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विश्व सामाजिक न्याय दिवस 2025; विशेषज्ञ बोले- 'हित और संरक्षण के लिये बने हैं कानून, जागरूकता की है आवश्यकता' - WORLD SOCIAL JUSTICE DAY 2025

20 फरवरी को मनाया जाता है विश्व सामाजिक न्याय दिवस, ईटीवी भारत की टीम ने विशेषज्ञों से की बातचीत.

विश्व सामाजिक न्याय दिवस 2025
विश्व सामाजिक न्याय दिवस 2025 (Photo credit: ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 20, 2025, 5:42 PM IST

Updated : Feb 20, 2025, 6:45 PM IST

लखनऊ : विश्व सामाजिक न्याय दिवस 20 फरवरी को मनाया जाता है. इस दिवस के मानने का मुख्य उद्देश्य समाज में व्याप्त असमानताओं और अन्य के प्रति लोगों को जागरूक करना और उनके मौलिक अधिकारों को सुरक्षित करना है. सामाजिक न्याय दिवस यह याद दिलाता है कि यह एक न्यायपूर्ण और समावेशी समाज के निर्माण, देश के विकास के लिए कितना महत्वपूर्ण है. ईटीवी भारत ने समाज के बीच में रहकर काम करने वाले विशेषज्ञों से बात की और इस दिन के महत्व और मौजूदा स्थिति के बारे में जानने की कोशिश की है.

विश्व सामाजिक न्याय दिवस 2025 पर विशेषज्ञों से बातचीत (Video credit: ETV Bharat)

लखनऊ विश्वविद्यालय के साइकोलॉजी विभाग के प्रोफेसर पवन मिश्रा ने बताया कि हम किसी खास विषय पर दिवस का आयोजन इसलिए करते हैं, कहीं ना कहीं उस विषय पर पर्याप्त चर्चा का अभाव होता है. अगर यह सामाजिक न्याय का मुद्दा अगर रूटीन में रहे, तो हर वक्त यह लागू होता रहे या इसके ऊपर चर्चा होती रहे तो दिवस की जरूरत नहीं है. दिवस उसके प्रति जागरूकता फैलाने और लोगों को बताने के लिए आवश्यक होता है. उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय जिसका अर्थ है सभी के लिए अवसरों की समानता हो, गरीब तबके को देखते हैं तो समानता का मुद्दा काफी गंभीर हो जाता है.

उन्होंने कहा कि हमारे संविधान का अनुच्छेद 14 सभी को कानून के बराबर रखता है और बराबर संरक्षण देता है, लेकिन अगर इस फ्रेम में देखें तो कहीं ना कहीं आजादी के बाद से आज तक जो गरीबों को गरीबी हटाने के लिए जो योजनाएं बनी हैं, दुर्भाग्यवश वह जमीन तक नहीं पहुंच पाई हैं. इधर हाल के दिनों में आधार कार्ड का उपयोग करके बहुत कुछ इस दिशा में प्रयास हुआ है, जो वास्तविक गरीब या ऐसे लोग हैं. उन्होंने कहा कि काफी प्रयास हाल के दिनों में हुए हैं, कानून पहले भी बने हैं, उनके संरक्षण के लिए कहीं न कहीं थ्योरी और प्रैक्टिस में गैप हो जाता है. इस वजह से यह समस्या होती है.

