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सच्चा प्यार करने वाले प्रेमी जोड़े को एक बार जरूर पढ़नी चाहिए, दशरथ और फगुनिया की दिल छू लेने वाली Love Story - Bihar Mountain Man

Dashrath Manjhi Love Story : बिहार के गया जिले के गहलौर गांव के दशरथ मांझी की प्रेम कहानी एक मिसाल है. मांझी अपने हाथों से 22 सालों तक उस पहाड़ की चट्टानों को काटते रहे, जहां उनकी पत्नी की मौत हुई थी. यहां दशरथ मांझी का स्मारक स्थल और द्वार बनाया गया है, जहां उनकी लव स्टोरी को देखने और सुनने देश-विदेश से पर्यटक पहुंचते हैं. पत्नी फगुनिया की याद में कैसे दशरथ मांझी ने चीर डाला था पहाड़. पढ़ें दशरत मांझी और फगुनिया की दिल छू लेने वाली लव स्टोरी.

दशरथ और फगुनिया की प्रेम कहानी
दशरथ और फगुनिया की प्रेम कहानी

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Feb 14, 2024, 2:09 PM IST

Updated : Feb 14, 2024, 4:38 PM IST

देखें रिपोर्ट.

गया : बिहार के गया जिले में 'माउंटेन मैन' की समाधि स्थली पर्यटकों के लिए प्रेम की मिसाल बन गया है. दशरथ मांझी 22 वर्षों तक उस पहाड़ की चट्टानों तक काटते रहे, जो उनकी पत्नी की मौत की वजह बनी थी. 1960 से 1982 तक उन्होंने अपनी पत्नी फगुनिया के चलते पागलों की तरह छेनी और हथौड़ी से पहाड़ का गुरूर तोड़ा और 360 फीट लंबे और कई फीट चौड़े ऊंचे घर और घाटी के पहाड़ का सीना चीरकर आम लोगों के लिए रास्ता बना दिया.

गहलौर घाटी

राजा महाराजा नहीं मजदूर की प्रेम कहानी :गया जिले में स्थित उनकी माउंटेन मैन की समाधि आज बिहार के ताजमहल के तौर पर भी जानी जाती है. यहां वैलेंटाइन डे पर युवा पीढ़ी, प्रेमी जोड़े, दंपति मन्नत मांगने और दशरथ मांझी की प्यार की दास्तां सुनने जरूर जरूर पहुंचते हैं. यहां 'प्रेम' के ढाई अक्षरों को समझने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी सैलानी आते हैं. यहां पहुंचने वाले पर्यटक तो यहां तक कहते हैं, कि मुगल बादशाह शाहजहां ने अपने प्यार के लिए ताजमहल बना डाला था. लेकिन, माउंटेन मैन दशरथ मांझी और फगुनिया की प्रेम कहानी तो ताजमहल को भी पीछे छोड़ देती है.

22 सालों तक पहाड़ा का गुरूर काटा : 'माउंटेन मैन' के नाम से चर्चित दशरथ मांझी आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन 22 सालों तक उनकी जिद की वजह से गया जिले के गहलौर से वजीरगंज और कई दूसरे गांवों तक पहुंचने का रास्ता आसान हो गया है. 14 जनवरी 1929 को जन्में दशरथ मांझी मुसहर समुदाय से आते थे. वह मजदूरी का काम करते थे. दोपहर में उनके लिए उनकी पत्नी फगुनिया पहाड़ के रास्ते चट्टानों से गुजरते हुए खाना और पानी लेकर आती थी. बाबा दशरथ मांझी और फगुनिया के बीच अगाढ़ प्रेम था. दशरथ मांझी के बेटे भागीरथ मांझी बताते है कि ''उस दौरान रोज सुबह छेनी-हथौड़ी लेकर वो पहाड़ काटने चले जाते थे. लोग उन्हें पागल कहकर बुलाते थे.''

दशरथ मांझी के बेटे भागीरथ मांझी

दशरथ मांझी-फगुनिया की दिलचस्प Love Story : बात 1959 की है, जब फगुनिया हर दिन की तरह बाबा दशरथ मांझी के लिए खाना और पानी लेकर पहाड़ के रास्ते जा रही थी. इसी दौरान फगुनिया का पैर फैसला और गंभीर चोट लगी. नजदीक का अस्पताल 55 किलोमीटर की दूरी पर था. गंभीर रूप से घायल फगुनिया को वहां ले जाने में देर हो गई और उसकी मृत्यु हो गई. पत्नी फगुनिया की मौत से बाबा दशरथ मांझी काफी आहत हुए.

