देहरादून: वन विभाग के लिए वर्किंग प्लान आगामी 10 साल की रूपरेखा को तय करता है. इसी प्लान के माध्यम से यह तय हो पता है कि संबंधित डिवीजन में कितने और क्या-क्या काम अगले 10 साल के दौरान होंगे, हालांकि, यह वर्किंग प्लान वन विभाग में सिस्टमैटिक कार्यों को तय करता है, लेकिन इस बार यही सिस्टम कई डिवीजन में परेशानी की वजह बन गया है.
दरअसल, राज्य के कई डिवीजन ऐसे हैं जहां अगले वर्षों के लिए तय होने वाले वर्किंग प्लान को अब तक अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है. नतीजा यह रहा कि इन डिविजन में कई काम लटक गए हैं. ऐसे में ना केवल वन विभाग के संबंधित डिवीजन में विभाग के अधिकारियों के लिए दिक्कतें बढ़ गई हैं बल्कि आम लोगों को भी इसे सीधे परेशानी का सामना करना पड़ता है.
क्या होता है वर्किंग प्लान:वन विभाग के अंतर्गत वर्किंग प्लान में 10 सालों की रूपरेखा को तैयार किया जाता है. प्रदेश में 27 डिवीजन हैं. जिसके लिए वर्किंग प्लान तैयार किया जाता है. 10 साल पूरे होने से करीब ढाई साल पहले ही नए वर्किंग प्लान पर कसरत शुरू हो जाती है. इस बार यह काम समय से पूरा नहीं हो पाया है. इसलिए वर्किंग प्लान को लागू करने में देरी हुई है. वर्किंग प्लान को लेकर मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने कहा कोरोना वायरस के चलते इस बार समय से वर्किंग प्लान पर काम नहीं हो पाया. इसके कारण इसकी कसरत देरी से शुरू हो पाई. इसके बावजूद भी तेजी से काम करने की कोशिश की गई. अब बाकी बचे हुए डिवीजन में भी वर्किंग प्लान को अंतिम रूप दिया जा रहा है.
उत्तराखंड में वन विभाग की पांच डिवीजन:राज्य के ऐसी पांच डिवीजन हैं जिस पर अब तक वर्किंग प्लान को अंतिम मुहर लगना बाकी है. इन डिविजन में पिथौरागढ़, मसूरी, गढ़वाल, अपर यमुना, चंपावत डिवीजन शामिल है. कोरोना वायरस के कारण करीब 2 साल देरी से इन पर काम शुरू हो पाया. इसीलिए अब तक यह पूरी तरह से तैयार नहीं हो पाए थे.