विश्व सामाजिक न्याय दिवस 2025 (Photo credit: ETV Bharat)

समय-समय पर लाये गये कानून : लखनऊ विश्वविद्यालय के सोशियोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. डीआर साहू का कहना है कि भारतीय समाज की लोकतांत्रिक व्यवस्था कि जब स्थापना हुई उसमें एक संविधान निर्माण हुआ. संविधान के माध्यम से विभिन्न कानूनों को समय-समय पर लाया गया. कानूनों के आधार पर जब उसकी प्रैक्टिस में लाया गया तो अभी भी बहुत सारे ऐसे संशोधन के माध्यम से नए-नए कानून आ रहे हैं. जैसे उदाहरण स्वरूप, आप कहेंगे कि रिजर्वेशन एक्ट फैसिलिटी था. रिजर्वेशन दिया गया. शेड्यूल्ड कास्ट शेड्यूल ट्राई, अनुसूचित जाति और अनुसूची जनजातियों की आरक्षण की बात हुई. इसके उद्देश्य था कि सामाजिक न्याय, समता, सामान्यता इसके बारे में बात करें और साझेदारी भागीदारी बराबरी की बात करें.

उन्होंने कहा कि बात संविधान से तो हुई, लेकिन समाज के जो सामाजिक हमारी जो तना-बना है सामाजिक ढांचा है उसमें अभी भी इसको प्रैक्टिस में देखा जाए, व्यावहारिक रूप में देखा जाए तो उसमें काफी पाया जाता है कि नहीं इसमें और काम की जरूरत है. सबसे महत्वपूर्ण बात है समाजशास्त्र शिक्षक होने के नाते विद्यार्थियों के नाते समाज को हम जब देखते हैं तो कानून रूल आफ लॉ तो एक बात है और उसे एक हमको एक औजार के रूप में एक बल मिलता है, लेकिन समुदाय से संवेदनशील हो, उसे अधिकार की प्रति जागरूक हो, अधिकार के लिए उपयोगी बनाया जाए. इसके संदर्भ में देखा जाए तो जैसे उदाहरण स्वरूप बाल श्रमिक की बात करें, बाल मजदूरी को हटाने की बात की गई.

उन्होंने कहा कि अभी भी आप देखेंगे व्यावहारिक रूप में, भारतीय समाज में, विभिन्न क्षेत्रों में, चाहे शहर में हो. चाहे ग्रामीण क्षेत्र में हो, बाल मजदूरी के नियम का उल्लंघन हमें लोग करते हैं. उसको हम अभी कारीगर साबित नहीं कर पा रहे हैं. मेरा यह मानना है कि समुदाय की समर्थन, समुदाय की सहभागिता, समुदाय की भागीदारी ज्यादा जरूरत होगी, ज्यादा प्रभावी होगी, ज्यादा सक्रिय होगी तभी इन सब चीजों का प्रभाव रहेगा. लेकिन अब भारतीय समाज में, समाजशास्त्र विषय में, सामाजिक विज्ञान के विषय में यही देखा जाता है कि थ्योरी या रूल ऑफ लॉ कितनी प्रभावित है और प्रभावी न होने की चुनौतियां भी हैं.

कानून के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता :उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग की अध्यक्ष प्रो. कीर्ति पांडेय ने कहा कि हमारे यहां जो कानून बने हुए हैं. वह हित संरक्षण के लिए बने हुए हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि भले ही कानून के प्रति जागरूकता की आवश्यकता है, उसमें थोड़ी कमी है, कानून तो हमारे यहां हर पग पर बने हुए हैं. न्याय के लिए जो विभिन्न आयोग बने हुए हैं, वह आयोग भी अपने-अपने क्षेत्र में काम कर रहे हैं. बस बात यह है कि वहां तक वह मामले पहुंचने चाहिए, तभी उनके फैसले और निस्तारण हो सकते हैं. समय से उसकी पहुंच होगी तो उसकी सुनवाई भी निश्चित होगी.


