कुल्लू:हिंदू पंचांग के अनुसार भद्रा काल को शुभ नहीं माना जाता है. भद्रा काल में शुभ कार्य करने की मनाही होती है. राखी पर भी इस बार भद्रकाल आ रहा है.इस साल रक्षाबंधन का त्योहार 19 अगस्त को मनाया जाएगा. वहीं, सुबह से ही भद्रा का काल शुरू हो जाएगा. भद्रा काल दोपहर 1:30 तक रहेगा. भद्रा काल में किसी भी प्रकार का शुभ कार्य करने की मनाही शास्त्रों में बताई गई है. ऐसे में भद्राकाल में बहनें भाइयों को राखी नहीं बांध पाएंगी. वहीं, इस साल भी भद्रा के चलते लोगों के बीच रक्षाबंधन को लेकर संशय है. भद्रा क्या है और किस तरह से इसका प्रभाव रहता है. आज हम इसके बारे में जानेंगे.
आचार्य दीप कुमार ने बताया, "किसी भी मंगल कार्य में भद्रा योग का विशेष ध्यान रखा जाता है और भद्रा काल में मंगल उत्सव की शुरुआत या समाप्ति अशुभ मानी गई है. ऐसे में हिंदू पंचांग के अनुसार भद्रा की उपस्थिति देखने के बाद ही हर प्रकार के कार्यों को करने की अनुमति दी जाती है. हिंदू पंचांग में पांच प्रमुख अंग होते हैं और यह तिथि, वार, योग, नक्षत्र, करण होते हैं. इनमें करण एक महत्वपूर्ण अंग होता है. यह तिथि का आधा भाग होता है. करण की संख्या 11 होती है और यह चर और अचर में बांटे गए हैं. चर कारण में बल, बालव, कौलव, तेतील, गण, वाणिज और विष्टि गिने जाते हैं. अचर करण में शकुनि, चतुष्पद, नाग और किस्तघुन होते हैं. इन 11 करण में सातवां करण विष्टि का नाम ही भद्रा है और यह सदैव गतिशील रहता है."
राक्षसों का वध करने के लिए पैदा हुई थी भद्रा
आचार्य दीप कुमार ने बताया कि वैसे तो भद्रा का शाब्दिक अर्थ कल्याण करने वाला है, लेकिन इस अर्थ के विपरीत भद्र या विष्टि करण में शुभ कार्य निषेध बताए गए हैं. भद्रा तीनों लोकों में घूमती है और जब यह मृत्यु लोक यानी धरती लोक में होती है. तब सभी कार्यों में यह बाधक मानी गई है. जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ, मीन राशि में विचरण करता है उस दौरान भद्रविष्टीकरण का योग होता है और भद्रा पृथ्वी लोक में रहती है. इस समय सभी कार्य वर्जित कहे गए हैं. शास्त्रों के अनुसार दैत्यों को खत्म करने के लिए भद्रा गधे के मुख और लंबे पूछ और तीन पैर लिए पैदा हुई थी. भद्रा भगवान सूर्य और पत्नी छाया की कन्या और शनि देव की बहन है.