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जून माह में बदल जाएगी झारखंड की सत्ता की तस्वीर! स्टार प्रचारक बनकर उभरीं कल्पना सोरेन, सक्रियता के क्या हैं मायने - CM will change in Jharkhand - CM WILL CHANGE IN JHARKHAND

Change of power in Jharkhand. लोकसभा चुनाव अंतिम चरण में हैं. एक जून को वोटिंग के बाद सभी को 4 जून का इंतजार रहेगा. देश को नया पीएम मिलेगा या फिर मोदी ही तीसरी बार फिर से पीएम बनेंगे, इसपर हर जगह चर्चा हो रही है. लेकिन झारखंड में एक और चर्चा चल रही है कि क्या यहां भी सीएम बदलेगा?

Change of power in Jharkhand
डिजाइन इमेज (ईटीवी भारत)

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : May 31, 2024, 5:36 PM IST

रांची: लोकसभा के अंतिम फेज का चुनाव संपन्न होने से पहले ही झारखंड में इंडिया गठबंधन के नेताओं का कॉन्फिडेंस दिखने लगा है. दावा किया जा रहा है कि इस बार केंद्र में इंडिया गठबंधन की सरकार बनने वाली है. इसके मद्देनजर 1 जून को दिल्ली में हो रही इंडिया गठबंधन की बैठक में शामिल होने के लिए मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के साथ कल्पना सोरेन भी जा रही हैं.

वैसे तो कल्पना सोरेन पूरे चुनाव के दौरान स्टार प्रचारक के रुप में सक्रिय रहीं. गांडेय विधानसभा उपचुनाव में प्रत्याशी होने के बावजूद कल्पना सोरेन ने अपनी पार्टी और गठबंधन के सहयोगियों के लिए जगह-जगह जाकर चुनाव प्रचार किया. उनका एक ही नारा था 'झारखंड झुकेगा नहीं, इंडिया रुकेगा नहीं'. उन्होंने हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को भाजपा का षड्यंत्र बताकर वोट मांगा. उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से दावा किया है कि 4 जून को बदलेगी देश की तकदीर और इंडिया की तस्वीर.

लिहाजा, उनकी सक्रियता से आम लोगों में इस बात की चर्चा शुरु हो गई है कि क्या झारखंड में भी सत्ता की तस्वीर बदलने वाली है. अगर कल्पना सोरेन गांडेय उपचुनाव जीतती हैं तो क्या वह सिर्फ विधायक की भूमिका में रहेंगी. क्योंकि भाजपा के प्रदेश प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी भी कह चुके हैं कि हेमंत सोरेन जेल में, चंपाई सत्ता में और कल्पना सोरेन सत्ता के रास्ते में हैं. ऐसे में झगड़ा होना तय है. इसका मतलब यह भी है कि भाजपा मान चुकी है कि कल्पना सोरेन गांडेय उपचुनाव जीत रही हैं. लेकिन सबसे बड़ा सवाल कि इसके बाद क्या होगा?

क्या झारखंड में होगा सत्ता परिवर्तन

वरिष्ठ पत्रकार शंभुनाथ चौधरी का कहना कि सत्ता में चेहरा बदले या न बदले लेकिन कल्पना सोरेन ने साबित कर दिया है कि उनमें नेतृत्व करने की क्षमता है. लेकिन मुझे नहीं लगता कि ऐसे हालात में झामुमो सत्ता परिवर्तन का रास्ता अपनाएगी. हेमंत सोरेन अगर 2024 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी जेल में ही रह गये तो संभव है कि कल्पना सोरेन के नाम पर झामुमो मैदान में उतर जाए.

पहले सिर्फ हेमंत सोरेन एक चेहरा हुआ करते थे. अब कल्पना सोरेन भी इस लिस्ट में आ गई हैं. उन्होंने कई भाषाओं में संवाद कर खुद को शानदार कम्यूनिकेटर के रूप में स्थापित कर दिया है. उन्होंने कई जगहों पर ओड़िया भाषा में भी बात की. संथाली भी बोलीं. हिन्दी और अंग्रेजी तो बोलती ही हैं. वह सीएम बने या ना बने लेकिन इतना तो तय है कि उपचुनाव जीतने के बाद सरकार के फैसले में उनकी बड़ी भूमिका होगी.

कल्पना सोरेन ने राष्ट्रीय स्तर पर बनाई पहचान

31 जनवरी को हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद कल्पना सोरेन पहली बार 4 मार्च को गिरिडीह में पार्टी के एक कार्यक्रम में नजर आई. तब वह अपनी आंखों से छलके आंसू नहीं रोक पाईं थी. लेकिन वक्त के साथ मजबूत होती गई. उन्होंने पूरे झारखंड में 30 से ज्यादा चुनावी रैलियां की. हर मंच पर अपने पति हेमंत सोरेन और ससुर शिबू सोरेन के त्याग की चर्चा की.

सूत्र बताते हैं कि टिकट बंटवारे में भी कल्पना सोरेन ने भूमिका निभाई थी. मुंबई और दिल्ली में आयोजित इंडिया गठबंधन की रैली में शामिल हुई. बाद में रांची में इंडिया गठबंधन की रैली आयोजित कर संगठन पर अपनी पकड़ को भी प्रदर्शित करने में सफल रहीं. चुनाव के दौरान अपने कॉन्फिडेंस की बदौलत उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को बता दिया कि वह हर चुनौती का सामना करने की क्षमता रखती हैं. कल्पना की राह में सीता सोरेन एक रोड़ा बन सकती थीं. लेकिन उनके भाजपा में जाने से कल्पना की यह परेशानी भी खत्म हो गई है.

प्रियंका गांधी को रोकना पड़ा भाषण

कल्पना की लोकप्रियता 22 मई को गोड्डा में दिखी थी. झारखंड में तीसरे चरण के चुनाव से ठीक पहले 22 मई को गोड्डा में कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी की रैली थी. भाषण का दौर चल रहा था. इसी दौरान जब कल्पना सोरेन मंच पर पहुंची तो उनके स्वागत में बजी तालियों की गूंज सुनकर प्रियंका गांधी को अपना भाषण रोकना पड़ा. उन्होंने कल्पना सोरेन को गले से लगाकर छोटी बहन कहकर स्वागत किया. इतने कम वक्त में राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में पहचान बनाकर कल्पना ने साबित कर दिया कि वह नेतृत्व संभाल सकती हैं.

हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से पहले कल्पना सोरेन हमेशा राजनीति से अलग रहीं. वह रांची में एक प्ले स्कूल चलाती हैं. लेकिन लैंड स्कैम में ईडी की संभावित कार्रवाई को भांपकर सबसे सुरक्षित सीट में शुमार गांडेय को 31 दिसंबर को खाली करवाया गया था. ताकि हेमंत की गिरफ्तारी होने पर कल्पना सत्ता संभाल सकें. लेकिन भाजपा के इस दावे के बाद कि जहां भी एक साल से कम का कार्यकाल शेष रहता है वहां उपचुनाव संभव नहीं है. यही वजह रही कि चंपाई सोरेन को सत्ता देनी पड़ी. लेकिन लोकसभा चुनाव की तारीखों के साथ गांडेय उपचुनाव की तारीख घोषित होने के बाद कल्पना सोरेन के लिए राजनीति के मैदान में पांव जमाने का मौका मिल गया. अब देखना है कि सोरेन परिवार का अगला कदम क्या होता है?

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