दशरथ पहाड़ तोड़ने के लिए निकल पड़े थे :गहलोर घाटी का वह पहाड़, जहां से अस्पताल की दूरी 55 किलोमीटर थी, अगर पहाड़ों के बीच से रास्ता होता यह दूरी 12 से 15 किलोमीटर तक सिमट जाती और फगुनिया बच जाती. पत्नी की मृत्यु ने बाबा दशरथ को झकझोर दिया. इसके बाद आहत बाबा दशरथ मांझी ने अपनी छेनी और हथौड़ी से गहलोर घाटी के 110 मीटर (360) फीट लंबे और कई मीटर ऊंची- चौड़े पहाड़ को अकेले काटना शुरु कर दिया.

माउंटेन मैन की समाधि स्थली

अब 'फगुनिया' समय पर पहुंचेंगी अस्पताल : प्रेम की इस अनोखी कहानी में बाबा दशरथ मांझी 22 सालों तक अकेले छेनी हथौड़ी से पहाड़ को काटते रहे. आखिरकार 22 सालों की मेहनत के बाद उन्होंने पहाड़ का सीना चीर डाला और रास्ता बना दिया. इस रास्ते के बनने से अस्पताल पहुंचने की दूरी जो कभी 55 किलोमीटर हुआ करती थी, वह 12 से 15 किलोमीटर रह गई. कई गांव आबाद हो गए. हजारों लोगों का भविष्य संवरने लगा. दशरथ मांझी और फगुनिया की अनूठी प्रेम कहानी के कारण यह संभव हुआ था.

गहलौर घाटी जाने का रास्ता

दशरथ मांझी और शाहजहां के प्रेम की तुलना :आज वैलेंटाइन डे है और काफी संख्या में लोग गया के गहलोर घाटी में प्रेम के प्रतीक स्थली को देखने पहुंच रहे हैं. बाबा का यह स्थल आज ताजमहल से कम नहीं है. यहां कोलकाता से पहुंची रत्ना मुखर्जी बताती है कि इस स्थान पर आने के बाद हमने दिल से ऐसा महसूस किया कि यह ताजमहल से भी बड़ी प्रेम कहानी है, जहां अकेले एक व्यक्ति ने पहाड़ का सीना चीर कर रास्ता बना दिया.

मांझी की समाधि स्थल पर पर्यटक

''पत्नी के प्रेम में बाबा दशरथ मांझी ने असंभव को भी संभव कर दिखाया. उन पर फिल्म बनी थी, तभी से इस स्थान को जानने के लिए काफी उत्सुक हो रही थी. आज यहां आने का मौका मिला. कुछ जानती थी, आज काफी कुछ यहां अपनी आंखों से देखा और समझा. यह प्रेम का प्रतीक स्थल ही नहीं है, बल्कि देश के लिए मिसाल है. हम लोग ताजमहल देखने जाते हैं, लेकिन यह ताजमहल से भी बड़ा है. ताजमहल में सैकड़ो कारीगर लगे थे, यहां माउंटेन मैन दशरथ मांझी ने अकेले छेनी हथौड़ी से ऐसा कर दिखाया और प्रेम की अनूठी और बेमिसाल परिभाषा बताई है.''- रत्ना मुखर्जी, कोलकाता, पर्यटक

'ऐसा भी प्रेम हो सकता है, साक्षात देख लिया' : एक और पर्यटक कल्याणी चक्रवर्ती बताते हैं कि ऐसा भी प्रेम होता है, आज अपनी आंखों से देख लिया. दिल भावुक हो गया है. ताजमहल को पत्नी की याद में शाहजहां ने बनाया था. यहां पत्नी की याद और लोगों की तकलीफों को दूर करने के लिए दशरथ मांझी ने अकेले छेनी-हथौड़ी से 22 सालों तक पहाड़ काटकर रास्ता बना दिया. गहलोर पहाड़ से उनकी पत्नी की गिरने से मौत हुई थी. आज वह रास्ता है. पहाड़ को चीरने वाले इस महान शख्सियत को नमन करते हैं.

