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अब सोने-चांदी में इंटरेस्ट नहीं ले रहीं महिलाएं, शेयर मार्केट में एंट्री से बढ़ा रहीं 'इकोनॉमी', कोरोना ने दिखाई राह

WOMENS DAY 2024: एक रिपोर्ट के मुताबित महिलाओं में FD के प्रति रुझान ज्यादा बढ़ा है. शेयर मार्केट में भी महिलाओं की एंट्री हुई है लेकिन वह अब कम होती जा रही है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2024 पर आईए जानते हैं इस बदलाव के कारण.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 8, 2024, 11:46 AM IST

Updated : Mar 8, 2024, 1:31 PM IST

शेयर मार्के और फाइनेंशियल एडवाइजर के तौर पर महिलाओं की स्थिति के बारे में बताते अर्थशास्त्री प्रो. विशाल सक्सेना.

लखनऊ: क्रेडिट रेटिंग इंफॉर्मेशन सर्विसेज ऑफ इंडिया लिमिटेड (CRISIL) की हालिया रिपोर्ट ने कई चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए हैं. CRISIL की स्टडी के अनुसार महिलाएं अब सोना-चांदी खरीदने में ज्यादा इंटरेस्ट नहीं ले रही हैं. उनमें निवेश की आदतों में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है.

महिलाओं में फिक्स डिपॉजिट (FD) कराने का क्रेज कुछ ज्यादा बढ़ गया है. इसके साथ ही म्यूचुअल फंड्स लेने, घर खरीदने या शेयर मार्केट में पैसा निवेश करने में भी महिलाएं दिलचस्पी दिखा रही हैं, लेकिन ये FD से काफी कम है.

वैसे तो आज के समय में महिलाएं हर फील्ड में लगातार आगे बढ़ रही हैं. वह उन फील्ड में भी आगे बढ़कर नेतृत्व कर रही हैं जिन्हें अभी तक पूरी तरह से मेल डोमिनेटिंग फील्ड समझा जाता था. खास तौर पर कोरोना के बाद से महिलाओं ने इक्विटी और शेयर के क्षेत्र में काफी तेजी से किस्मत आजमाना शुरू किया है.

विशेष तौर पर कोरोना काल के बाद के समय की बात करें तो भारत में महिलाओं का निवेश और बाजार के प्रति रुझान में काफी बदलाव देखने को मिला है. आज स्टॉक एक्सचेंज की दुनिया में जहां पहले मेल डोमिनेटिंग देखी जाती थी. लेकिन, अब इस सेक्टर में महिलाओं की भी रुचि लगातार बढ़ती हुई दिख रही है.

विशेष तौर पर जहां 2016 से पहले केवल और 10% महिलाओं के पास ही डिमैट अकाउंट होता था, वह अब बढ़कर 27 परसेंट से भी अधिक हो गया है. आमतौर पर माना जाता है कि महिलाओं को शेयर या म्यूचुअल फंड में निवेश आदि करने पर ज्यादा भरोसा नहीं रहता.

लेकिन, अब ऐसा नहीं है. महिला वित्त मामले की समझ हमसे बेहतर रखती हैं. देश में कई बड़े-बड़े कॉर्पोरेट घरानों और बैंकों की जिम्मेदारी महिलाओं द्वारा संभाली जा रही है. अर्थ के मामलों के जानकार प्रोफेसर विशाल सक्सेना ने भी यही कहा है.

उनका कहना है कि इकोनॉमी के लगातार बढ़ने के लिए यह बहुत जरूरी है कि अब उस सिस्टम से बाहर आया जाए, जहां पर फैमिली को चलाने के लिए मेल के ऊपर डिपेंडेंसी होती थी. जैसे एक गाड़ी में दो पहिए होते हैं और वह गाड़ी को बराबर बनाकर चलते हैं.

एक फोर व्हीलर में आगे के दो पहिए और पीछे के दोनों पहिये अपने-अपनी जगह इंपॉर्टेंट हों. तो उसी तरह जो फीमेल क्लास का पार्टिसिपेशन हमें हर एक सेगमेंट में दिख रहा है. चाहे वह फाइनेंशियल अवेयरनेस विशेष तौर पर महिलाओं के रोल की बात करें तो यह काफी कुछ बदला है.

जिस तरह से एक मां अपने घर को चलाने के लिए सब कुछ करती है इस तरह आज निवेश और बाजार के क्षेत्र में भी महिलाएं आगे आ रही हैं. हमारे देश में महिलाओं के बचत करने की आदत हमेशा से रही हैं. महिलाएं अपने घरों में थोड़ी-थोड़ी बचत करती आती रही है.

जिससे बुरे वक्त में परिवार की जो भी मदद हो वह उसे हो जाती थी. आज का समय बदला है, महिलाएं जागरूक हुई हैं और वह सोच समझकर अपने निर्णय लेती हैं. कोविड के बाद से इक्विटी और स्टॉक में महिलाओं के पार्टिसिपेशन दोगुने रफ्तार से बड़ा है.

प्रो. विशाल सक्सेना ने बताया कि इंडियन फाइनेंशियल मार्केट की अगर हम बात करें तो ओवर द ईयर यहां पर फीमेल का पार्टिसिपेशन लगातार बढ़ता जा रहा है. स्पेशली इक्विटी सेगमेंट में ये बढ़ोतरी देखने को मिली है.

उसी के साथ अगर दूसरी चीजों की बात करें तो फाइनेंशियल जर्नलिज्म की एक फील्ड हुआ करती है. जिसे केवल मेल डोमिनेटिंग इंडस्ट्री समझा जाता था. वहां भी अब महिलाएं आगे आ रही हैं और बेहतर काम कर रही हैं.

इक्विटी सेगमेंट हो डेरिवेटिव हो म्युचुअल फंड हो या फाइनेंशियल जर्नलिज्म हो हर एक फील्ड में फीमेल का पार्टिसिपेशन बढ़ा है. यह नया ट्रेंड देश की इकोनॉमी को आगे बिल्ड करने में बेहतर साबित हो रहा है.

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Last Updated : Mar 8, 2024, 1:31 PM IST

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