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अनूठी है बीकानेर की सामूहिक विवाह की परंपरा, 400 सालों से भी ज्यादा समय से चली आ रही

बीकानेर अपनी सांस्कृतिक विरासत और पुरखों की दी हुई परंपरा को आज भी कायम रखने रखने के लिए मशहूर है. ऐसी ही एक परंपरा बीकानेर की पुष्करणा समाज की सामूहिक विवाह की है, जो पिछले 400 सालों से चली आ रही है. पढ़िए क्या है ये अनूठी परंपरा...

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 14, 2024, 9:11 PM IST

बीकानेर की सामूहिक विवाह की परंपरा

बीकानेर. शहर के परकोटा क्षेत्र में एक साथ, एक ही मुहूर्त में हजारों शादियां होती हैं. हर गली से मंगल गीतों की आवाज सुनाई देती है. सामूहिक विवाह के दिन पूरे शहर में एक उत्सव का माहौल नजर आता है. वैसे तो सामूहिक विवाह का अर्थ एक ही परिसर और प्रांगण में कई जोड़ों का विवाह. हालांकि, बीकानेर में शहर के अंदरूनी परकोटा क्षेत्र में एक ही दिन में हजारों शादियां होती हैं. इन सब का एक जगह होना संभव नहीं है, इसलिए पूरे परकोटा क्षेत्र को ही एक छत मानकर सरकार ने सामूहिक विवाह में दिए जाने वाले अनुदान की तरह इसको भी उसी श्रेणी में माना है.

400 साल पुरानी परंपरा :बीकानेर के पुष्करणा ब्राह्मण समाज की 400 साल से भी ज्यादा समय से चली आ रही इस परंपरा को आज भी लोग बड़ी शिद्दत से निभाते हैं. लोग पूर्वजों की ओर से शुरू की गई सामूहिक सावे के दिन अपने बच्चों की शादी करते हैं. पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि यह परंपरा हमारे पूर्वजों ने शुरू करते हुए अपनी दूरदर्शिता का परिचय दिया था. उन्हें पता था कि भविष्य में शादी विवाह जैसे आयोजन में बहुत खर्च होंगे. आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए इसमें बहुत दिक्कत होगी, लेकिन उस वक्त उन्होंने सबको एक समान रखते हुए इस परंपरा की शुरुआत की. आज संपन्न लोग भी इस परंपरा में अपनी भागीदारी निभाते हैं. इस सावे में बच्चों की शादी कर परंपरा से जुड़ाव रखते हैं. उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने कम खर्च आधारित व्यवस्था की शुरुआत उस समय कर दी थी.

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दशहरे के दिन होता है मुहूर्त शोधन :पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि सामूहिक विवाह पहले 7 साल में हुआ करते थे, लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे बदलते समय में इसे 4 साल कर दिया गया. इसका नाम ओलंपिक सावे के रूप में प्रचलित हुआ. अब बदलते समय में हर 2 साल में सामूहिक विवाह का आयोजन किया जाता है. वह कहते हैं कि पुष्करना समाज की सभी जातियों के प्रकांड पंडित दशहरे के दिन इस सावे को लेकर मुहूर्त की चर्चा करते हैं. कई घंटे की चर्चा के बाद एक श्रेष्ठ मुहूर्त पर सब की सहमति होती है. इस बार 18 फरवरी सामूहिक विवाह की तारीख तय हुई है. किराडू कहते हैं कि भगवान शंकर और माता पार्वती के नाम से ही सामूहिक विवाह का मुहूर्त निकालता है. इस बार भगवान शंकर के नाम भवानी शंकर और माता पार्वती के नाम भवानी से मुहूर्त निकला है.

