शिमला:देश में ग्राम प्रधान से लेकर लोकसभा चुनाव तक में आपने कई बार एक कहावत जरूर सुनी होगी. "इनकी तो जमानत भी जब्त हो गई". क्या आप जानते हैं कि चुनाव में जमानत जब्त होने का क्या मतलब है ? देश की चुनावी प्रक्रिया में इससे जुड़े क्या नियम कायदे हैं ? आज इसी जमानत जब्त को लेकर आपको पूरी जानकारी देते हैं. ताकि इस बार जब 4 जून को लोकसभा चुनाव का परिणाम आए तो आप भी ये आसानी से समझ पाएं कि किन-किन कैंडिडेट्स की जमानत जब्त हुई है.
चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशियों को जमा करनी होती है जमानत राशि
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है. यहां ग्राम प्रधान से लेकर मेयर और सांसद से लेकर राष्ट्रपति तक का चुनाव वोटिंग से होता है. हर साल देश के किसी ना किसी कोने में कोई ना कोई चुनाव होता रहता है. ऐसे में किसी भी चुनाव को लड़ने के इच्छुक शख्स को चुनाव आयोग में जमानत के तौर पर एक निश्चित राशि जमा करनी होती है. फिर चाहे वो किसी पार्टी से संबंधित प्रत्याशी हो या फिर आजाद उम्मीदवार. ग्राम पंचायत से लेकर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में जमानत के तौर पर अलग-अलग राशि तय है. जो चुनाव लड़ने के इच्छुक व्यक्ति को चुकानी होती है.
किस चुनाव के लिए कितनी जमानत राशि ?
लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के लिए जमानत राशि का जिक्र रिप्रेंजेंटेटिव्स ऑफ पीपुल्स एक्ट, 1951 में किया गया है. जबकि राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए जमानत राशि का प्रेसिडेंट एंड वाइस प्रेसिडेंट इलेक्शन एक्ट, 1952 में जिक्र है. इसके अलावा लोकसभा और विधानसभा चुनाव में जनरल कैटेगरी और SC/ST वर्ग के प्रत्याशियों के लिए अलग-अलग जमानत राशि तय की गई. जबकि, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के इलेक्शन में सभी कैटेगरी के कैंडिडेट के लिए एक तय राशि होती है.
विधानसभा चुनाव में सामान्य वर्ग से ताल्लुक रखने वाले किसी दल या निर्दलीय उम्मीदवार को 10 हजार रुपये जमानत के तौर चुनाव आयोग में जमा करनी होती है. जबकि विधायकी लड़ने वाले एससी/एसटी वर्ग के कैंडिडेट को केवल 5 हजार चुनाव में जमानत राशि के तौर पर जमा करनी होती है. वहीं, लोकसभा चुनाव में सामान्य वर्ग प्रत्याशी को 25 हजार राशि जमानत के तौर पर चुनाव आयोग में जमा करनी होती है. जबकि एससी/एसटी वर्ग के कैंडिडेट को सिर्फ 12,500 रुपये जमा करने होते हैं. इसी तरह ग्राम पंचायत से लेकर राष्ट्रपति के चुनाव तक जमानत की राशि तय है.