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काशी में 48 वर्षों बाद मां अन्नपूर्णा मंदिर में रजत कलश से स्वर्ण शिखर का हुआ कुंभाभिषेक - VARANASI ANNAPURNA TEMPLE

काशी में 48 सालों बाद मां अन्नपूर्णा मंदिर में स्वर्ण शिखर का कुम्भाभिषेक किया गया.

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मां अन्नपूर्णा शिखर का हुआ कुंभाभिषेक (Photo Credit; ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 7, 2025, 7:31 PM IST

वाराणसी: काशी में अन्नपूर्णा मंदिर के स्वर्ण शिखर का रजत कलश से शंकराचार्य द्वारा 48 सालों बाद कुम्भाभिषेक किया गया. 108 रजत कुभ और स्वर्ण कुभ से शंकराचार्य द्वारा भारत के विभिन्न नदी, समुद्री जल से अभिषेक, स्वर्णालंकार, श्रीयंत्र आदि अर्जित में गये दक्षिण भारत से आये हुये विशेष पुष्पों से अर्चना की गई. महाआरती में शंकराचार्य द्वारा रचित अन्नपूर्णा अधक का पाठ किया गया. फिर आम भक्तों के लिये पट खोला गया.


काशी के अन्नपुर्णा मंदिर में नौ दिवसीय महानुष्ठान के सातवे दिन मंदिर परिसर में महानुष्ठान सुबह सात बजे से प्रतिष्ठांग हवन, शुभ मुहूर्त में देवता मूर्तिप्रतिष्ठा, कुम्भाभिषेक, अर्चन, महानीराजन, पूर्णाहुति प्रसाद शिखर कुम्भाभिषेक सम्पन्न हुआ. कुम्भाभिषेक समारोह में श्रृंगेरी जगद्गुरु विधुशरेखा भारती महास्वामी महाराज को अनुष्ठान स्थल तक ले गए. मधुर ध्वनि के बीच मंदिर में स्थापित गणेश विग्रह की पूजा की गई.

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भगवान गणेश को विशेष अर्घ्य समर्पित करने के बाद मंदिर गर्भगृह का अनावरण किया गया. माता की नव प्रतिमा को देखकर भक्तों ने जयघोष किया. कुंभाभिषेक कर शंकराचार्य ने कहा जन कल्याण, भारत वर्ष के वैभव सुख समृद्धि की वृद्धि है. 48 वर्ष पहले उनके परम गुरु परमपूज्य गुरु शंकराचार्य ने त्रिभुवन पूरी के समय में उनके आग्रह पर मूर्ति प्रतिष्ठा करवाई थीं. महंत शंकरपूरी के कहने पर मेरा यहां आना हुआ है.

शंकराचार्य ने आगे कहाइस बार अति सुन्दर मूर्ति की स्थापना की गई है. जिसको देखने के बाद हटने का मन नहीं करता. इस कार्यक्रम में सहस्त्रचडी, महारूद्र, चतुर्वेद पारायण, अष्टादश पुराण पाठ, दशमहाविद्या जप पूर भारत से आएं हुए है. 485 वैदिक विद्वानों ने सम्पन्न कराया.

चार वेदों और 18 पुराणों का पारायण, एक साथ हो रहे पांच अनुष्ठान :काशी में 48 साल बाद मां अन्नपूर्णा मंदिर का कुंभाभिषेक सम्पन्न हुआ. काशी में पहली बार ऐसा हुआ जिसमें चार वेदों, 18 पुराणों के पारायण के साथ पांच अनुष्ठान हो रहे हैं. नौ दिनों तक चलने वाले इस महानुष्ठान में सात राज्यों से 1100 से अधिक वैदिक विद्वान शामिल रहें. सहस्त्रचंडी, कुमकुमार्चन, वेद, पुराण का पाठ हवन किया गया. 18 पुराणों के मूल रूप का पाठ किया गया. कोटि सहस्त्रार्चन और 10 महाविद्याओं का जप किया गया.

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