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काशी के इस कुंड पर भटकती आत्माओं को मिलती है मुक्ति, पितृपक्ष में होता है विशेष पूजन - Pishach Mochan Kund - PISHACH MOCHAN KUND

पितृपक्ष के दौरान काशी में पिशाच मोचन कुंड का महत्व ज्यादा हो जाता है. काशी का यह कुंड पौराणिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है.

काशी के पिशाच मोचन कुंड पर पितृ पक्ष में विशेष पूजन होता है.
काशी के पिशाच मोचन कुंड पर पितृ पक्ष में विशेष पूजन होता है. (Photo Credit; ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 17, 2024, 9:54 AM IST

Updated : Sep 17, 2024, 12:36 PM IST

काशी के पिशाच मोचन कुंड पर पितृ पक्ष में विशेष पूजन होता है. (Video Credit; ETV Bharat)

वाराणसी: मान्यता है कि शिव नगरी काशी में भगवान भोलेनाथ लोगों को तारक मंत्र देते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस मान्यता के साथ काशी में लोग दूर-दूर से आते हैं, लेकिन काशी सिर्फ मोक्ष के लिए ही नहीं बल्कि मृत्यु बाद होने वाले श्राद्ध कर्म, पिंडदान के लिए भी महत्वपूर्ण मानी जाती है. धार्मिक मान्यता यह है कि जिस तरह गया को भगवान विष्णु का पद यानी पैर माना जाता है, वैसे ही काशी को भगवान विष्णु की नाभि के रूप में पूजा जाता है. शिव नगरी में विष्णु का भी स्थान महत्वपूर्ण माना गया है. यही वजह है कि पितृपक्ष के दौरान काशी में पिशाच मोचन कुंड का महत्व ज्यादा हो जाता है. काशी का यह कुंड पौराणिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है. 18 सितम्बर से 2 अक्टूबर तक पितृपक्ष होगा. काशी का पिशाच मोचन कुंड वह स्थान है, जहां प्रेत और पिशाच बांधे जाते हैं. पितृपक्ष में गया से पहले काशी के स्थान पर श्राद्ध कर्म और पिंडदान करना जरूरी माना जाता है.

असमय मृत्यु पर आत्मा को नहीं मिलती शांति:दरअसल पितृ पक्ष के मौके पर 15 दिन का जो समय होता है, वह पितरों के आगमन और उन्हें खुश करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि गया में इस दौरान श्राद्ध कर्म करने से पितरों को शांति मिलती है और घर में भी सुख संपन्नता का माहौल बनता है. लेकिन गया से पहले काशी में श्राद्ध कर्म करने का विधान बेहद महत्वपूर्ण है. इस बारे में पिशाच मोचन तीर्थ के प्रधान पुरोहित प्रदीप कुमार पांडेय उर्फ मुन्ना गुरु का कहना है कि किसी हादसे, दुर्घटना या फिर असमय अपनी जीवन लीला को समाप्त कर लेना, इनके बाद सनातन धर्म में आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती, ऐसी मान्यता मानी गई है. मृत्यु उपरांत आत्मा प्रेत योनि में पहुंच जाती है. प्रेत योनि में पहुंचने की वजह से जीवन में उन लोगों को काफी परेशानियां उठानी पड़ती हैं, जो दुनिया छोड़कर असमय जाने वाले लोगों से जुड़े होते हैं.

इस विधि से आत्माओं को मिलती है शांति:काशी के तीर्थ पुरोहित बताते हैं कि वाराणसी के पिशाच मोचन कुंड पर नारायण बलि श्राद्ध पूर्ण होता है. इसमें अकाल मृत्यु के दौरान भटकती आत्माओं को शांत करने की प्रक्रिया को पूर्ण किया जाता है, क्योंकि अकाल मृत्यु के बाद आत्मा को शांति नहीं मिलती है. जलकर मरना, सुसाइड करना, एक्सीडेंट में जान गंवा देना या कम उम्र में मृत्यु होने की स्थिति में आत्मा भटकती रहती है. काशी के इस स्थान पर नारायण बलि के जरिए इन आत्माओं की शांति की जाती है.

गरुण और शिव पुराण में है वर्णित:बताते हैं कि परिवार के सदस्यों के अलावा कई बार उक्त व्यक्ति के नजदीकी लोगों को भी परेशानियां होती हैं. जिसके लिए सही समय पर आत्मा को पिशाच योनि से मुक्ति दिलाने के लिए सही अनुष्ठान करना आवश्यक हो जाता है. वाराणसी के पिशाच मोचन कुंड पर 15 दिन के इस पखवाड़े का विशेष महत्व है. इसकी बड़ी वजह यह है कि वाराणसी का पिशाच मोचन कुंड गरुड़ पुराण और शिव पुराण में वर्णित उस कथा को बताता है, जिसमें भगवान गणेश भी एक पिशाच से परेशान होकर काशी के इसी कुंड पर पहुंचकर उस पिशाच को प्रेत योनि से मुक्ति के लिए श्राद्ध कर्म और तर्पण किए थे.

श्राद्ध कर्म और पिंडदान तर्पण आवश्यक:प्रदीप कुमार पांडेय का कहना है कि श्राद्ध करने से व्यक्ति अपने पितरों को शांति और गति देने का काम करते हैं. उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति दिलाते हैं. धर्म ग्रंथों में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यदि पितृ दोष से मुक्ति चाहिए तो श्राद्ध कर्म और पिंडदान तर्पण अति आवश्यक है, नहीं तो पितृ दोष की कमिया पूरे परिवार को परेशान करती हैं. पितृ दोष होने पर आर्थिक सामाजिक और मानसिक तीनों तरह की परेशानियां घरों में देखी जाती हैं. इसलिए पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध करने से जीव की मुक्ति तो होती है. साथ ही परिवार में सुख शांति समृद्धि भी आती है. इसके लिए पितरों का आशीर्वाद पाना अनिवार्य है और काशी का यह स्थान इसी के लिए जाना जाता है.

(डिस्क्लेमर: यह खबर धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है, ईटीवी भारत इसकी पुष्टि नहीं करता. )

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Last Updated : Sep 17, 2024, 12:36 PM IST

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