लखनऊ :आम चुनावों के नतीजे आ चुके हैं. उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में समाजवादी पार्टी को सबसे अधिक 37 तो बीजेपी को 33 सीटों पर जीत मिली. बसपा फिर से जीरो ही रही. इन सबके बीच यूपी के मतदाताओं ने उन छोटे दलों को सिरे से नकार दिया, जो धर्म, जाति और क्षेत्र के दम पर चुनाव लड़ते आए हैं. इनमें निषाद पार्टी, सुहेलदेव भारतीय समाज, एआईएमआईएम, अपना दल और अन्य दल शामिल हैं.
लोकसभा चुनाव का बिगुल बजते ही यूपी में सभी राजनीतिक दलों ने गोंटिया सजानी शुरू कर दी थी. खासकर उन छोटे दलों ने जिनका प्रभाव कुछ क्षेत्रों, जाति व धर्म में था, अपनी शर्तों पर नए साथी और गठबंधन तैयार किए थे. मकसद हर चुनाव की ही तरह जाति विशेष का वोट लेकर संसद तक पहुंचना और सरकार में शामिल होकर खुद के संगठन को खड़ा करना था, लेकिन चुनाव के नतीजों ने यूपी के कई छोटे दलों को झटका दिया है. कुछ की सीटें कम हुई तो कुछ को जीत ही हासिल नहीं हुई. ऐसे में आइए जानते है कि, वो कौन कौन से दल थे, जो इस लोक सभा चुनाव में मैदान में थे और उनके हिस्से में क्या आया?
17 जातियों व 15 जिलों की पार्टी कही जाने वाली SBSP को जनता ने नकारा :सबसे पहले बात करते हैं सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की, जिसके हिस्से में एक सीट आई और एनडीए गठबंधन के नेतृत्व में घोसी सीट से चुनाव लड़ा. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी सुप्रीमो खुद को कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमर, बाथम, समेत 17 जातियों का नेता बताते हैं. वह दावा करते हैं कि पूर्वांचल के गोरखपुर, कुशीनगर, महराजगंज, बलिया, संतकबीरनगर, जौनपुर, वाराणसी, भदोही, गोंडा, श्रावस्ती, बहराइच, मऊ, गाजीपुर, बाराबंकी और सुल्तानपुर में उनका वर्चस्व रहता है. यही कारण है कि बीते कुछ चुनावों में हर दल में उनकी डिमांड बढ़ी है. 2017 व 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का विस्तार भी हुआ लेकिन लोकसभा चुनाव में पार्टी के अध्यक्ष के बेटे को ही जनता ने नकार दिया.
निषाद पार्टी से भी जनता का मोह हुआ भंग :सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अलावा एनडीए में शामिल निषाद पार्टी को भी इस लोकसभा चुनाव में जनता ने नकारा है. बीजेपी ने निषाद पार्टी के दो उम्मीदवारों को अपने सिंबल से चुनावी मैदान में उतारा था. इनमें एक संतबीरनगर से सांसद रहे पार्टी अध्यक्ष संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद और दूसरे भदोही से निषाद पार्टी से विधायक विनोद बिंद प्रत्याशी थे. वोटरों का भरोसा प्रवीण निषाद से उठ गया और उन्हें बड़े अंतरों से हरा दिया. हालांकि विनोद बिंद को जीत हासिल हुई है. निषाद पार्टी भी ओम प्रकाश राजभर की ही तरह खुद को कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमर, बाथम, समेत 17 जातियों की पार्टी और पूर्वांचल के गोरखपुर, कुशीनगर, महाराजगंज, बलिया, संतकबीरनगर, जौनपुर, वाराणसी, भदोही, गोंडा, श्रावस्ती, बहराइच, मऊ, गाजीपुर, बाराबंकी और सुल्तानपुर में प्रभाव बताती है. इतना ही नही राजभर की ही तरह निषाद भी अपने ही बेटे को जितवा नहीं पाए।
अपना दल ने भी की अस्तित्व बचाने की भरपूर कोशिश :छोटे दलों से खोते मोह की श्रेणी में अपना दल (एस) भी शामिल है. भले ही यूपी के विधानसभा चुनाव में अपना दल एस राज्य की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी हो लेकिन लोकसभा के चुनाव में कुछ करिश्मा नहीं कर सकी. यूपी में अपना दल एस ने दो सीटों पर चुनाव लड़ा, इन दोनों ही सीट पर अपना दल के ही सांसद थे. मिर्जापुर लोकसभा सीट पर तीसरी बार खुद पार्टी अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल और राबर्ट्सगंज से सांसद की बहू रिंकी कोल को प्रत्याशी बनाया. इन दोनों ही सीट पर अपना दल अपना वर्चस्व मानती है, लेकिन इस चुनाव में मानों जनता ने छोटे दलों से अपना मोह भंग करने का मूड ही बना लिया था. लिहाजा राबर्ट्सगंज की जनता ने अपना दल के प्रत्याशी को नकारते हुए इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी को समर्थन दिया. इसके अलावा मिर्जापुर सीट पर भी कांटे की टक्कर हुई और 2019 के चुनाव में करीब 2 लाख वोटों से जीतने वालीं अनुप्रिया पटेल इस बार महज 37 हजार ही वोट से जीती.
पल्लवी पटेल और ओवैसी की पार्टी के गठबंधन को भी नकारा. (PHOTO Credit; Etv Bharat) पीडीएम मोर्चा भी गिरा धड़ाम :दो और छोटे दलों ने इस चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने को कोशिश की थी. एक अपना दल कमेरवादी, जो अपना दल के फाड़ के बाद बनी और अपनी राजनीतिक जमीन में फसल बोने की फिलहाल जहाद्दोजह कर रही थी. 2022 के चुनाव में सपा के साथ चुनाव लड़ा और उसी के सिंबल पर पार्टी अध्यक्ष की बेटी पल्लवी पटेल विधायक बनीं. इस चुनाव में भी सपा के साथ ही चुनाव लड़ना था लेकिन विशेष जाति पर खुद का प्रभाव मानते हुए पल्लवी ने ओवैसी के साथ मिलकर गठबंधन तैयार किया. इसके बाद 12 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन महज वोट कटवा के रूप में ही यह दल अपनी पहचान बनाने में सफल रहा.
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