हैदराबाद: एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण से पता चला है कि 90 फीसदी से ज्यादा आबादी इस बात से चिंतित है कि ग्लोबल वार्मिंग भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा बन रही है. सर्वेक्षण में भाग लेने वाले कई लोगों ने कहा कि बाढ़, सूखा, ओलावृष्टि, पानी की गंभीर कमी, प्रदूषण, जानवरों की बीमारियां, अत्यधिक बारिश और सूखा ये सब गर्मी के कारण हो रहे हैं.
उनका मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों का उपयोग किया जाना चाहिए और कार्बन उत्सर्जन को शून्य तक कम किया जाना चाहिए. उन्होंने 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य तक कम करने के सरकार के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए त्वरित कदम उठाने को कहा. येल प्रोग्राम ऑन क्लाइमेट चेंज कम्युनिकेशन और सीटर इंटरनेशनल ने संयुक्त रूप से अमेरिका में 'क्लाइमेट चेंज इन द इंडियन माइंड-2023' रिपोर्ट जारी की है.
इस सर्वेक्षण से पता चला कि जलवायु परिवर्तन के कारण लोगों का दैनिक जीवन दयनीय होता जा रहा है. लोगों ने राय व्यक्त की कि जलवायु परिवर्तन के कारण परिवारों को मिलने वाली आय पर्याप्त नहीं है. उन्होंने कहा कि वे ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए ऊर्जा-कुशल उपकरण और इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने पर बड़ी रकम खर्च करने को तैयार है. येल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. एंथनी लिसिरोविट्ज़ ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के साथ अत्यधिक बाढ़ और तूफान आ रहे हैं. क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. जगदीश ठाकर ने कहा कि स्वच्छ ऊर्जा से भारतीयों को आर्थिक स्थिरता और बेहतर स्वास्थ्य मिलेगा.
सर्वेक्षण के निष्कर्ष...
- 86 फीसदी लोग 2070 तक भारत के कार्बन प्रदूषण को लगभग शून्य तक कम करने की भारत सरकार की प्रतिबद्धता के पक्ष में हैं.
- 85 फीसदी का कहना है कि बिजली उत्पादन के लिए कोयले से पवन और सौर ऊर्जा का उपयोग करने से वायु प्रदूषण कम होगा, और 82 फीसदी का कहना है कि ऐसा करने से ग्लोबल वार्मिंग में कमी आएगी. हालांकि, 61 फीसदी का कहना है कि ऐसा करने से भारत में बेरोजगारी बढ़ेगी, 58 फीसदी का कहना है कि इससे बिजली की कटौती होगी, और 57 फीसदी का कहना है कि इससे बिजली की कीमतें बढ़ जाएंगी.
- 67 फीसदी का कहना है कि भारत के अधिकांश कोयले को जमीन में छोड़ना भारत के स्वस्थ, सुरक्षित और समृद्ध भविष्य का सबसे अच्छा मार्ग है.
- 84 फीसदी नए कोयला बिजली संयंत्रों के निर्माण पर प्रतिबंध लगाने, मौजूदा संयंत्रों को बंद करने और उनके स्थान पर सौर और पवन ऊर्जा का उपयोग करने के पक्ष में हैं.
- 78 फीसदी का कहना है कि भारत सरकार को ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए और अधिक प्रयास करना चाहिए.
- 74 फीसदी सोचते हैं कि कुल मिलाकर, ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए कार्रवाई करने से या तो आर्थिक विकास में सुधार होगा और नई नौकरियां (51फीसदी) मिलेंगी या आर्थिक विकास या नौकरियों (23फीसदी) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
- केवल 21फीसदी लोग सोचते हैं कि इससे आर्थिक वृद्धि कम होगी और नौकरियां महंगी होंगी.
- 61 फीसदी लोग सोचते हैं कि भारत को ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग बढ़ाना चाहिए, जबकि केवल 14 फीसदी सोचते हैं कि भारत को जीवाश्म ईंधन का उपयोग बढ़ाना चाहिए.
- 52 प्रतिशत का मानना है कि मानवीय त्रुटि ग्लोबल वार्मिंग का कारण है, 38 प्रतिशत का कहना है कि पर्यावरण में प्राकृतिक परिवर्तन इस स्थिति का कारण हैं.
- 84 प्रतिशत लोगों ने कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों पर प्रतिबंध लगाने, मौजूदा संयंत्रों को बंद करने और उनके स्थान पर सौर और पवन ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने पर अपनी सकारात्मक राय व्यक्त की.
- येल प्रोग्राम ऑन क्लाइमेट चेंज कम्युनिकेशन द्वारा किया गया अध्ययन देश भर में फैले 2178 लोगों के सर्वेक्षण पर आधारित है और इसमें विभिन्न पीढ़ियों का प्रतिनिधित्व करने वाले विभिन्न उम्र के उत्तरदाता शामिल हैं. सितंबर और नवंबर 2023 में किए गए सर्वेक्षण का कन्नड़, मलयालम, तमिल, बांग्ला और अंग्रेजी सहित 12 भाषाओं में अनुवाद किया गया था.
येल विश्वविद्यालय के एंथोनी लीसेरोविट्ज़ ने कहा कि भारत पहले से ही जलवायु प्रभावों का सामना कर रहा है, रिकॉर्ड गर्मी की लहरों से लेकर गंभीर बाढ़ और तेज तूफान तक. हालांकि भारत में कई लोग अभी भी ग्लोबल वार्मिंग के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं, लेकिन वे बड़े पैमाने पर सोचते हैं कि जलवायु बदल रही है और इसके बारे में चिंतित हैं. 53 फीसदी लोग सोचते हैं कि भारत में लोगों को पहले से ही ग्लोबल वार्मिंग से नुकसान हो रहा है.