़ाई में इनकी भूमिका बेहद महत्व रखती थी. ये सभी 17 लोग महात्मा गांधी के अनुयायी थे. इन्होंने गांधीवादी मार्ग पर चलते हुए अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए. आज इनके परिवार को इस बात पर गर्व है कि ये उन सेनानियों के वंशज हैं जिन्होंने अंग्रेजों को पानी पिला दी थी.
हजारीबाग के कटकमसांडी प्रखंड के पबरा पंचायत सचिवालय में स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर बना पट्ट इस बात का प्रतीक है कि ये गांव कोई साधारण गांव नहीं बल्कि पूरे सूबे में देशभक्ति का संदेश फैलाने वाला गांव है. इस गांव के 17 स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी थी. जिसमें स्व बालदेव महतो, बैजनाथ महतो, बंशी महतो, किशोरी नंदन महतो, रामेश्वर महतो, वज्जिर महतो, नामधारी महतो, गणपत महतो, कंचन महतो, टेकलाल महतो, बढ़न महतो, प्रमेश्वर दयाल महतो, रूपलाल महतो, बचन महतो, गौरी महतो, बचन महतो व चेतलाल महतो शामिल थे. आज उनके वंशजों को बहुत गर्व महसूस होता है कि वे देश की सेवा करने वालों के वंशज हैं. आज उनका परिवार भी देश सेवा के लिए तत्पर है.
बक्सर जेल में बंद थे बंशी महतो और कंचन महतो
स्वतंत्रता सेनानी दिवंगत बालदेव महतो के परिजन सेवानिवृत्त शिक्षक शिवकुमार महतो बताते हैं कि इस गांव के 17 लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में देश की सेवा की थी. अंग्रेजों ने सभी को जेल में डाल दिया था. बंशी महतो और कंचन महतो बक्सर जेल में बंद थे. कंचन महतो की मौत बक्सर जेल में ही हुई थी. ऐसे कई स्वतंत्रता सेनानी हैं, जिन्हें लगातार 1 साल तक जेल में रहना पड़ा, क्योंकि अंग्रेजी हुकूमत भी उनसे थर्राती थी.
वे यह भी कहते हैं कि इस गांव में आपसी एकता ऐसी है कि अगर एक व्यक्ति किसी के खिलाफ खड़ा होता है, तो पूरा गांव उसका साथ देता है. यही वजह है कि जब बलदेव महतो ने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद की, तो उनके साथ 17 लोग खड़े हो गए. इस कारण इसे आजादी के मतवालों का गांव कहा जाता है.
स्वतंत्रता सेनानी दिवंगत बैजनाथ महतो के वंशज आशीष कुमार कहते हैं कि हमारे लिए यह गांव किसी मंदिर से कम नहीं है. इस गांव के लोगों ने देश की सेवा की है. आज उनकी याद में पंचायत भवन में पट्ट लगाया गया है. 15 अगस्त और 26 जनवरी को गांव में विशेष कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं. जिसमें गांव के लोग उन शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं और नमन करते हैं.
सीमा पर जाकर देश की सेवा करें बच्चे
वहीं स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय बंशी महतो की बहू रेखा रानी कहती हैं कि आज इस बात को लेकर उनका सीना चौड़ा है कि वह एक ऐसे परिवार की बहू हैं जिसने देश की सेवा की है. उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने जो जानकारी दी है, उसे अब हम अपने बच्चों को दे रहे हैं. ताकि बच्चे भी जान सकें कि उनके परिवार के सदस्यों ने देश की सेवा ही सबसे अहम माना है.
वह यह भी कहती हैं कि घर के बच्चे सीमा पर जाकर देश की रक्षा करें. क्योंकि इस गांव के पूर्वजों ने देश के लिए अपना बलिदान दिया है. अब आज के युवाओं को उनके बलिदान को सार्थक करना है. उन्होंने यह भी बताया कि जब भी कोई आयोजन होता है तो परिवार के सदस्यों को विशेष स्थान मिलता है और उस समय उन्हें बेहद खुशी मिलती है.
'गांव का हो विकास'
स्वतंत्रता सेनानी के वंशज ईश्वर प्रसाद महतो कहते हैं कि इस गांव ने देश को बहुत कुछ दिया है. उन्हें इस बात पर गर्व भी है कि वह एक स्वतंत्रता सेनानी के वंशज हैं. लेकिन उन्हें इस बात का दुख भी है कि इस गांव का विकास नहीं हो सका. स्थानीय जनप्रतिनिधि और सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है. जिस सड़क से स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजों को चुनौती देते थे, उसकी हालत बेहद खराब है. प्रशासन को कम से कम सड़क का निर्माण तो करवाना चाहिए. साथ ही सभी 17 स्वतंत्रता सेनानियों की जीवनी को उनकी स्मृति में प्रदर्शित करने की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी उन्हें समझ सके.
पबरा गांव आजादी के दीवानों का गांव है. यही कारण है कि आजादी के सात दशक से अधिक समय बाद भी यहां के लोग देश की सेवा के लिए तत्पर रहते हैं. स्थानीय लोग अपनी क्षमता के अनुसार समाज के लिए कुछ कर गुजरने की सोच रखते हैं.
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