परंपराओं का शहर है बीकानेर :पुष्करणा सभा समिति के वीरेंद्र किराडू कहते हैं कि बीकानेर परंपराओं को निभाने वाला शहर है. होली, दिवाली या दूसरा कोई भी त्योहार हो, यहां के लोग त्योहार की परंपरा को भी आज भी मानते हैं. कई ऐसी परंपराएं हैं, जो दुनिया में किसी भी शहर में नहीं हैं और बीकानेर में हैं. ऐसी ही एक परंपरा यह सामूहिक विवाह की है. देश-विदेश में रह रहे पुष्करणा ब्राह्मण समाज के लोग सामूहिक शादी में अपने बच्चों की शादी करने के लिए बीकानेर आते हैं. इस बार भी बीकानेर से बाहर के कई जोड़े विवाह के बंधन में बंधेंगे.

400 सालों से भी ज्यादा समय से चली आ रही परंपरा

गर्व और गौरव का एहसास :पुष्करणा सामूहिक सावा सेवा समिति के जेपी विकास कहते हैं कि हमारे पूर्वजों ने जिस परंपरा को 400 साल से पहले शुरू किया, आज भी वह परंपरा कायम है. यह हमारा गौरव और गर्व है. वह कहते हैं कि इस परंपरा में हर कोई भागीदार बनता है और हर शहर के हर क्षेत्र में लोगों की भागीदारी देखने को मिलती है. सरकार की ओर से सामूहिक विवाह में कन्या को 21000 रुपए की सहायता दी जाती है. व्यास कहते हैं कि राज्य सरकार ने पूरे परकोटा क्षेत्र को ही एक छत माना है. ऐसे में परकोटा क्षेत्र में रहने वाले किसी अन्य जाति की कन्या के विवाह में भी सरकार की ओर से जाने वाले अनुदान का लाभ उसे मिलता है. पुष्करणा समाज के इस सामूहिक विवाह की परंपरा को देखते हुए अन्य समाजों ने भी इसका अनुसरण किया है.

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सहयोग राशि भी वधू के खाते में जमा : सामूहिक सावे को लेकर सरकार की ओर से दिए जाने वाले अनुदान को लेकर पुष्करणा सावा समिति काम करती है. बाकायदा एक कार्यालय संचालित किया हुआ है, जो पिछले दो महीने से लगातार चल रहा है. सरकारी स्तर पर तमाम औपचारिकताओं को पूरी कर वधू के खाते में इस राशि को जमा करवाने की जिम्मेदारी भी समिति ने ली है. साथ ही समिति को सरकार की ओर से दिए जाने वाले प्रत्येक वधू के हिसाब से 4000 रुपए की सहयोग राशि भी वधू के खाते में ही जमा करने का निर्णय लिया है.

सामूहिक विवाह में कई संस्था लेते हैं भाग

अलग-अलग संस्थाओं का योगदान :इस सामूहिक विवाह परंपरा में बड़ी संख्या में लोगों की भागीदारी होती है. कई सामाजिक संस्थाएं भी अपने-अपने हिसाब से इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं और परंपराओं के संवर्धन और कायम रखने के लिए लोगों को उत्साहित करती है. संस्था रमक-झमक के प्रहलाद ओझा कहते हैं कि सामूहिक विवाह हमारी परंपरा है और सामूहिक सावे के दिन दूल्हा विष्णु के गणवेश में तैयार होता है और मंडप पर जाता है. परंपराओं को देखते हुए आज भी अधिकांश लोग बिना बैंड की बारात लेकर जाते हैं. वह कहते हैं कि सामूहिक विवाह में लोगों को कम से कम परेशानी हो इसको लेकर हमारी संस्था भी लगातार काम कर रही है.

सावे के दिन अलग-अलग घरों में सजने वाले मंडप के बावजूद भी पूरा परकोटा एक मंडप की तरह सजा हुआ नजर आता है. चाहे किसी भी घर में शादी हो या न हो लोग अपने घरों पर लाइटिंग और मोहल्ले में भी साफ सफाई का पूरा ध्यान रखते हैं. इससे परकोटा दुल्हन की तरह सजा हुआ नजर आता है. बीकानेर की यह परंपरा आज भी कायम जो देश-विदेश से लोगों को यहां खींच कर लाती है.

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