'संवैधानिक प्रावधान को लागू करने का उत्तरदायित्व सरकार का' :लखनऊ विश्वविद्यालय के सोशल वर्क विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. अनूप भारती का कहना है कि 20 फरवरी को विश्व सामाजिक न्याय दिवस के रूप में मनाया जाता है. उन्होंने कहा कि आज के परिपेक्ष में हम सामाजिक न्याय को समझने की कोशिश करें तो मेरा मानना है कि जो सामाजिक न्याय निश्चित रूप से बात की जाती जो समाज के दुर्बल, पिछड़े वर्ग के लोग होते हैं. चाहे वह ओबीसी, एससी, एसटी हों, अल्पसंख्यक हों या विशेष रूप से बात करें तो महिलाओं की बात कर सकते हैं, बच्चों की बात कर सकते हैं, वरिष्ठों की बात कर सकते हैं. तो यह सारे के सारे दुर्बल के लोग शामिल हैं. सरकार के द्वारा या हमारे संवैधानिक प्रावधान दिए गए हैं उनको पूरी तरीके से लागू करने का उत्तरदायित्व सरकार का होता है.

उन्होंने कहा कि सरकार के द्वारा अथक प्रयास भी किये जा रहे हैं, मगर जो एक चुनौती सामान्य रूप से सामने आती है. दूसरी बात करें तो सामाजिक समानता की बात की जाती है तो कहीं ना कहीं उस संतुलन की स्थिति में नहीं पहुंच सकें या उस लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर सकें हैं जो कि संविधान में उपाय किए गए हैं. यह कह सकते हैं कि सभी जगह पर सामाजिक भागीदारी की बात की जाए तो वह भागीदारी भी अभी पूरी तरह से संभव नहीं हो पाई है. महिलाओं की विशेष रूप से बात करें तो महिलाएं जो हैं आज भी हमारी मानसिकता में कहीं ना कहीं है, हम उन लोगों को दोयम दर्ज का नागरिक मानते हैं, उनको जो अधिकार प्रदान किए जाने चाहिए. वह अधिकार प्रदान नहीं किये गये हैं. परिवेश बदल रहा है, समाज बदल रहा है, लोगों की सोच बदल रही है, शिक्षा का बहुत बड़ा असर पड़ रहा है. आज के इस डिजिटल एरा की बात करें तो सभी लोगों को किसी न किसी माध्यम से सूचनाएं मिल रहीं हैं.

सामाजिक न्याय से जुड़े प्रमुख मुद्दे
आर्थिक असमानता : देश में मौजूद गरीबी और धन के असमान वितरण को दूर करना.
श्रम अधिकार : सभी मजदूरों को उचित मजदूरी दर पर समान कार्य करने का अवसर मिलना.
लैंगिक समानता : पुरुष व महिला को समान अधिकार देने के साथ ही हर क्षेत्र में समान अवसर प्राप्त होना.
जातिगत भेदभाव : समाज में मौजूद जाति आधारित भेदभाव को दूर कर सभी लोगों को समझ में एक समान अधिकार सुनिश्चित करना.

सामाजिक न्याय की संकल्पना संविधान की उद्देशिका में : लखनऊ विश्वविद्यालय के विधि विभाग के प्रो. आनंद विश्वकर्मा का कहना है कि सामाजिक न्याय की संकल्पना हमारे संविधान की उद्देशिका में है. जिस सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने का संकल्प हम लोगों ने लिया है, उसमें सबसे पहले सामाजिक न्याय है. उसके बाद आर्थिक और राजनीतिक न्याय है. सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने का उत्तरदायित्व सर्वप्रथम राज्य पर आता है. जिसकी एक बड़ी परिभाषा है, राज्य तमाम तरीके अपनाता है इसे सुनिश्चित करने के लिए. जिसके माध्यम से वह सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करता है और सामाजिक न्याय की सुनिश्चित करने के लिए राज्य में विभिन्न अयोग का गठन किया गया है. जिसमें एससी/एसटी आयोग, पिछड़ा वर्ग आयोग, महिला आयोग राज्य ने पहले से ही बना रखे हैं.

