आखिर क्यों धमतरी के जबर्रा गांव में फेल हुआ ग्रीन एनर्जी कॉन्सेप्ट - Jabarra village of Dhamtari - JABARRA VILLAGE OF DHAMTARI
धमतरी के जबर्रा गांव में सालों पहले ग्रीन एनर्जी कॉन्सेप्ट के तहत कई काम किया गया था. हालांकि मौजूदा समय में ये कॉन्सेप्ट फेल हो चुका है. आखिर इसके पीछे क्या कारण है? आइए जानते हैं.
धमतरी:आज के दौर में विश्व ग्रीन एनर्जी को अपना रहा है. हालांकि छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के जबर्रा गांव में ग्रीन एनर्जी को लेकर तैयार किया गया इन्फ्रास्ट्रक्टचर चौपट हो गया है. दरअसल, कुछ साल पहले जबर्रा गांव को ग्रीन एनर्जी विलेज बनाने की पहल हुई थी. इसके लिए पूरे गांव को सोलर बिजली सप्लाई दी जा रही थी. घर-घर में गोबर गैस सप्लाई लाइन बनाई गई. कुछ अरसे बाद इस गांव को इको टूरिज्म स्पाट बनाने के लिये योजना बनी, टीम बनी, इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च किया गया, लेकिन आज सब कुछ चौपट हो चुका है.
मौजूदा समय में यहां न तो सोलर लाइट है. ना ही गोबर गैस है और ना ही यहां टूरिस्ट आते हैं. वहीं, जो चीजें पहले निर्माण की गई थी, उसे भी शरारती तत्व बर्बाद करते जा रहे है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर इतना पॉजिटिव आइडिया, शानदार कॉन्सेप्ट फेल कैसे हुआ? इस बारे में अधिक जानकारी के लिए चलिए खंगलाते हैं गांव का इतिहास...
घने जंगलों से घिरा है जबर्रा गांव:दरअसल, धमतरी जिले के दुगली फॉरेस्ट रेंज का गांव जबर्रा खूबसूरत और घने साल के जंगलो से घिरा हुआ है. छोटी सी जनसंख्या वाला गांव है. यहां कभी अंग्रेज अपना दफ्तर चलाते थे. इस गांव की डेमोग्राफी और जियोग्राफी को देखते हुए इसे लोक वन संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया. साधारण भाषा में कहें तो जबर्रा के खूबसूरत और समृद्ध प्रकृति से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती. गांव के लोग ही इसके रक्षक बनाए गए हैं.
जो भी सुविधा थी पहले थी, अब वो अब नहीं है. यहां पर्यटक आते हैं कभी-कभी गेस्ट हाउस में रुकते हैं.-कौशल्या यादव, ग्रामीण महिला
डेढ़ दशक पहले ही इसे बना दिया गया ग्रीन एनर्जी बेस्ड:जबर्रा गांव को डेढ़ दशक पहले ही ग्रीन एनर्जी बेस्ड गांव बना दिया गया था. कभी इस गांव के हर घर में सोलर बिजली से रोशनी हुआ करती थी. गांव में ही 7 किलोवाट के सोलर प्लेट लगाए गए. बैटरी हाउस बनाया गया था. सप्लाई लाईन बिछाई गई. सिर्फ ये ही नही.गांव में सेंट्रलाइज्ड गोबर गैस प्लांट लगाया गया था, जहां से घरों पर पाईप लाइन बिछा कर गोबर गैस पहुचाई जाती थी. उज्ज्वला गैस तो कुछ साल पहले शुरू हुआ, लेकिन जबर्रा डेढ़ दशक पहले ही मुफ्त के और प्रदूषण रहित कुकिंग गैस से खाना बनाता था. दूसरे जिले के प्रशासनिक अधिकारी, नेशनल मीडिया के पत्रकार जबर्रा गांव के इस दूरदर्शी, पॉजीटिव और शानदार कांसेप्ट को अपनी आंखों से देखने आया करते थे, लेकिन आज अगर इस गांव में जाएं, तो सोलर बिजली प्लांट के अवशेष भी नहीं बचे हैं. गोबर गैस का प्लांट फेल है. सिर्फ लोगों की रसोई घरो में पाइप लाइन बची रह गई है.
