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काशी के इस शिव मंदिर में रहती भगवान विश्वनाथ की आत्मा; अनुष्ठान से पुत्र रत्न की होती प्राप्ती - Varanasi Shiva Temple - VARANASI SHIVA TEMPLE

काशी में स्वयं द्वादश ज्योतिर्लिंग में विराजमान भगवान विश्वनाथ विराजते हैं और यहां का कण-कण शंकर है और ऐसे ही शिव मंदिरों की बड़ी संख्या में एक ऐसा मंदिर भी है, जहां स्वयं भगवान विश्वनाथ की आत्मा विराजमान है. इस स्थान को पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है.

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वाराणसी के आत्मविरेश्वर मंदिर में पुजन कराते पुजारी. (Photo Credit; ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 5, 2024, 11:43 AM IST

वाराणसी: अद्भुत काशी, अकल्पनीय काशी, धर्म नगरी काशी का स्वरूप इतना विशाल है कि उसे शब्दों में बयान करके इसकी तलाश कर पाना भी संभव नहीं है. क्योंकि, काशी अपने आप में अनगिनत रहस्यों को समेट कर आज भी सबसे पुरातन नगरी के रूप में जानी जाती है.

भगवान शिव की नगरी काशी में भगवान शंकर के एक दो नहीं बल्कि सैकड़ो ऐसे मंदिर हैं, जिनका स्कंद पुराण शिव पुराण और न जाने कितनी अन्य धर्म से जुड़ी किताबें में उल्लेख मिलता है. काशी में स्वयं द्वादश ज्योतिर्लिंग में विराजमान भगवान विश्वनाथ विराजते हैं और यहां का कण-कण शंकर है और ऐसे ही शिव मंदिरों की बड़ी संख्या में एक ऐसा मंदिर भी है, जहां स्वयं भगवान विश्वनाथ की आत्मा विराजमान है. इस स्थान को पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है.

वाराणसी के आत्मविरेश्वर मंदिर की महिमा बताते पुजारी. (Video Credit; ETV Bharat)

काशी के सिंधिया घाट गंगा किनारे विराजमान शिव मंदिर आत्मविरेश्वर महादेव का अपना ही अद्भुत और अलौकिक स्वरूप है. इस मंदिर में आने वाले लोग एक उम्मीद के साथ यहां पहुंचते हैं वह उम्मीद है. घर में किलकारियां गूंजे, एक नन्हा मुन्ना घर में खेले और जीवन की सारी खुशियां उसे दंपति को मिले. जिसकी चाह हर कोई करता है. पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए यह स्थान विशेष अनुष्ठान के साथ सिद्धियां को देने वाला है.

भगवान आत्मा वीरेश्वर महादेव का श्रृंगार शाम की सप्त ऋषि आरती, शयन आरती उस तरह होती है जैसी विश्वनाथ मंदिर में संपन्न होती है. इस बारे में काशी पर गहरी शोध करने वाले केंद्रीय ब्राह्मण महासभा के प्रदेश अध्यक्ष अजय शर्मा का कहना है कि काशी में एक तिल भी भूमि लिंग से रहित नहीं है, फिर भी आत्मवीरेश्वर के समान शीघ्र सिद्धि देने वाला दूसरा कोई लिंग नहीं है. धर्म, मोक्ष, काम सुख देने वाला जैसा वीरेश्वर लिंग है, वैसा दूसरा कोई लिंग नहीं है.

इन्हीं कारणों से जगत में वीरेश्वर परम सिद्ध लिंग प्रसिद्ध है. मगध देशाधिपति जितेन्द्रिय विदूरथ भूपाल अपुत्र होने से इसी वीरेश्वर के प्रसाद से पुत्रवान हुआ था. अजय शर्मा बताते हैं कि स्वामी विवेकानंद के पिता विश्वनाथ दत्त और भुवनेश्वरी देवी उनकी मां ने पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए काशी जैसी शिव मंदिर में विशेष अनुष्ठान किया था.

1 वर्ष तक उनका यह अनुष्ठान चल था और उसके बाद स्वामी विवेकानंद जैसा ओजस्वी और तेजस्वी बालक उनके झोली में भगवान भोलेनाथ ने दिया था. इसके बाद उनका मुंडन संस्कार भी इस स्थान पर संपन्न हुआ था.

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