वाराणसी :समाज को स्वास्थ्य और परिवार नियोजन के प्रति जागरूक करने के काम को आशा कार्यकर्ता रीता सिंह ने अपना जुनून बना लिया. यही कारण है कि रीता की आज घर-घर पहचान है.पाण्डेयपुर की रीता के पति ने स्वयं नसबंदी कराई. अब रीता समाज में इसका उदाहरण देकर लोगों को जागरूक करती हैं. वहीं रीती की ही तरह हरहुआ की भानुमती स्वास्थ्य की अलख जगा रही हैं.
सोच ने बदली दिशा
रीता सिंह पहले शिक्षिका थीं और शुरुआत से ही उनकी सोच समाज को बेहतर बनाने की थी. उन्होंने आशा के रूप में स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपनी सेवाएं प्रदान करना शुरू किया. आशा के प्रशिक्षण में बहुत सी बातें सीखीं, जिसको समुदाय में परखने की आवश्यकता थी. शुरुआत में लोग उनकी बातों को अनसुना करते थे. मगर रीता रोजाना घर-घर जाकर लोगों के स्वास्थ्य की जानकारी लेती थीं. धीरे-धीरे लोगों को उनके काम पर विश्वास होने लगा. यहीं से उनके काम को लोगों ने जानना शुरू किया. आज उन्हें उनके काम के लिए पुरस्कार भी मिल चुका है. वह महिलाओं और परिवारों की स्वास्थ्य सेवाओं के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं.
स्वास्थ्य सेवाओं के लिए हमेशा रहीं तत्पर
रीता सिंह बताती हैं कि वह बच्चों और गर्भवती के टीकाकरण, गर्भावस्था के लिए प्रसव पूर्व जांच (एएनसी), प्रसव संबंधी सेवाएं, सीमित व छोटे परिवार के लिए परामर्श समेत अन्य स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ दिलाने में वे हमेशा तत्पर रहीं. प्रभारी चिकित्साधिकारी डॉ. अकांक्षा राय समेत स्टाफ ने भी हमेशा सहयोग किया. काम के बीच कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ा, लेकिन पति राघवेंद्र सिंह व परिवार के अन्य सदस्यों ने पूरा सहयोग किया. पति ने स्वयं की नसबंदी कराकर क्षेत्रवासियों को बेहतर संदेश दिया. रीता अपने पति का उदाहरण देते हुए पुरुषों को नसबंदी के लिए समझाती हैं, जिनका परिवार पूरा हो चुका है.
प्रथम पुरस्कार से किया गया सम्मानित
रीता बताती हैं कि हाल ही में दो लाभार्थियों रंजीत सिंह और मनोज मिश्रा ने अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारी निभाकर नसबंदी कराई. ऐसा करके वह समाज में खुलकर जी रहे हैं. किसी भी प्रकार का भेदभाव भी नहीं है. इस साल अब तक 20 पुरुषों को प्रोत्साहित कर उनकी नसबंदी कराई जा चुकी है. पुरुष नसबंदी पखवाड़े में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए वाराणसी मण्डल और जनपद स्तर पर प्रथम पुरस्कार से मुझे सम्मानित भी किया गया है. वह कहती हैं कि जब तक शरीर में जान रहेगी, तब तक वह समुदाय को स्वस्थ रखने के लिए काम करती रहेंगी.
भानुमती ने किया मुश्किलों का सामना
साल 2007 में आशा बनी भानुमती बताती हैं कि, महिला नसबंदी और अंतरा इंजेक्शन के लिए महिलाएं तो तैयार हो जाती हैं, सबसे ज्यादा समस्या पुरुष नसबंदी को लेकर होती है, क्योंकि इसके लिए महिलाएं तैयार नहीं होती हैं. उनका कहना होता है कि पुरुष क्यों नसबंदी कराएं. उन्हें बाहर काम करना होता है उनके बदले हम ही करा लेंगे. भानुमती का कहना है कि उन्होंने समाज में पति-पत्नी को पुरुष और महिला नसबंदी में अंतर, लाभ आदि के बारे में समझाया. पुरुष नसबंदी महिला नसबंदी से बहुत ही आसान और कारगर है. इससे पुरुष में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं आती.
किया जा चुका है सम्मानित
भानुमती को परिवार कल्याण कार्यक्रम में बेहतर प्रदर्शन के लिए कई बार सम्मानित किया जा चुका है. वह अब तक करीब 50 पुरुषों को प्रोत्साहित कर उनकी नसबंदी करा चुकी हैं. इसके साथ ही महिलाओं को नसबंदी, अंतरा इंजेक्शन, कॉपर-टी आदि के लाभ के बारे में भी बताती हैं, जिससे अधिकतर महिलाएं प्रोत्साहित होकर उसका लाभ उठाती हैं. पीएचसी हरहुआ के वर्तमान प्रभारी चिकित्साधिकारी डॉ. संतोष कुमार के निर्देशन में भानुमती अन्य स्वास्थ्य सेवाओं में भी बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं और लगातार स्वास्थ्य सुविधाओं को समाज के आखिरी व्यक्ति तक पहुंचाने में अग्रसर हैं.
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