वाराणसी :लोकसभा चुनाव के नतीजों ने सबको चौंका दिया है. उत्तर प्रदेश में जिस तरह से एनडीए का ग्राफ नीचे आया, और इंडी गठबंधन का मनोबल बढ़ा, उससे कई सारे सवाल लोगों को जहन में आने लगे हैं. यूपी का दिल कहे जाने वाले पूर्वांचल ने जिस तरह से एकतरफा सीटों को विपक्ष की झोली में डाला है, उससे यह स्पष्ट हो गया है कि पूर्वांचल के जातीय समीकरण को तोड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है. इसकी बड़ी वजह यह है कि वाराणसी से सटे तमाम सीटों के समीकरण ऐसे बदले कि 2009, 2014 और 2019 के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए. बीजेपी गठबंधन को यहां महज 3 सीटों से ही काम चलाना पड़ा, जबकि समाजवादी पार्टी ने 9 सीटों पर कब्जा कर लिया.
लोकसभा चुनाव में वाराणसी, आजमगढ़ और मिर्जापुर मंडल की 10 जिलों की 12 लोकसभा सीटों पर सभी की निगाहें थी. यह वह सीटें थीं जहां पर 2009 से बीजेपी जीत दर्ज कर रही थी, लेकिन इस बार के समीकरण ऐसे बदलेंगे इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी. 12 लोकसभा सीटों में से 9 पर समाजवादी पार्टी की साइकिल ने दौड़ लगा दी. सिर्फ तीन सीटों में भाजपा गठबंधन को जीत मिली.
वाराणसी में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भदोही में डॉ. विनोद कुमार बिंद जीत गए जबकि मिर्जापुर में गठबंधन की अनुप्रिया पटेल ने इज्जत बचाई. बाकी लोकसभा क्षेत्र में पूर्वांचल से बीजेपी को निराश होना पड़ा. सबसे महत्वपूर्ण यह है कि मोदी और योगी की जोड़ी ने 2014 के आम चुनाव में और 2017 के विधानसभा चुनाव में समीकरणों का ऐसा चक्रव्यूह तोड़ा कि हर कोई पूर्वांचल से जातिगत राजनीति को खत्म मानने लगा था.
2022 के विधानसभा चुनाव तक यह चीज कमजोर होती दिखाई दी. 2009 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को वाराणसी आजमगढ़ और मिर्जापुर मंडल की 10 जिलों की 12 लोकसभा सीटों में से सिर्फ दो पर जीत मिली थी लेकिन मोदी लहर आई तो 2014 के बाद यह तस्वीर बदलने लगी. 2014 के चुनाव में इन 12 में से 10 सीटों पर बीजेपी का परचम लहराया. 2019 में यह घटकर पांच हुआ और 2022 में आजमगढ़ के उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को जीत मिली, लेकिन 2024 में भारतीय जनता पार्टी को सिर्फ दो और गठबंधन में शामिल अपना दल को एक सीट से ही संतोष करना पड़ा है.
समाजवादी पार्टी ने पूर्वांचल की 9 सीटों पर बड़ी जीत दर्ज की है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वाराणसी से सटे चंदौली, बलिया, मछली शहर, आजमगढ़, जौनपुर, गाजीपुर, घोसी, लालगंज और रॉबर्ट्सगंज में समाजवादी पार्टी की बड़ी जीत ने बीजेपी के सपने को तोड़ दिया. भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में कम सीट मिलने से न सिर्फ बीजेपी बहुमत के आंकड़े से दूर रही, बल्कि अब उसे पूर्वांचल की इन सीटों पर हार का खामियाजा गठबंधन के भरोसे रहकर चुकाना पड़ रहा है.
सबसे बड़ी बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने पूर्वांचल की इन सीटों पर क्षेत्रीय दलों पर भरोसा जताया था. अपने गठबंधन में शामिल छोटे दलों जिसमें सुभासपा और हाल ही में विपक्ष के साथ काम करने वाले लोगों को अपनी पार्टी में शामिल करने के बाद चुनाव की जिम्मेदारी देकर भाजपा ने बड़ा फेरबदल करने का सोचा था. राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो जहां-जहां बीजेपी ने अपने सहयोगी छोटे दलों पर भरोसा करके दूसरी पार्टी से आए नेताओं पर भरोसा जताया. वहां बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी है.