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उत्तराखंड के जनजातीय और बिखरे हुए साहित्य को डॉक्यूमेंट करने के लिए रिसर्च, भाषा संस्थान की शोध परियोजना - BHASHA SANSTHAN RESEARCH

उत्तराखंड भाषा संस्थान ने तीन शोध परियोजनाएं शुरू की, जनजातीय भाषाओं को करेंगे संरक्षित, गोविंद बल्लभ पंत के साहित्य को संकलित करेंगे

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भाषा संस्थान की निदेशक स्वाति भदौरिया (PHOTO- ETV BHARAT)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Dec 10, 2024, 11:25 AM IST

Updated : Dec 10, 2024, 1:22 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड भाषा संस्थान उत्तराखंड में बिखरे हुए लोक साहित्य और खासतौर से जनजातीय साहित्य को एक प्लेटफॉर्म पर लाने के लिए शोध परियोजना शुरू कर रहा है. निदेशक भाषा संस्थान स्वाति भदौरिया का कहना है कि हमारे पास कई बिखरे हुए ऐसे साहित्य हैं, जिन्हें डॉक्यूमेंट करने की जरूरत है.

जनजातीय और बिखरे हुए साहित्य को लेकर रिसर्च: उत्तराखंड में लोक साहित्य और भाषा के प्रति लोगों को जागरूक करने और इसको ऑफिशियल रूप से डॉक्यूमेंट करने के लिए उत्तराखंड भाषा संस्थान ने तीन शोध परियोजनाएं शुरू की हैं. शोध परियोजनाओं के माध्यम से भाषा का प्रचार प्रसार और लोगों को इसके प्रति जागरूक करने के लिए जरूरी है कि प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में फैली लोक भाषा, लोक साहित्य पर शोध करके उन्हें डॉक्यूमेंट किया जाए, जिसको लेकर भाषा संस्थान कार्य कर रहा है.

जनजातीय और बिखरे साहित्य के संकलन के लिए रिसर्च (VIDEO- ETV Bharat)

भाषा संस्थान की शोध परियोजना: भाषा संस्थान की निदेशक स्वाति भदौरिया ने बताया कि उत्तराखंड में खास तौर से तीन अलग-अलग शोध परियोजनाओं के माध्यम से राज्य के लोक साहित्य को डॉक्यूमेंट करने का काम किया जा रहा है. इसमें सबसे पहले उत्तराखंड की जनजातीय भाषाओं को कैसे संरक्षित किया जाए और इन्हें किस तरह से ऑफिशियल डॉक्यूमेंट्स में डॉक्यूमेंट किया जा सके, इसको लेकर के शोध परियोजना शुरू की गई है. इसके अलावा दूसरी शोध परियोजना पंडित गोविंद बल्लभ पंत के साहित्य को लेकर के शुरू की गई है.

पं गोविंद बल्लभ पंत के साहित्य को संजोया जाएगा: निदेशक भाषा संस्थान स्वाति भदौरिया ने बताया कि पूरे देश भर में पंडित गोविंद बल्लभ पंत का साहित्य अलग-अलग जगह पर टुकड़ों में बिखरा पड़ा है. उसे एक सूत्र में पिरोकर शोध के जरिए एक ऑफिशियल डॉक्यूमेंट तैयार किया जाएगा, जिससे पूरी तरह से पंडित गोविंद बल्लभ पंत के साहित्य को संरक्षित किया जाएगा. उन्होंने बताया कि पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने देश की स्वतंत्रता से लेकर कई साहित्य और नागरी प्रचारिणी इत्यादि प्रसिद्ध पत्रिकाओं में अखबारों में लिखा है, जिन्हें डॉक्यूमेंट किया जाना बेहद जरूरी है.

अनाम साहित्यकारों की रचनाएं होंगी संकलित: वहीं इसके अलावा उत्तराखंड से संबंधित जितने भी पूर्व भारतीय साहित्यकार रहे हैं, जिन्हें पहचान नहीं मिल पाई है. अलग-अलग क्षेत्रों में इनका असर देखने को मिलता है, वहां पर किस तरह से इन साहित्यकारों की रचनाओं को संकलित किया जाए, इसको लेकर भी शोध परियोजना शुरू की गई है. उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में अव्यवस्थित रूप से कई बिखरे हुए ऐसे साहित्य हैं, जिन्हें डॉक्यूमेंट करने की जरूरत है. इन्हीं सब साहित्य को ऑफिशियल तरीके से भाषा संस्थान अपनी शोध परियोजनाओं के जारिए संरक्षित करने का प्रयास कर रहा है.
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Last Updated : Dec 10, 2024, 1:22 PM IST

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