बीकानेर. शहर के परकोटा क्षेत्र में एक साथ, एक ही मुहूर्त में हजारों शादियां होती हैं. हर गली से मंगल गीतों की आवाज सुनाई देती है. सामूहिक विवाह के दिन पूरे शहर में एक उत्सव का माहौल नजर आता है. वैसे तो सामूहिक विवाह का अर्थ एक ही परिसर और प्रांगण में कई जोड़ों का विवाह. हालांकि, बीकानेर में शहर के अंदरूनी परकोटा क्षेत्र में एक ही दिन में हजारों शादियां होती हैं. इन सब का एक जगह होना संभव नहीं है, इसलिए पूरे परकोटा क्षेत्र को ही एक छत मानकर सरकार ने सामूहिक विवाह में दिए जाने वाले अनुदान की तरह इसको भी उसी श्रेणी में माना है.
400 साल पुरानी परंपरा :बीकानेर के पुष्करणा ब्राह्मण समाज की 400 साल से भी ज्यादा समय से चली आ रही इस परंपरा को आज भी लोग बड़ी शिद्दत से निभाते हैं. लोग पूर्वजों की ओर से शुरू की गई सामूहिक सावे के दिन अपने बच्चों की शादी करते हैं. पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि यह परंपरा हमारे पूर्वजों ने शुरू करते हुए अपनी दूरदर्शिता का परिचय दिया था. उन्हें पता था कि भविष्य में शादी विवाह जैसे आयोजन में बहुत खर्च होंगे. आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए इसमें बहुत दिक्कत होगी, लेकिन उस वक्त उन्होंने सबको एक समान रखते हुए इस परंपरा की शुरुआत की. आज संपन्न लोग भी इस परंपरा में अपनी भागीदारी निभाते हैं. इस सावे में बच्चों की शादी कर परंपरा से जुड़ाव रखते हैं. उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने कम खर्च आधारित व्यवस्था की शुरुआत उस समय कर दी थी.
दशहरे के दिन होता है मुहूर्त शोधन :पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि सामूहिक विवाह पहले 7 साल में हुआ करते थे, लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे बदलते समय में इसे 4 साल कर दिया गया. इसका नाम ओलंपिक सावे के रूप में प्रचलित हुआ. अब बदलते समय में हर 2 साल में सामूहिक विवाह का आयोजन किया जाता है. वह कहते हैं कि पुष्करना समाज की सभी जातियों के प्रकांड पंडित दशहरे के दिन इस सावे को लेकर मुहूर्त की चर्चा करते हैं. कई घंटे की चर्चा के बाद एक श्रेष्ठ मुहूर्त पर सब की सहमति होती है. इस बार 18 फरवरी सामूहिक विवाह की तारीख तय हुई है. किराडू कहते हैं कि भगवान शंकर और माता पार्वती के नाम से ही सामूहिक विवाह का मुहूर्त निकालता है. इस बार भगवान शंकर के नाम भवानी शंकर और माता पार्वती के नाम भवानी से मुहूर्त निकला है.
परंपराओं का शहर है बीकानेर :पुष्करणा सभा समिति के वीरेंद्र किराडू कहते हैं कि बीकानेर परंपराओं को निभाने वाला शहर है. होली, दिवाली या दूसरा कोई भी त्योहार हो, यहां के लोग त्योहार की परंपरा को भी आज भी मानते हैं. कई ऐसी परंपराएं हैं, जो दुनिया में किसी भी शहर में नहीं हैं और बीकानेर में हैं. ऐसी ही एक परंपरा यह सामूहिक विवाह की है. देश-विदेश में रह रहे पुष्करणा ब्राह्मण समाज के लोग सामूहिक शादी में अपने बच्चों की शादी करने के लिए बीकानेर आते हैं. इस बार भी बीकानेर से बाहर के कई जोड़े विवाह के बंधन में बंधेंगे.