मसौढ़ी: राजधानी पटना से सटे मसौढ़ी में पिछले कई सालों से ताजिया जुलूसनिकाला जा रहा है. इस दौरान युवा दिन रात एक कर अलग-अलग तरह का ताजिया बनाते है. इस साल भी कुछ ऐसा ही माहौल देखने को मिल रहा है. मसौढ़ी के फैजाबाद मालिकाना, पुरानी बाजार रहमतगंज और तारेगाना में मुसलमान नवयुवक ताजिया बनाने में दिन रात जुटे हुए हैं.
इमाम हुसैन के रोजा पर ताजिया:इस संबंध में जमा मस्जिद के मौलाना जहूर ने कहा कि कर्बला के मैदान में हजरत इमाम हुसैन और उनके परिवार और अन्य साथियों की कुर्बानी को याद करने के लिए मुस्लिम शिया धर्मावलंबी मोहर्रम के चालीस दिनों बाद चेहल्लुम मनाकर 72 शहीदों को श्रद्धांजली अर्पित करते हैं. उन्होंने बताया कि इराक में इमाम हुसैन का मुबारक दरगाह है, जिसकी हूबहू शक्ल के रूप में ताजिया बनाया जा रहा है.
चांद निकलते ही रखा जाता ताजिया: वहीं, मोहम्मद शाहनवाज ने बताया कि मोहर्रम का चांद निकलने की पहली तारीख को ही ताजिया रखने का सिलसिला शुरू हो जाता है. फिर उन्हें 10 मोहरम को कर्बला में दफन कर दिया जाता है. ताजियादारी की शुरुआत भारत से हुई है. तत्कालीन बादशाह तैमूर लंग ने मोहर्रम के महीने में इमाम हुसैन के रोजा ए मुबारक यानी दरगाह की तरह बनवाया गया और उसे ताजिया का नाम दिया था, यही से ताजिया की शुरुआत हुई थी.