शिमला: केरल के वायनाड में भारी बारिश के बाद लैंडस्लाइड में मरने वालों की संख्या 200 के पार पहुंच गई है. करीब इतने ही लोग अस्पताल में भर्ती हैं और कई लापता है. भूस्खलन के कारण घरों, सड़कों, सरकारी भवनों को भारी नुकसान हुआ है. बताया जा रहा है कि तलाशी अभियान को और कारगर बनाने के लिए और अतिरिक्त जवानों को तैनात किया जाएगा. फिलहाल 500 से 600 जवान मौके पर हैं. सेना ने बचाव अभियान के लिए घटनास्थल पर एक अस्थायी पुल का निर्माण किया है.
कुदरत का कहर जब बरपता है तो उसके आगे इंसान की कोई बिसात नहीं रहती. ऐसी आपदाएं कई परिवारों को एक साथ तबाह कर देती हैं और हर किसी को झकझोर देती हैं. वायनाड से सामने आ रही तस्वीरें रोंगटे खड़े करने वाली हैं. राहत और बचाव कार्य चल रहा है लेकिन बरसात का मौसम राहत की राह में रोड़ा बन रहा है. हर बीतते वक्त के साथ मौत का आंकड़ा भी बढ़ रहा है.
हिमाचल ने सहे हैं दर्जनों आपदाओं के जख्म
केरल के वायनाड में जो हुआ है वैसा पहाड़ी राज्यों में मानो हर बरसात का दस्तूर है. वायनाड की तरह हिमाचल में भी कई प्राकृतिक आपदाएं आई हैं, ऐसी तस्वीरें लगभग हर साल सामने आती हैं जो पूरे देश को हिलाकर रख दिया है. हिमाचल को प्राकृति ने खूबसूरती की नेमत बख्शी है. इसके कोने-कोने में प्राकृति का श्रृंगार है. भले ही हिमाचल बेहद खूबसूरत प्रदेश है, लेकिन ये प्रदेश आपदा की नजर से बेहद संवेदनशील है. कई बार इस प्रदेश को ऐसे जख्म मिले, जो शायद कभी नहीं भर सकते हैं. उन लम्हों को याद कर हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाएंगे. इन आपदाओं में लाखों के जान-माल का नुकसान हुआ है. कई जिदंगियां मलबे के नीचे घुटकर खामोश हो गई. हिमाचल में रहने वाले लोगों को हमेशा डर रहता है कि यहां कब पहाड़ दरक जाए, कब बादल फट जाए कोई नहीं जानता. बाहरी लोगों के लिए हिमाचल 2-4 दिन सैर सपाटे के नजर से भा सकता है,लेकिन यहां के लोगों की जिंदगी पहाड़ जैसे ही मुश्किल है.
लुगड़भट्टी का भयावह हादसा
- 29 साल पहले कुल्लू के लुगड़भट्टी में 65 जिंदगियों को प्राकृतिक आपदा ने एक झटके में लील लिया. कुल्लू जिला मुख्यालय से तीन किलोमीटर दूर छरूड़ू के पास लुगड़भट्टी में 12 सितंबर 1995 को भयावह भूस्खलन हुआ. भूस्खलन में पूरी पहाड़ी धंस गई थी. इस भूस्खलन में 65 लोग मलबे में जिंदा दफन हो गए थे. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट ने अपनी रिपोर्ट में 65 लोगों के जिंदा मलबे में दबने की रिपोर्ट दी थी. सभी मृतक श्रमिक थे और कच्चे मकानों में रहते थे. कुछ लोगों का ये भी मानना है कि हादसे में सौ से अधिक लोग मारे गए थे.
कोटरूपी हादसा
- इसके अलावा 2017 का कोटरूपी हादसा गहरे जख्म दे गया था. उस दौरान मनाली जा रही एचआरटीसी बस मलबे में दब गई थी और 47 लोगों की मौत हुई थी. दो साल तक यहां भूस्खलन का सिलसिला यहां चलता रहा था. इस कारण कई लोगों ने घर छोड़ दिए थे. कई घर भूस्खलन के कारण दरक गए थे. हैरत की बात है कि हर दो दशक में यानी बीस साल में कोटरूपी में भूस्खलन हुआ है. वर्ष 1977 के 1997 और फिर 2017 में यहां हादसा हुआ, लेकिन वर्ष 2017 का हादसा कभी न भूलने वाले जख्म दे गया. हादसे में मारे गए लोगों को राज्य सरकार ने चार लाख रुपए व केंद्र सरकार ने दो लाख रुपए का मुआवजा दिया था.
