लखनऊ : लोकसभा चुनाव 2024 से पहले भाजपा ने यूपी के मुस्लिम वोटरों को अपनी तरफ खींचने के लिए हर जतन किया. करीब एक दर्जन कार्यक्रमों का आयोजन, लगातार अभियान चले और इसके साथ ही कई MLC और एक मंत्री भी बनाया. हालांकि जब परिणाम आया तो भाजपा अपने मिशन में पूरी तरह फेल रही. पसमांदा मुस्लिमों का वोट बैंक पाने की जुगत भी काम नहीं आई. मुस्लिमों के हर तबके ने उसी पार्टी को वोट दिया, जो भाजपा को हरा सकता था. इस चुनाव में भाजपा को मुस्लिमों का 1 प्रतिशत वोट भी नहीं मिल सका. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा राष्ट्रीय मुस्लिम मंच और बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के अभियान फिसड्डी साबित हुए. ऐसे-ऐसे मतदान केंद्र हैं, जहां बीजेपी को दहाई की संख्या में भी वोट नहीं मिले. फिलहाल उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी का अल्पसंख्यक मोर्चा ऐसे बूथों की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं कर सका है, जहां भारतीय जनता पार्टी को बेहतरीन मतदान प्रतिशत प्राप्त हुआ. आइए जानते हैं भाजपा को मुस्लिम मत न मिलने की क्या रही वजह.
मुसलमानों को पाले में लाने की कवायद रह गई धरी
भारतीय जनता पार्टी अल्पसंख्यक मोर्चा ने 2022 विधानसभा चुनाव के बाद अपने विस्तार के लिए अनेक प्रयास किए थे. करीब 50000 कार्यकर्ताओं का दावा अल्पसंख्यक मोर्चा की ओर से किया गया था. जबकि दूसरे दलों से बड़ी संख्या में मुसलमान नेताओं और कार्यकर्ताओं को भारतीय जनता पार्टी में शामिल किया गया. पिछले साल हुए निकाय चुनाव में बड़ी संख्या में मुसलमानों को भारतीय जनता पार्टी ने टिकट भी दिए थे. इसके बावजूद कोई प्रभाव नहीं पड़ा और भाजपा को न के बराबर मुस्लिम मत मिले.
लगातार किए जाते रहे कार्यक्रम
भारतीय जनता पार्टी अल्पसंख्यक मोर्चा की ओर से पसमांदा सम्मेलन, मुस्लिम सम्मेलन, मोदी भाई जान सम्मेलन और ऐसे ही अनेक कार्यक्रमों का आयोजन पूरे प्रदेश में समय-समय पर किया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां की बात को उर्दू पुस्तक का स्वरूप देकर मादरसों तक पहुंचाया गया. जिलों-जिलों में मुस्लिम सम्मेलन आयोजित किए गए. मौलानाओं से संपर्क किया गया. सरकार और संगठन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने का दावा किया गया. इसके बावजूद भाजपा के हाथ कुछ नहीं आ सका.
सरकार में मुसलमानों को सहभागिता
भारतीय जनता पार्टी ने साल 2017 से 2022 के बीच में मोहसिन रजा को मंत्री बनाया था. मोहसिन रजा एमएलसी भी बनाए गए थे. उनके अलावा बुक्कल नवाब को भी एमएलसी बनाया गया था. फिर 2022 की चुनाव के बाद दानिश आजाद अंसारी को एमएलसी और मंत्री बनाया गया. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर तारिक़ मंसूर को भी बीजेपी ने एमएलसी बनाया था. एक समय भाजपा के खेमे में कुल चार मुस्लिम एमएलसी थे. यह अपने आप में इतिहास था.