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राम-रावण के युद्ध में पत्थर मारते हैं आदिवासी, खरोंच तक नहीं आती राम भक्तों को

विदिशा के काला देव में अनोखा दशहरा मनाया जाता है. जहां आदिवासी राम दल पर पत्थर बरसाते हैं, लेकिन किसी को चोट नहीं लगती.

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 4 hours ago

Updated : 4 hours ago

VIDISHA KALA DEV DUSSEHRA
दशहरा में राम भक्तों को पत्थरों से मारते हैं आदिवासी (ETV Bharat)

विदिशा: विजयादशमी के दिन देश भर में जगह-जगह रावण के पुतले का दहन किया जाता है. विदिशा के काला देव में पुतला दहन की यह परंपरा बड़े अनोखे ढंग से निभाई जाती है. यहां पर इस दिन राम और रावण की सेना के बीच में अनोखा युद्ध होता है. इसमें राम दल पर भील, बंजारे पत्थर फेंकते हैं. हैरान कर देने वाली बात तो ये है कि, इस पत्थरबाजी में किसी भी राम भक्त को खरोंच तक नहीं आती. कहा जाता है कि प्रभु राम इन पत्थरों की दिशा मोड़ देते हैं. इस चमत्कार को देखने के लिए हर साल दूर-दूर से लोग यहां आते हैं.

अचूक निशाने बाज होते भील व बंजारे

भील और बंजारा आदिवासी कुशल निशानेबाज माने जाते हैं. कहा जाता है कि उड़ती हुई चिड़िया को गोफन से पत्थर मारकर गिरा देना इनके लिए आम बात है. लेकिन दशहरे के दिन इनका लगाया हुआ हर निशाना चूक जाता है. दरअसल, विदिशा जिले की सिरोंज विधानसभा के लटेरी तहसील में काला देव नामक गांव में अनोखे ढंग से दशहरा मनाया जाता है. यहां रामभक्त जिन्हें राम दल कहा जाता है, वो भगवान राम का रथ गांव में स्थित एक विशाल मैदान के एक छोर पर खड़ा कर देते हैं. 100 मीटर लंबे मैदान के बीचोबीच एक झंडा गाड़ दिया जाता है.

काला देव में दशहरा मनाने की अनोखी परंपरा (ETV Bharat)

रावण दल के लोग बरसाते हैं पत्थर

मैदान के दूसरे किनारे पर रावण का पुतला लगाया जाता है. उसी तरफ भील और बंजारा समाज के लोग पत्थर और गोफन लेकर खड़े हो जाते हैं. इसके लिए वे पहले से ही बोरियां भर-भर कर पत्थर जमा कर लेते हैं. राम दल को भगवान राम का रथ लेकर मैदान के बीचों बीच गड़े उस झंडे तक जाना होता है. राम दल के लोग राम के जयकारे लगाते हुए आगे बढ़ते हैं, उधर से भील समाज के लोग राम दल पर गोफन से पत्थर बरसना शुरू कर देते हैं. लेकिन इसमें हैरान कर देने वाली बात ये होती है कि, किसी को भी एक भी पत्थर नहीं लगता. उन्हें जरा सी भी खरोंच नहीं आती. वे सकुशल झंडे तक जाते हैं और फिर वापस लौट आते हैं.

देखने वालों का लगता हैं तांता

यह प्रक्रिया 3 बार की जाती है. यानि 3 बार राम दल के लोग राम का रथ लेकर मैदान के बीचों-बीच गड़े झंडे तक जाते हैं और फिर सकुशल वापस लौट आते हैं. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान मैदान के दूसरे छोर पर खड़े भील और बंजारा समाज के युवा लगातार पत्थर बरसाते हैं. उनकी पूरी बोरियां खाली हो जाती हैं, लेकिन किसी को चोट नहीं लगती. इसके बारे में कहा जाता है कि, भगवान श्रीराम पत्थरों का रुख मोड़ कर अपने भक्तों को नुकसान होने से बचा लेते हैं. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. दशहरा के दिन इसको देखने, दूर-दूर से लोग आते हैं. दर्शकों से पूरा मैदान भर जाता है.

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टोंक नवाबों की गोली भी नहीं छू पाई थी भक्तों को

गांव के लोग बताते हैं कि, कई सालों पहले टोंक रियासत के नवाब ने इस दशहरे को रुकवाने का पूरा प्रयास किया था. उन्होंने कहा था कि यह दशहरा नहीं होना चाहिए. लोग जानबूझकर दूसरे को पत्थर मारते हैं. गांव वालों ने जब इसका विरोध किया तो उन्होंने परंपरा को चालू रखने के लिए एक शर्त रख दी. शर्त ये थी कि हम (टोंक रियासत के नवाब) पत्थर की जगह गोली चलाएंगे. अगर किसी भी राम भक्त को गोली लग गई तो यह परंपरा बंद हो जाएगी. नवाबों ने गोली चलाई लेकिन वह गोली किसी भी राम दल को छू भी नहीं पाई. तब से ही यह दशहरा अभी तक लगातार चला आ रहा है.

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