पहले जो हमारे कलेक्टर थे रजत बंसल, उन्होंने हमे यहां रोजगार की एक दिशा देकर गए हैं. उन्होंने यहां इको टूरिज्म का काम शुरू किया था. देश-विदेश से यहां लोग घूमते आते हैं. इससे हमें रोजगार का एक साधन मिला है. जो लोग बाहर से आते थे, उनको हम घूमाते थे, गांव में और जंगल में. उसका हमें पैसा मिलता था. उनको हम घर का खाना खिलाते थे, इसके लिए भी हमें पैसा मिलता था. लेकिन कोरोना काल के बाद ये काम बंद हो गया. अभी कभी कभार लोग यहां आते हैं. अगर प्रशासन की ओर से कुछ मदद मिलती तो ग्रीन एनर्जी कॉन्सेप्ट को फिर से शुरू किया जाता.- माधव सिंह मरकाम, ग्रामीण
ग्रीन एनर्जी सेटअप हुआ चौपट:मौजूदा समय में जबर्रा गांव की ग्रीन एनर्जी का सेटअप तो खराब हो गया है, लेकिन इसका नैसर्गिक खजाना अभी भी लबालब है. इसे देखते हुए एक और प्रयोग करीब 5 साल पहले किया गया, जिसके तहत जबर्रा को इको टूरिज्म स्पॉट बनाने का शानदार प्रयोग किया गया. जो कि शुरूआती दौर में सफल भी होता दिखा. इस प्रयोग के तहत पर्यटकों से गांव में कमाई होती थी. वह भी प्रभावित हुई है.
यहां शहर के लोगों के लिए आधुनिक शौचालय बनाए गए, शेड बनाए गए, रजिस्ट्रेशन रूम बनाया गया और गांव के ही 20 युवाओं की एक टीम बनाई गई, जो इसे संचालित करते थे. शुरूआती दौर में यहां इको टूरिज्म का टिपिकल और दुर्लभ अनुभव लेने के लिए अच्छी संख्या में पर्यटक आए. गांव के युवा तब इस से साल भर में 3 लाख तक कमाई करने लगे थे, लेकिन फिर कोरोना काल आ गया और सब कुछ थम गया. अब कोरोना जा चुका है. कोरोना के बाद यहां एक भी टूरिस्ट नहीं आए. जबर्रा का इको टूरिज्म खत्म होने लगा है. रजिस्ट्रेशन रूम में लगे ताले में जंग की परत चढी हुई है. शौचालय में सब कुछ तोड़ दिया गया है, वो अब खंडहर में तब्दील हो गया है.
ग्रीन एनर्जी कॉन्सेप्ट और इको टूरिज्म को फिर से शुरू करने की कोशिश करेंगे. अच्छी पहल थी, वो शुरू होनी चाहिए.- नम्रता गांधी, कलेक्टर धमतरी
आखिर कैसे फैल हुए सारे कॉन्सेप्ट: गांव के लोगो ने, युवाओं ने जबर्रा के ग्रीन एनर्जी और इको टूरिज्म के शुरू होने के बाद बड़े सपने देखने शुरू कर दिए थे. इसके आगे और भी कुछ करने की योजना बनाने लगे थे. अगर इस गांव के ये दोनों कॉन्सेप्ट फेल नहीं हुए होते तो शायद आज ग्रीन एनर्जी की दौड़ में जबर्रा देश का पहला गांव बन करनमिसाल की तरह खड़ा होता.
इस पूरे मामले में ग्रामीण प्रशासन की अनदेखी को दोष दे रहे हैं. वहीं, जिला कलेक्टर ने इस ओर ध्यान देने की बात कही है. ऐसे में अब सवाल ये उठता है कि आखिरकार इतनी सुविधाएं मुहैया होने के बाद भी जबर्रा गांव में बनाई गई ग्रीन एनर्जी की योजनाएं कैसे फेल हो गई.