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तलाक मामले में पत्नी को पति की आय का 10 प्रतिशत गुजारा भत्ता देना अधिक नहीं माना जाएगा: हाई कोर्ट

Karnataka High Court : कर्नाटक हाई कोर्ट ने तलाक के एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा है कि पत्नी को पति की आयु का 10 प्रतिशत गुजारा भत्ता देना अधिक नहीं माना जाएगा. पढ़िए पूरी खबर...

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 31, 2024, 9:20 PM IST

बेंगलुरु: कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा है कि तलाक के मामलों में पत्नी को पति की आय का 10 प्रतिशत गुजारा भत्ता देना अत्यधिक नहीं माना जाएगा. न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने बेंगलुरु के एक निवासी द्वारा अपनी तलाकशुदा पत्नी को 60,000 गुजारा भत्ता देने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के बाद यह आदेश पारित किया. कोर्ट ने पति की दलील खारिज कर दी और कहा कि पति की हर महीने 7 लाख रुपये की आय है. एक गृहिणी पत्नी को 60,000 रुपये का गुजारा भत्ता उसकी आय का केवल 10 प्रतिशत होगा.

पीठ ने कहा, इसलिए ट्रायल कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करना अनावश्यक है. हलफनामे के मुताबिक, पति सालाना 87 लाख रुपये कमाते हैं. पारिवारिक अदालत ने अपने आदेश में कहा कि यह लगभग 7 लाख रुपये प्रति माह है और तथ्य यह है कि पत्नी एक गृहिणी है और उसकी कोई स्वतंत्र आय नहीं है. साथ ही पत्नी की मानसिक स्थिति का भी इलाज कराना होगा. इसके लिए बड़ी रकम खर्च करनी पड़ती है. इस पर हाई कोर्ट ने कहा, इसलिए ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश उचित है. साथ ही, पत्नी मानसिक रूप से बीमार है और उसे अवसाद के इलाज की जरूरत है. पत्नी को आवश्यक गुजारा भत्ता देना पति का कर्तव्य है.

मौजूदा मामले में पति की कमाई 7 लाख रुपये प्रति माह है. अदालत ने फैसला सुनाया कि पति ऐसी स्थिति में नहीं है जहां अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देना संभव नहीं है, इसके साथ ही कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी. मामले में इस जोड़े की शादी अप्रैल 2002 में हुई और 14 साल बाद उनके रिश्ते में खटास आ गई. 2016 में पत्नी डिप्रेशन में आ गई और उसकी मानसिक बीमारी का इलाज मनोचिकित्सक से कराना पड़ा. इस बीच 2022 में याचिकाकर्ता (पति) ने तलाक के लिए अर्जी दायर की. उसी वर्ष, पत्नी ने पारिवारिक अदालत में शादी को रद्द करने की मांग करते हुए एक याचिका दायर की.

आवेदन के संबंध में प्रमाणपत्र जमा करने वाले पति ने बताया था कि उनकी संपत्ति और सालाना आय 83 लाख रुपये तक है. इसके अलावा, पत्नी, जिसने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत आवेदन किया था, ने कहा कि उसके पति के पास बड़ी मात्रा में संपत्ति है. साथ ही आय प्रति माह 5 लाख रुपये तक की है. इसलिए उन्होंने मांग की कि 1.5 लाख रुपये मासिक गुजारा भत्ता दिया जाए. ट्रायल कोर्ट, जिसने मामले की दलीलें और बचाव सुना था, पति को हर महीने की 7 तारीख को अपनी पत्नी को 60,000 रुपये का गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था. इसके बाद पति ने इस पर सवाल उठाते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. मुकदमे के दौरान याचिकाकर्ता (पति) के वकील ने कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई गुजारा भत्ता राशि अधिक है और उसकी पत्नी मानसिक रूप से बीमार है. इस पैसे का इस्तेमाल पत्नी या पत्नी के लिए नहीं किया जा सकता है. लेकिन उस पैसे का उपयोग दूसरे लोग करते हैं और उन्होंने इस राशि को घटाकर 30 हजार रुपये करने का अनुरोध किया था.

