नई दिल्ली:हिंदी साहित्य के चर्चित नामों में से एक है मनीषा कुलश्रेष्ठ का नाम. इन्होंने हिंदी साहित्य को तकनीकी के दौर में नया रूप दिया है. विश्व की पहली वेब पत्रिका hindinest.com का सन 2000 से संपादन कर रही हैं और 2021 से कथाकहन नाम से कानोता कैंप जयपुर में वार्षिक तौर पर कहानी लेखन पर कार्यशाला का आयोजन करती हैं. लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ को उनके उपन्यास ‘स्वप्नपाश’ के लिए 2018 में ‘बिहारी पुरस्कार’ से सम्मानित किया जा चुका है. ETV भारत ने साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित साहित्योत्स्व के दौरान मनीषा कुलश्रेष्ठ से विशेष बातचीत की.
उनकी लेखनी की खासियत है कि वह अपनी रचनाओं में खुद किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचती हैं बल्कि निर्णय पाठकों पर छोड़ देती हैं. उनकी नजर में मुद्रित पुस्तकों के प्रति पाठकों का प्रेम सदा बना रहेगा. मनीषा का कहना है कि साहित्य की बुनियाद यानी जड़ें वही हैं लेकिन वर्तमान के परिपेक्ष्य में देखें तो यह पेड़ बड़ा हो चुका है. इसमें नई पत्तियां पनप चुकी हैं. साहित्य का एक काम यह भी है कि वह अपने समय को पकड़ें. अब जो नए लेखक आ रहे हैं, वो अपने समय के संक्रमण को पकड़ रहे हैं. कहा जाए तो समय बहुत तेज भाग रहा है जैसे लीविंग रिलेक्शनशिप, समलैंगिकता, कॉरपोरेट सेक्टर की समस्याएं, मानसिक बीमारियां, तनाव आदि मुद्दों पर भी साहित्य अपनी पकड़ बना रहा है. इसके अलावा राजनीति और किसानों के मुद्दों पर भी साहित्य लिखा जा रहा है.
उनका मानना है कि अगर साहित्य के क्षेत्र में अनूठा और अलग लिखेंगे तो कभी रिजेक्ट नहीं होंगे. अच्छे प्रकाशकों और पाठकों का ध्यान कभी न कभी आपकी ओर जरूर जाएगा. इसके बावजूद अगर कोई नया लेखक उपेक्षा का शिकार होता है, तो निराश होने की जरूरत नहीं है. आजकल कई ब्रॉडकास्ट जो सेल्फ ब्रॉडकास्टिंग को बढ़ावा दे रहे हैं इसमें पॉडकास्ट, सेल्फ पब्लिशिंग मुख्य प्लेटफॉर्म हैं.अगर कोई नया लेखक साहित्य से क्षेत्र से जुड़ना चाहते हैं, ये सभी प्लेटफॉर्म उनके लिए मददगार साबित होंगे. इसके अलावा रिजेक्शन की एक मुख्य वजह ऊब भी हो सकती है. मतलब अगर आपने किसी ऐसे मुद्दे पर लिखा है, जिस पर पहले से ही कई किताबें मौजूद हैं तो पाठक उसकी ओर आकर्षित नहीं होते हैं. इसके लिए नए लेखक अपनी शैली में एक धार के साथ नए प्रयोग करें, क्योंकि जो भी नई अनूठी चीजें होती हैं उनका हमेशा स्वागत होता है.
आज के दौर में इंटरनेट पर हिंदी साहित्य ने बड़ी जगह बनाई है. मनीषा कुलश्रेष्ठ उन लोगों में से हैं जिन्होंने इंटरनेट पर पहली वेब पत्रिका शुरू की थी. जिसका नाम है hindinest.com. जिसने आज कल पूरी दुनिया में हिंदी साहित्य ने अपनी जगह बनाई है. वहीं अंग्रेजी के पिछड़ने का कारण हिंदी साहित्य की उपलब्धता. एक समय था, जब मुझे खुद किसी की किताब ढूंढ़नी होती तो पूरे शहर भर के चक्कर लगाने पड़ते थे. किताबों की दुकानों पर भी हिंदी साहित्य की कम किताबें हुआ करती थी. ऑनलाइन मार्केटिंग ने हिंदी साहित्य की उपलब्धता बढ़ा दी है. धुरंधर अंग्रेजी बोलने वाले छात्रों ने भी हिंदी में साहित्य लिखना और पढ़ना शुरू कर दिया है. देखा जाए तो अब हिंदी और अंग्रेजी बराबर हैं. हिंदी साहित्य में बुकर प्राइज मिल रहे हैं. बेस्ट सेलर्स आ रहे हैं. तो यह कहना अतिशियोक्ति नहीं होगा कि हिंदी का भविष्य उज्जवल है.