दशरथ मांझी की मूर्ति

ऐसा भी प्रेम हो सकता है, साक्षात देख लिया :वही, कल्याणी चक्रवर्ती बताते हैं कि ऐसा भी प्रेम होता है, आज अपनी आंखों से देख लिया. दिल भावुक हो गया है. ताजमहल को पत्नी की याद में शाहजहां ने बनाया था. यहां पत्नी की याद और लोगों की तकलीफों को दूर करने के लिए दशरथ मांझी ने अकेले छेनी हथौड़ी से 22 सालों तक पहाड़ काटकर रास्ता बना दिया. गहलोर पहाड़ से उनकी पत्नी की गिरने से मौत हुई थी. आज वह रास्ता है. पहाड़ को चीरने वाले इस महान शख्सियत को नमन करते हैं.

''शाहजहां का ताजमहल भी गहलोर घाटी के सामने फेल है. गहलोर घाटी में बाबा के समाधि स्थल को देखा, हमे लगता है कि उन्हें और ज्यादा सम्मान दिया जाना चाहिए, जिस तरह से सात आश्चर्य में शामिल ताजमहल को प्रेम के प्रतीक के रूप में जानते हैं, तो उससे कहीं बड़ी बाबा दशरथ की समाधि स्थल है. यहां हम दंपति प्यार की को समझाने आए हैं.''- कल्याण चक्रवर्ती, पर्यटक

''इस जगह के बारे में सुना था. आश्चर्य होता है कि कैसे एक शख्स में अपनी पत्नी के लिए पहाड़ काटकर रास्ता बना दिया. वाकई अद्भुत प्रेम कहानी है. शाहजहां ने ताजमहल बनाया तो दशरथ ने फगुनिया के लिए कुछ ऐसा कर दिया, हम उनके बारे में जानने के लिए यहां आ गए हैं.''- अकाबो, विदेशी पर्यटक

बिहार सरकार ने दिया था सम्मान : वहीं, पहाड़ काटकर रास्ता बना देने और अद्भूत प्रेम की इस कहानी की चर्चा जब मीडिया में सुर्खियां बटोरने लगी, तब बिहार सरकार ने बाबा दशरथ मांझी को सम्मान दिया. बाबा दशरथ मांझी ने इसके बाद समाज के सरोकारों से जुड़े कई मुद्दों को लेकर नई दिल्ली तक पैदल यात्रा भी की. गहलोर घाटी के इस लाल की कहानी जानकर हर कोई आश्चर्यचकित रह गया था. खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें काफी सम्मान दिया था.

जब गहलौर घाटी पहुंचे थे नीतीश कुमार

दुनिया से चले गए लेकिन यादों से नहीं :दशरथ मांझी की का निधन 17 अगस्त 2007 को हुआ. उनके सम्मान में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हुआ था. बिहार सरकार ने उनके नाम पर डाक टिकट जारी किया. वहीं पद्मश्री से भी नामित किया था. बिहार सरकार ने बाबा दशरथ मांझी के नाम पर हॉस्पिटल, पुलिस स्टेशन का भी निर्माण करवाया है. आज दशरथ मांझी दुनिया से चले गए लेकिन यादों में आज भी बसे हैं.

कई डॉक्यूमेंट्री और फिल्म बनी :वही, दशरथ मांझी के इस अद्भुत प्रेम कहानी को लेकर कई डॉक्युमेंट्री बनी, कई फिल्म भी बनाई गई. यहां फिल्म अभिनेता आमिर खान से लेकर कई बड़ी शख्सियत गहलोर घाटी को आ चुके हैं. उन्होंने बाबा दशरथ मांझी के इस समाधि स्थल पर नमन किया है. आज यहां पहुंचने वाले लोग बाबा दशरथ मांझी की समाधि स्थल पर मत्था टेकते हैं और अपने भी प्रेम की डोर की मजबूती की कामना करते हैं. फिलहाल गहलोर घाटी का यह स्थान आज देश के चुनिंदा स्थलों में से एक है.

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Last Updated : Feb 14, 2024, 4:38 PM IST

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