उन्होंने कहा कि केंद्रीय स्तर पर भी यह सभी आयोग हैं. कोई भी व्यक्ति सामाजिक विभेद का सामना करता है. वह इन आयोग में जा सकता है और अपने अधिकारों को सुरक्षित कर सकता है. उनके जो भी प्रार्थना पत्र हैं उन पर यह आयोग विचार करके दिशा निर्देश जारी करता है. इसके अतिरिक्त सामाजिक न्याय को सुरक्षित करने का उत्तरदायित्व सीधे तौर पर हमारे न्यायालय को है. कोई भी व्यक्ति वहां पर मौलिक अधिकार के तौर पर वहां पर अपनी याचिका दायर कर सकता है. वह जिस तरह से भी अपने अधिकारों से वंचित हुआ है वह वहां पर जाकर अपनी अपील कर सकता है. बहुत से ऐसे वाद सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में आए हैं, जिसमें कोर्ट ने राज्यों को सीधे तौर पर निर्देशित किया है कि वह सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने के लिए क्या-क्या कदम उठाता है.

सामाजिक न्याय के लिए भारत के प्रयास
संविधान में समानता का अधिकार मिलना : जिसके तहत सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता और न्याय हासिल करने का अधिकार दिया गया है.
आरक्षण नीति : इसके तहत दलित अति पिछड़ा वर्ग और आदिवासी समाज के लोगों के लिए समान शिक्षा व रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए आरक्षण दिया गया है. इसमें सामाजिक और आर्थिक पिछड़े वर्गों के लिए सरकार की तरफ से विशेष योजनाएं संचालित हैं.
मजदूर और किसानों के लिए योजनाएं : मनरेगा ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराना.
प्रधानमंत्री किसान योजना : किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करना.
महिला और बच्चों के लिए योजनाएं : बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना, इसके तहत लड़कियों के शिक्षा और सुरक्षा मुहैया कराना.
सुकन्या समृद्धि योजना : लड़कियों के लिए आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना.
समान शिक्षा का अधिकार : अधिनियम के तहत 6 से 14 वर्ष के बच्चों को मुक्त शिक्षा देना.

लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र समर्थ सिंह का कहना है कि अभी बीते 26 जनवरी को राजधानी के डालीगंज एरिया में लोगों के बीच में जाकर एक कार्यक्रम किया था, जिसमें उन्हें उनके अधिकारों के साथ-साथ शिक्षा के महत्व को भी बताया था. वह काम करने के दौरान हम लोगों ने पाया कि लोगों को आज भी उनके मौलिक अधिकारों के बारे में जानकारी तक नहीं है. यह एक बहुत बड़ी समस्या है, जब लोग उनके बारे में जानेंगे ही नहीं तो वह उसके लिए आवाज कैसे उठाएंगे. उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय के लिए सबसे जरूरी है लोगों का शिक्षित होना और जब लोग शिक्षित होंगे तो संविधान में निहित किए गए अपने मौलिक अधिकारों के प्रति जागरूक भी होंगे.

विश्व सामाजिक न्याय दिवस का इतिहास : 26 नवंबर साल 2007 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने हर साल 20 फरवरी के दिन को विश्व सामाजिक न्याय दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी. साल 2009 में पहली बार यह दिवस पूरे विश्व में मनाया गया. इसका मुख्य उद्देश्य समाज में व्याप्त भेदभाव का सामान्य गरीबी बेरोजगारी लैंगिक भेदभाव और अन्य सामाजिक भेदभाव को दूर करने के लिए लोगों में जागरूकता लाना था. इस दिन का मुख्य उद्देश्य यह है कि एक न्याय संगत और एक समान समाज बनाना. इसके माध्यम से हर व्यक्ति को यह संकल्प लेना होता है कि वह भेदभाव, गरीबी और अन्य के खिलाफ मिलकर काम करेंगे और एक सशक्त समानता पर आधारित एक समाज का निर्माण करेंगे.

थीम : इस साल सामाजिक न्याय का थीम "समावेश को सशक्त बनाना, सामाजिक न्याय के लिए अंतराल को पाटना है".

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Last Updated : Feb 20, 2025, 6:45 PM IST

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