शिमला में शिव मंदिर का हादसा
- शिमला के समरहिल स्थित शिव मंदिर के लिए सावन का ये सोमवार काल का संदेश लेकर आया. यहां मंदिर लैंड स्लाइड की चपेट में आया और इस हादसे ने 20 लोगों की जान ले ली.
शिमला के शिव मंदिर में हुआ हादसा (ईटीवी भारत)
गानवी में गई थी 52 लोगों की जान
- साल 2007 में बादल फटने की घटना में रामपुर के गानवी में 52 लोगों की मौत हुई.
चिड़गांव में 115 लोग काल के मुंह में गए
- हिमाचल में 1990 से 2001 के बीच बादल फटने की तीस से अधिक घटनाएं हुईं. बादल फटने की सबसे भयावह घटना साल 1997 में अगस्त माह में चिड़गांव की थी, जिसमें 115 लोग काल के मुंह में चले गए. अगस्त 1997 में रोहड़ू में पब्बर नदी में आई भयंकर बाढ़ ने कहर मचा दिया और भू-स्खलन के कारण 124 लोगों की मौत हुई थी.
अन्य हादसे
- 31 जुलाई 2000 को ग्लेशियरों के पिघलने सेसतलुज नदी का जलस्तर अचानक बढ़ गया था. इससे किन्नौर में सतलुज नदी ने भारी तबाही मचाई थी. इस त्रासदी में 135 लोगों की जान गई थी. 250 मकान क्षतिग्रस्त हो गए थे. किन्नौर के खाब से लेकर चौरा तक 18 पुल, 12 झूला पुल और NH-5 क्षतिग्रस्त हुए. बिजली, सिंचाई और पेयजल योजनाओं को नामों निशान मिट गया था. स्थिति सामान्य होने में छह महीने लग गए थे. इस त्रासदी में 200 करोड़ का नुकसान हुआ था.
- कुल्लू जिला के गड़सा में साल 2003 में 40 लोगों की जान चली गई थी. 2003 को कुल्लू के ही सोलंग में भयानक बाढ़ में 30 लोगों की मौत हो गई.
- 2005 में पारछू झील टूटने से किन्नौर से लेकर कांगड़ा तक भयावह नुकसान हुआ था. कई पुल, परियोजनाएं नेस्तानाबूद हो गई थी. कई लोगों की मौत हुई थी. हिमाचल को उस आपदा में 800 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था.
- वर्ष 2015 में मानसून सीजन में मणिकर्ण में चट्टानें गिरने से 10 श्रद्धालु मारे गए थे.
- हिमाचल में वर्ष 2018 में बरसात के सीजन में जून से लेकर अगस्त तक 343 लोग मारे गए. इस सीजन में 1285 पशुधन काल का ग्रास बन गए. इसके अलावा 5160 मकान क्षतिग्रस्त हुए.
- इसी तरह वर्ष 2019 में 218 लोगों की जान गई, 568 पशुओं की मौत हुई, 3031 मकान क्षतिग्रस्त हुए और 1202 करोड़ रुपए का कुल नुकसान हुआ.
- वर्ष 2020 में 240 लोगों की मौत के साथ 181 पशु मारे गए. कुल 1346 मकान ध्वस्त हुए और संपत्ति का कुल नुकसान 873 करोड़ रुपए था. इसी तरह वर्ष 2022 में 1981 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान संपत्तियों को हुआ. मानसून सीजन में मरने वालों की संख्या 284 रही. कुल 589 पशु मारे गए 990 मकान क्षतिग्रस्त हुए.
निगुलसरी हादसा
- 2021 में किन्नौर में भावानगर उपमंडल के निगुलसरी में 28 लोगों की मौत हो गई थी. यहां एचआरटीसी बस पहाड़ी से दरके मलबे के नीचे दब गई थी.
