पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विवादास्पद मुद्दों पर चुप्पी साथ रखी है. इस बीच कयासों का दौर जारी है. सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या फिलवक्त जदयू में नीतीश कुमार इतने मजबूत है कि कोई बड़ा निर्णय ले पाए. जदयू के नेता जरूर बयान दे रहे हैं. लेकिन खुद नीतीश कुमार बोलने से बच रहे हैं. वक्फ बोर्ड विधेयक हो या वन नेशन वन इलेक्शन या फिर अमित शाह का आंबेडकर को लेकर दिया गया बयान मामले में नीतीश कुमार ने चुप्पी नहीं तोड़ी है.
नीतीश की चुप्पी खतरे के संकेत है: नीतीश कुमार को जानने वाले यह बताते हैं कि नीतीश कुमार को जब कुछ बड़ा करना होता, तो चुप हो जाते. फिलहाल भी वह चुप है. दरअसल, केंद्रीय गृह मंत्री के इस कथन के बाद कि चुनाव के बाद बिहार में नेता तय किया जाएगा और विवाद शुरू हुआ. राजनीतिक विशेषज्ञ कह रहे हैं कि केंद्रीय गृह मंत्री के बयान के बाद बिहार के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री की सफाई दी.
चुप्पी के माध्यम से देते हैं मैसेज: नीतीश कुमार की चुप्पी कोई लेकर कई तरह के कयास भी लगाए जा रहे हैं. राजनीतिक विशेषज्ञ कह रहे हैं कि पहले भी नीतीश कुमार जिसमें उन्हें नहीं बोलना रहता था चुप्पी साध लेते थे और जब भी दबाव की राजनीति करते हैं तो अपनी चुप्पी के माध्यम से एक मैसेज देते हैं.अगले साल विधानसभा का चुनाव है संभव है.
2025 चुनाव को लेकर नीतीश की रणनीति तो नहीं: पहले भी नीतीश कुमार जब चुप्पी साधते रहे हैं तो बिहार में बड़े राजनीतिक उथल-पुथल हुए हैं. ऐसे तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद प्रधानमंत्री के कार्यक्रमों में लगातार कह रहे हैं कि अब इधर-उधर नहीं होंगे. पार्टी के मंत्री और वरिष्ठ नेता भी कह रहे हैं कि नीतीश कुमार नाराज नहीं है.
राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं नीतीश कुमार: राजनीतिक विशेषज्ञ सुनील पांडे का कहना है कि नीतीश कुमार हल्के नेता नहीं हैं. कोई भी बात बड़ी गंभीरता से रखते हैं. पहले भी नीतीश कुमार विवादास्पद मुद्दों पर पार्टी के नेताओं से तो बयान दिलवाते थे. खुद नहीं बोलते थे. इस बार भी कई विवाद वाले मुद्दों पर बोलने से बच रहे हैं, लेकिन जब उनके पार्टी के नेता बोल रहे हैं तो कहीं ना कहीं उनकी अनुमति से ही बोल रहे होंगे ऐसे नीतीश कुमार दबाव की राजनीति करने में माहिर माने जाते हैं.