बागपत :जनपद का बिजरोल गांव इस समय खूब सुर्खियों में है. सुर्खियों में इसलिए है क्योंकि एक छोटे से गांव से निकलकर एक बेटी ने देश का नाम रोशन किया है. बिजरोल गांव की रहने वाली पूजा तोमर ने अमेरिका में अल्टीमेट फाइटिंग चैम्पियनशिप (UFC) में पहली फाइट जीत कर इतिहास रच दिया है. मिक्सड मार्शल आर्ट (MMA) में पूजा तोमर अल्टीमेट फाइट चैंपियनशिप की भी विजेता बन गई हैं, जिसको लेकर गांव में खुशी का माहौल है. सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर पूजा तोमर ने कहा कि मैं अभी अमेरिका में हूं, अपनी फाइट जीतने के बाद सबसे ज्यादा मैं थैंक यू बोलना चाहती हूं, मेरे गांव बिजरोल के सभी ताऊ, चाचा के लिए. मैं जल्दी आ रही हूं आप लोगों का आशीर्वाद लेने के लिए. लास्ट फाइट के बाद आप लोगों ने जो मुझे इतना सारा प्यार दिया थैंक यू जल्दी आऊंगी.
पूजा तोमर के घर में इस समय खुशी का माहौल है. सभी लोग पूजा तोमर को अपना आशीर्वाद और दुआएं दे रहे हैं. बिजरोल गांव में पूजा के परिवार के लोगों का कहना है कि हम बहुत अच्छा महसूस कर रहे हैं. आज से करीब 50 साल पहले पूजा का परिवार बुढ़ाना चला गया था. उनके घर के लोगों से फोन पर बात होती रहती है. बहुत ख़ुशी है. गांव समाज के सहयोग से स्वागत करेंगे. पहले आयी थी तब भी पूरा सहयोग हुआ था
बिजरोल गांव के थाम्बा चौधरी यशपाल सिंह ने कहा कि पूजा तोमर हमारे गांव की ही बेटी है. वह अब से 30 साल पहले यहां से जमीन बेच करके चले गए थे वहां उनका काम नहीं चला और फिर अब वह बुढ़ाना आ गए थे और वर्तमान में बुढ़ाना ही रह रहे हैं. हम उसके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं. पूजा ने हमारे देश का नाम तो रोशन किया ही है, हमारी बिरादरी का और गांव का भी नाम किया है. गांव में जितना बड़ा स्वागत हमने पहली बार किया था उससे ज्यादा बड़ा स्वागत करेंगे. पूरा गांव भावुक है.
मां का जीवन संघर्ष देख फाइटिंग चैंपियन बनीं पूजा :मुजफ्फरनगर के बुढ़ाना में मिक्स मार्शल आर्ट में देश की पहली अल्टीमेट फाइटिंग चैंपियन बनीं पूजा तोमर की कामयाबी से उनकी मां बहुत खुश हैं. पूजा तोमर के दादा चौधरी करताराम वर्ष 1974 में परिवार लेकर बुढ़ाना आ गए थे और उनके छह बेटों में रामकुमार तोमर चौथे नंबर पर थे. एक सड़क हादसे में रामकुमार तोमर की मौत हो गई थी और परिवार में तीन बेटियां थीं. लेकिन रामकुमार की पत्नी बबीता तोमर ने हिम्मत नहीं हारी और मेहनत कर बेटियों को कामयाब बनाया. बेटियों को पालने, पढ़ाने और खेल के मैदान में उतारने तक बबीता ने हिम्मत दिखाई.