लखनऊः उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस की स्थिति काफी कमजोर होते हुए भी लोकसभा चुनाव में उम्मीद से ज्यादा सीटें दी थीं. लेकिन कांग्रेस अखिलेश के साथ ऐसा बिल्कुल नहीं कर रही है. जिन राज्यों में कांग्रेस मजबूत है, वहां समाजवादी पार्टी को भाव ही नहीं दे रही है. जम्मू कश्मीर और हरियाणा के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी को एक भी सीट नहीं दी. हरियाणा में तो सपा ने कांग्रेस का साथ देने का फैसला लिया. जम्मू कश्मीर में कांग्रेस से गठबंधन नहीं हुआ तो समाजवादी पार्टी को अपने 20 उम्मीदवार अपने ही दम उतार दिए. कांग्रेस की इस कदर बेरुखी के बावजूद समाजवादी पार्टी क्यों कांग्रेस का हाथ नहीं छोड़ रही है, आइए जानते हैं.
बता दें कि लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था. इसका कांग्रेस को भरपूर फायदा हुआ. लेकिन अब देश के विभिन्न राज्यों में हो रहे चुनावों में समाजवादी पार्टी को गठबंधन के तहत कांग्रेस से जितनी सीटें मिलने की उम्मीद थी, वह नहीं मिला. हरियाणा विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ना चाहती थी. लेकिन कांग्रेस पार्टी ने समाजवादी पार्टी को एक भी सीट नहीं दी. बावजूद इसके अखिलेश ने हाथ का साथ छोड़ने के बजाय हाथ थामे रखा. अखिलेश हाल ही में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान यह कहते हुए भी नजर आए कि हम समाजवादियों ने दानवीर कर्ण से त्याग सीखा है. हमें कोई त्याग करना पड़े उससे कभी गुरेज नहीं. हालांकि इस त्याग के पीछे अखिलेश की भी स्वार्थ की राजनीति छिपी हुई है.
सपा को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने की कोशिशःराजनीतिक जानकार मानते हैं कि अखिलेश उत्तर प्रदेश से बाहर भी अपनी पार्टी का विस्तार करना चाहते हैं, जिससे क्षेत्रीय पार्टी के बजाय समाजवादी पार्टी भी राष्ट्रीय पार्टी बने और इसके लिए कांग्रेस का साथ जरूरी है. बिना कांग्रेस का हाथ थामे उनके लिए यह संभव नहीं है. इसलिए कांग्रेस अगर उन्हें कहीं झटका भी दे रही है तो भी अखिलेश को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है. वह भविष्य देखकर आगे बढ़ रहे हैं. हरियाणा ही नहीं जम्मू कश्मीर में भी कांग्रेस मजबूत है तो अखिलेश भी यह जरूर चाहते थे कि गठबंधन के तहत कांग्रेस पार्टी जम्मू कश्मीर में भी उन्हें कुछ सीटें दे दे, जिससे पार्टी वहां मजबूत हो सके. चूंकि समाजवादी पार्टी का जम्मू कश्मीर में मजबूत संगठन नहीं है. लिहाजा, कांग्रेस ने यहां भी अखिलेश यादव को झटका ही दे दिया. गठबंधन होने के बावजूद अखिलेश को जम्मू कश्मीर में कांग्रेस ने एक भी सीट नहीं दी. इसके बाद मजबूरन जम्मू एंड कश्मीर में समाजवादी पार्टी ने अपने ही सिंबल पर 20 प्रत्याशी मैदान में उतार दिए. इसके पीछे भी अखिलेश की अपनी रणनीति है.
अपना वोटिंग फीसदी बढ़ाना लक्ष्यः राजनीतिक जानकारों की मानें तो जम्मू कश्मीर में अगर अखिलेश का कोई प्रत्याशी जीत जाता है तो उनके लिए यह उपलब्धि होगी. अगर कोई प्रत्याशी जीत हासिल करने में सफल नहीं हो पता है, तो भी पार्टी का मत प्रतिशत बढ़ता है तो भी सपा के लिए शुभ संकेत ही मानेंगे. सपा मुखिया चाहते ही हैं कि समाजवादी पार्टी राष्ट्रीय पार्टी बने तो इसके लिए विभिन्न राज्यों में मत प्रतिशत बढ़ना जरूरी है. इसीलिए अब समाजवादी पार्टी भी विभिन्न राज्यों के चुनाव में सहभागिता करने लगी है.
महाराष्ट्र में सपा को कांग्रेस से सीटें मिलने की उम्मीदःहरियाणा और जम्मू कश्मीर में समाजवादी पार्टी को कांग्रेस से भले ही एक भी सीट न मिली हो, लेकिन महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सपा मुखिया अखिलेश को कांग्रेस से पूरी उम्मीद है. यहां पर समाजवादी पार्टी कांग्रेस से कम से कम चार से पांच सीटें चाहती है. समाजवादी पार्टी के महाराष्ट्र में वर्तमान में दो विधायक भी हैं. ऐसे में हो सकता है कि कांग्रेस यहां पर अन्य दूसरे राज्यों की तरह समाजवादी पार्टी से व्यवहार न करे और सीटों की डिमांड पूरी कर दे. हालांकि हरियाणा और जम्मू कश्मीर में कांग्रेस ने सपा के साथ जो किया इसे लेकर अभी भी समाजवादी पार्टी सशंकित है.
कांग्रेस से बदला ले सकती है सपाःसमाजवादी पार्टी से कांग्रेस जिस तरह का व्यवहार कर रही है वह उस पर भारी भी पड़ सकता है. कारण है कि उत्तर प्रदेश की 10 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होने हैं. कांग्रेस पार्टी इनमें से समाजवादी पार्टी से पांच सीटें मांग रही है, लेकिन अखिलेश को यह बात जरूर याद रहेगी कि जिन जिन राज्यों में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस से सीटें मांगी थीं वहां पर कांग्रेस ने झटका दिया. ऐसे में कांग्रेस की जो डिमांड है उस पर अब अखिलेश पानी फेर सकते हैं.
कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन है. गठबंधन के तहत हम चुनाव लड़ते हैं. जहां तक बात सीटों के बंटवारे की है तो यह राष्ट्रीय नेतृत्व तय करता है कि कहां कितनी सीटें देनी हैं. हरियाणा और जम्मू कश्मीर में भी नेतृत्व ने ही तय किया होगा. उसी ने फैसला लिया होगा. जहां तक उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव के लिए सीटों की डिमांड की बात है तो समाजवादी पार्टी से हम पांच सीटें मांग रहे हैं. राष्ट्रीय नेतृत्व को इन पांच सीटों का प्रस्ताव भेजा गया है और यह पांच सीटें ऐसी हैं जो सपा की नहीं है, बल्कि इन पर भाजपा का कब्जा है. उन्हीं सीटों की डिमांड हमने की है. अब कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व से तय करेगा और उसके बाद सीटें मिलेंगी.-अजय राय, प्रदेश अध्यक्ष-कांग्रेस