- साल 2021 में जब दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही थी, उस साल मानसून सीजन में तो हिमाचल को पांच साल में सबसे अधिक जनहानि का दुख झेलना पड़ा. साल 2021 में हिमाचल में बरसात के कारण पेश आए हादसों में 476 लोगों की मौत हुई. पशुधन के रूप में 586 पशु मारे गए. तब 1976 मकानों को नुकसान के अलावा कुल संपत्ति का नुकसान 1151 करोड़ रुपए रहा. 2022 में 284 लोग मारे गए और कुल 1981 लोग मारे गए.
- 2023 की आपदा के जख्म हरे
- साल हिमाचल के लिए भयावह था. सुबह घर से निकले कई लोग वापस घर नहीं लौट पाए. हर कोई खौफ के साए में जी रहा था. कई मकान जमीदोज हो गए. पूरे के पूरे परिवार मलबे के नीचे दफन हो गए. कुल्लू, सिरमौर हर जगह मौत का मंजर था. हिमाचल को 2023 की आपदा में हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था. 2023 में हिमाचल 509 लोगों की मौत हुई थी. 9712 करोड़ रुपए की संपत्ति नष्ट हो गई. यही नहीं, 2944 घर पूरी तरह से ध्वस्त हो गए. इसके अलावा 12304 घरों को नुकसान हुआ. पशु धन की व्यापक तबाही हुई और राज्य भर में 7250 गोशालाएं नष्ट हो गई. चंडीगढ़-शिमला हाईवे सहित कुल्लू मनाली में हाईवे बह गए.
- हिमाचल में 14 अगस्त 2023 को एक ही दिन में 55 लोगों की मौत हुई थी. एक ही दिन में 55 मौतों ने तब देश को दहला दिया था. उस दिन शिमला जिले में 14, मंडी जिले में 19, सिरमौर जिले में 7, सोलन जिले में 13 लोगों सहित हमीरपुर, कांगड़ा, बिलासपुर में विभिन्न हादसों में हुई मौतों को मिलाकर डेथ का आंकड़ा 55 पहुंच गया था.
2018 से 2022 तक के आंकड़े (ईटीवी भारत)
इसी तरह पूर्व की घटनाओं पर नजर डालें तो हिमाचल में 1968 में किन्नौर के मालिंग नाला में भारी भूस्खलन हुआ. उसमें एक किलोमीटर तक नेशनल हाइवे बह गया था. ये जगह अभी भी लैंड स्लाइड के नजरिए से संवेदनशील है. फिर दिसंबर 1982 में किन्नौर में शूलिंग नाला में भूस्खलन हुआ. उस हादसे में तीन पुल और डेढ़ किलोमीटर लंबी सडक़ ध्वस्त हो गई. मार्च 1989 में रामपुर के झाकड़ी में आधा किलोमीटर सडक़ बर्बाद हो गई. यहां की जमीन और पहाड़ियां अभी भी धंसाव की दृष्टि से संवेदनशील है.
विकास के नाम पर विनाश
हर साल आने वाली बाढ़ हिमाचल प्रदेश और यहां के लोगों का इम्तिहान लेती है. हजारों लोगों के तो शव तक नहीं मिल पाए. विकास के नाम पर अंधी दौड़ का परिणाम आज लोग भुगत रहे हैं. किन्नौर, शिमला जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में पावर प्रोजेक्ट के नाम पहाड़ों को खोखला किया जा रहा है. किन्नौर के पहाड़ जर्जर हो चुके हैं. मिट्टी के ये पहाड़ बारूद के समान हैं जो कबी फट्ट सकते हैं. यहां साल सैकड़ों भू-स्खलन की घटनाएं होती है. एनएच के नाम पर पहाड़ों की अवैज्ञानिक तरीके से कटिंग की जा रही है. 2023 में मनाली-कीरतपुर फोरलेन पर कई भूस्खलन की घटनाएं हुई. भूस्खलन के साथ साथ हिमाचल में पिघल रहे ग्लेशियरों से भी खतरा है. हिमालयन रीजन में हर साल नई ग्लेशियर झीलों का निर्माण और उनका आकार बढ़ रहा है. विकास के नाम पर बिना सोचे समझे प्राकृति का हमने ऐसा दोहन किया है कि अब आगे कुंआ और पीछे खाई है.
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