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जौनसार बावर में मनाई गई पारंपरिक दीपावली, दीपों की जगह जलाई जाती हैं मशालें

उत्तराखंड के जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर में 31 अक्टूबर को पारंपरिक दीपावली मनाई गई. दीपावली में दीपों की जगह मशालें यानी भैलों जलाई जाती हैं.

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जौनसार बावर की अनोखी दीपावली (ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Nov 1, 2024, 12:56 PM IST

Updated : Nov 1, 2024, 1:15 PM IST

विकासनगर: उत्तराखंड के देहरादून जिले के जौनसार बावर क्षेत्र में दसऊ गांव में चालदा महासू देवता मंदिर में पशगांव खत पट्टी के करीब 15 गांवों के लोगों ने गुरुवार 31 अक्टूबर को अपनी पारंपरिक दीपावली बड़ी धूमधाम से मनाई. इस दौरान 15 गांवों के ग्रामीणों ने छत्रधारी चालदा महासू देवता मंदिर में मशालें जलाकर दीपावली का आगाज किया.

माना जाता है कि जिस क्षेत्र में छत्रधारी चालदा महासू महाराज प्रवास पर रहते हैं, उस क्षेत्र की खत पट्टी में देश-दुनिया के साथ मनाई जाने वाली दीवाली मनाने की परंपरा है. छत्रधारी चालदा महासू महाराज 1 मई 2023 में समाल्टा से दसऊ पशगांव खत पट्टी के नवनिर्मित मंदिर में विराजमान हुए थे. देवता की इस बार दूसरी दीवाली मनाई जा रही है.

जौनसार बावर में मनाई गई पारंपरिक दीपावली (ETV Bharat)

देवता की प्रवास यात्रा समाप्त होने पर इस क्षेत्र के ग्रामीण भी फिर से पुरानी बूढ़ी दीवाली मनाएंगे. जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में कई खत पट्टियों में भी नई दीवाली मनाई गई है, जबकि अन्य क्षेत्रों में ठीक एक माह बाद पर्वतीय बूढी दीवाली मनाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है.

चालदा महासू देवता के प्रति लोगों में अटूट आस्था है. लोगों ने देव दर्शन कर सुख समृद्धि की कामना की. इस दौरान 15 गांवों के ग्रामीण भीमल की पतली लकड़ियों की मशाल जिसे स्थानीय भाषा में भैलों बना कर मंदिर परिसर में ढोल दमाऊं की थाप पर नाचते गाते पहुंचे और छत्रधारी चालदा महासू महाराज के जयकारे लगाए गए. लोग हाथों में मशाल जलाकर दीपावली के जश्न में डूबे.

वहीं देवता को समर्पित पुरानी जनजातीय संस्कृति के वाहकों ने हुड़के की थाप पर देव स्तुतियां गाईं. देर रात्रि तक पारम्परिक गीतों से मंदिर परिसर गुलजार रहा. यह दीपावली पारम्परिक रूप से मानाई जा गई, जिसमें बम पटाखे नहीं जलाए जाते हैं. दीपों के स्थान पर मशालें जलाई जाती हैं.

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Last Updated : Nov 1, 2024, 1:15 PM IST

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