ये भी पढ़ें - एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा: SC ने कहा-राजनीतिक हस्तियों पर टिप्पणी नहीं करें

बेंगलुरु: कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा है कि तलाक के मामलों में पत्नी को पति की आय का 10 प्रतिशत गुजारा भत्ता देना अत्यधिक नहीं माना जाएगा. न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने बेंगलुरु के एक निवासी द्वारा अपनी तलाकशुदा पत्नी को 60,000 गुजारा भत्ता देने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के बाद यह आदेश पारित किया. कोर्ट ने पति की दलील खारिज कर दी और कहा कि पति की हर महीने 7 लाख रुपये की आय है. एक गृहिणी पत्नी को 60,000 रुपये का गुजारा भत्ता उसकी आय का केवल 10 प्रतिशत होगा.

पीठ ने कहा, इसलिए ट्रायल कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करना अनावश्यक है. हलफनामे के मुताबिक, पति सालाना 87 लाख रुपये कमाते हैं. पारिवारिक अदालत ने अपने आदेश में कहा कि यह लगभग 7 लाख रुपये प्रति माह है और तथ्य यह है कि पत्नी एक गृहिणी है और उसकी कोई स्वतंत्र आय नहीं है. साथ ही पत्नी की मानसिक स्थिति का भी इलाज कराना होगा. इसके लिए बड़ी रकम खर्च करनी पड़ती है. इस पर हाई कोर्ट ने कहा, इसलिए ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश उचित है. साथ ही, पत्नी मानसिक रूप से बीमार है और उसे अवसाद के इलाज की जरूरत है. पत्नी को आवश्यक गुजारा भत्ता देना पति का कर्तव्य है.

मौजूदा मामले में पति की कमाई 7 लाख रुपये प्रति माह है. अदालत ने फैसला सुनाया कि पति ऐसी स्थिति में नहीं है जहां अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देना संभव नहीं है, इसके साथ ही कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी. मामले में इस जोड़े की शादी अप्रैल 2002 में हुई और 14 साल बाद उनके रिश्ते में खटास आ गई. 2016 में पत्नी डिप्रेशन में आ गई और उसकी मानसिक बीमारी का इलाज मनोचिकित्सक से कराना पड़ा. इस बीच 2022 में याचिकाकर्ता (पति) ने तलाक के लिए अर्जी दायर की. उसी वर्ष, पत्नी ने पारिवारिक अदालत में शादी को रद्द करने की मांग करते हुए एक याचिका दायर की.

आवेदन के संबंध में प्रमाणपत्र जमा करने वाले पति ने बताया था कि उनकी संपत्ति और सालाना आय 83 लाख रुपये तक है. इसके अलावा, पत्नी, जिसने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत आवेदन किया था, ने कहा कि उसके पति के पास बड़ी मात्रा में संपत्ति है. साथ ही आय प्रति माह 5 लाख रुपये तक की है. इसलिए उन्होंने मांग की कि 1.5 लाख रुपये मासिक गुजारा भत्ता दिया जाए. ट्रायल कोर्ट, जिसने मामले की दलीलें और बचाव सुना था, पति को हर महीने की 7 तारीख को अपनी पत्नी को 60,000 रुपये का गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था. इसके बाद पति ने इस पर सवाल उठाते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. मुकदमे के दौरान याचिकाकर्ता (पति) के वकील ने कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई गुजारा भत्ता राशि अधिक है और उसकी पत्नी मानसिक रूप से बीमार है. इस पैसे का इस्तेमाल पत्नी या पत्नी के लिए नहीं किया जा सकता है. लेकिन उस पैसे का उपयोग दूसरे लोग करते हैं और उन्होंने इस राशि को घटाकर 30 हजार रुपये करने का अनुरोध किया था.

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