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नए साल का स्वागत: काशी-मथुरा, अयोध्या नहीं जा रहे, चलिए ये मंदिर घूम आइए, मन को मिलेगी शांति - VISIT THESE TEMPLES IN NEW YEAR

काशी-मथुरा, राम मंदिर, के अलावा ये मंदिर भी हैं आस्था के केन्द्र, नए साल पर करें इन जगहों की सैर.

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नए साल पर करें इन धार्मिक स्थलों की सैर (Photo Credit; ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 31, 2024, 11:41 AM IST

लखनऊः नए साल के स्वागत के लिए इस बार भी काशी, मथुरा में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ेगी. वहीं, मंदिर स्थापना के बाद अयोध्या में पहली बार नए साल का स्वागत भव्य अंदाज में होगा. ऐसे में कई भक्त ऐसे भी हैं जो इन तीनों ही धार्मिक स्थलों पर नहीं जा पा रहे हैं. ऐसे लोगों की सुविधा के लिए हम आपको कुछ ऐसे धार्मिक स्थलो के बारे में बताने जा रहे हैं जहां आप आसानी से जा सकते हैं और परिवार के साथ दर्शन-पूजन कर सकते हैं. यहां आपको काशी-मथुरा या अयोध्या जैसी भीड़ नहीं मिलेगी. चलिए जानते हैं ऐसे धार्मिक स्थलों के बारे में.

1. मनगढ़ भक्तिधाम मंदिर, प्रतापगढ़ःप्रतापगढ़ के कुंडा तहसील मनगढ़ में स्थित भक्तिधाम मंदिर को जगद्गुरु कृपालु जी महाराज ने बनवाया था. यह मंदिर श्रीकृष्ण के प्रति श्रद्धा, प्रेम और भक्ति को दर्शाने वाला दिव्य धाम है. इस मंदिर में राधा-कृष्ण के दर्शन के लिए वर्ष भर देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं. मंदिर में प्रवेश मात्र से ही मूर्तियां मन को मोह लेती हैं. वहीं बाहर की तरफ सुन्दर गार्डेन जिसमें कृष्ण राधा और कई अन्य मूर्तियां स्थापित हैं.

मनगढ़ भक्तिधाम मंदिर, प्रतापगढ़ (Photo Credit; ETV Bharat)

2. चित्रकूट धामः चित्रकूट हिन्दुओं की आस्था का केंद्र है. यह वही स्थान है जहां कभी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने सीता और लक्ष्मण के साथ अपने वनवास के साढ़े ग्यारह वर्ष बिताए थे. मंदाकिनी नदी के किनारे बसा चित्रकूट धाम प्राचीनकाल से ही हमारे देश का सबसे प्रसिद्ध धार्मिक सांस्कृतिक स्थल रहा है. आज भी चित्रकूट की भूमि राम, लक्ष्मण और सीता के चरणों से अंकित है. यहां आप भरत कूप,जानकी कुंड,कामदगिरि,रामघाट, स्फटिक शिला, गुप्त गोदावरी, हनुमान धारा आदि स्थलों का भ्रमण और दर्शन कर सकते हैं.

चित्रकूट धाम, चित्रकूट (Photo Credit; ETV Bharat)

3. अक्षय वट, प्रयागराजः प्रयागराज में प्राचीन बरगद का यह पेड़ अकबर के किले में स्थित है. इस वट वृक्ष का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्‍व भी है. इससे लोगों की मान्‍यता और आस्‍था भी जुड़ी है. अक्षयवट प्रदेश सरकार की विरासत सूची में भी शामिल है. पुराणों के अनुसार प्रलय के समय जब समूची पृथ्वी डूब जाती है तो जो एक वृक्ष बच जाता है, वही अक्षयवट है. इसे सनातनी परंपरा का संवाहक भी कहा जाता है. मान्यता है कि इसके एक पत्ते पर ईश्वर बाल रूप में रहकर सृष्टि को देखते हैं. अक्षयवट को 300 वर्ष पुराना माना गया है. मान्यता है कि जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभ देव ने भी इस वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था.

