धनबाद: वैसे तो आदिवासी समाज में कई परंपराएं हैं. ऐसा ही एक परंपरा जमीन दान की है. जिसमें किसी की मृत्यु के उपरांत अगर उसके पार्थिव शरीर को मुखाग्नि देने वाला कोई नहीं है तो ऐसे में जो शख्स पार्थिव शरीर को मुखाग्नि देता है, उसे जमीन दान में दी जाती है. आदिवासी समाज इस परंपरा को भलीभांति जानते हैं, लेकिन एक विधवा और उसके बेटे को दान में दी गई जमीन को पाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है. क्योंकि जिन्हें मुखाग्नि दी थी, उसके अन्य परिजन अब उस दान की जमीन पर रहने नहीं दे रहे हैं.
पंचायत की बात भी यह परिवार नहीं मान रहा है. भुक्तभोगी महिला और उसके बेटे ने थाना पहुंचकर न्याय की गुहार लगाई है. पंचायत भी भुक्तभोगी विधवा महिला के पक्ष में खड़ा है. यह मामला कालूबथान ओपी थाना क्षेत्र का है, चिरुडीह बस्ती की रहने वाली विधवा महिला रवीना बास्की अपने बेटे और जनप्रतिनिधि के साथ थाना पहुंची. रवीना के बेटे राहुल बास्की को जमीन दान में दी गई थी. आदिवासी समाज में जमीन दान की परंपरा के तहत ही उसे जमीन परिवार के लोगों ने दी थी. लेकिन आज इस जमीन से उसे बेदखल करने की कोशिश में लगे हुए हैं.
आखिर क्या है मामला
रवीना बास्की के पिता का नाम कार्तिक मरांडी है. कार्तिक मरांडी की बहन सामोनी मरांडी की 15 साल पहले मौत हो गई थी. सामोनी की अपनी कोई संतान नहीं थी. एक बेटी थी तो उसकी मौत बहुत पहले ही हो चुकी थी. अपनी संतान नहीं होने के कारण सामोनी की मृत्यु के उपरांत उसे मुखाग्नि देने वाला कोई नहीं था. जिसके बाद पंच के निर्णय के फलस्वरूप रवीना के बेटे राहुल को मुखाग्नि देने के लिए राजी किया गया. आदिवासी परंपरा के अनुसार पंच से उसे जमीन का एक अंश दान देने पर भी सहमति बनी. चिरूडीह में ही दान की जमीन का अंश तय हुआ. जमीन दान के उसी अंश पर रवीना और उसका परिवार रह रहा था.