अक्षय वट, प्रयागराज (Photo Credit; ETV Bharat)

4. तुलसी मानस मंदिर, वाराणसीः मंदिरों का शहर कहे जाने वाले काशी में यह तुलसी मानस मंदिर स्थित है. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसी स्थान पर तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना की थी, इसलिए इसे तुलसी मानस मंदिर कहा गया. इस मंदिर की अलग ही खासियत है. तुलसी मानस मंदिर की सभी दीवारों पर रामचरितमानस के दोहे और चौपाइयां लिखी हैं. यहां पर भगवान श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण और हनुमानजी की प्रतिमाएं हैं. बनारस के भीड़ भरे माहौल से हटकर यह मंदिर शांति का प्रतीक है.

तुलसी मानस मंदिर, वाराणसी (Photo Credit; ETV Bharat)

5. गोरखनाथ मन्दिर, उत्तर प्रदेशः यह गोरखपुर नगर में स्थित है. ज्वालादेवी के स्थान से परिभ्रमण करते हुए ‘गोरक्षनाथ जी’ ने आकर भगवती राप्ती के तटवर्ती क्षेत्र में तपस्या की थी और उसी स्थान पर दिव्य समाधि लगाई थी. यहां वर्तमान में ‘श्री गोरखनाथ मंदिर (श्री गोरक्षनाथ मंदिर)’ स्थित है. मकर संक्रान्ति के अवसर पर यहां एक माह तक मेला लगता है. इसे खिचड़ी मेला भी कहा जाता है. गोरखनाथ मंदिर का इतिहास गोरखनाथजी ने नेपाल और भारत की सीमा पर प्रसिद्ध शक्तिपीठ देवीपातन में तपस्या की थी. उसी स्थल पर पाटेश्वरी शक्तिपीठ की स्थापना हुई. इस मंदिर के उपपीठ बांग्लादेश और नेपाल में भी स्थित है. नाथ संप्रदाय के इस प्रमुख मंदिर के महंत यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ हैं.

गोरखनाथ मन्दिर, उत्तर प्रदेश (Photo Credit; ETV Bharat)

6. शीतला माता मंदिर, लखनऊः मान्यता है कि लखनऊ के इस प्रसिद्ध मंदिर में माता शीतला अपनी 7 बहनों के साथ विराजमान हैं. सात बहनों में माता सरस्वती, दुर्गा, काली, भैरवी, अन्नपूर्णा, चंडी, मंशा देवी विराजमान हैं. इस मंदिर को न सिर्फ हिन्दुओं बल्कि नवाबों और राजा टिकैतराय का भी संरक्षण मिला था. मंदिर में चारमुखी शिवलिंग सहित कुल 28 शिवलिंग हैं. यहां लोग बड़ी संख्या में दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

शीतला माता मंदिर, लखनऊ (Photo Credit; ETV Bharat)

7. ब्रह्मखूंटी, बिठूरःउत्तर प्रदेश के प्राचीन शहरों में से एक कानपुर है. गंगा नदी के किनारे बसा ये शहर अपने कनपुरिया बोली के लिए फेमस है. बिठूर के गंगा किनारे वाल्मिकि आश्रम है. ये स्थान हिंदुओं के लिए खास है. ऐसा माना जाता है कि भगवान राम के पुत्र लव और कुश का जन्म यहीं हुआ था. वहीं आश्रम के पास ध्रुव टीला है. इसी टीले पर धु्व्र ने भगवान विष्णु की तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर विष्णु ने ध्रुव को तारे के रूप में अमर होने का वरदान दिया था. यहां ब्रह्मखूंटी भी विराजमान है. मान्यात है कि इसे ब्रह्माजी ने लगाया था. यह पृथ्वी का केंद्र मानी जाती है.

ब्रह्मखूंटी, बिठूर, कानपुर (Photo Credit; ETV Bharat)

(नोटः यह खबर धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं पर आधारित है.)

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