भरतपुर : मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के एक युवा राहुल प्रजापत ने अपनी अपार श्रद्धा और विश्वास से गिरिराज जी और राधा रानी की अनन्य भक्ति की मिसाल कायम की है. कड़ाके की सर्दी में राहुल 181 किलोमीटर की दूरी दंडवत करते हुए तय कर रहे हैं. उनकी इस परिक्रमा की शुरुआत मुरैना से हुई थी और इसका समापन गोवर्धन में सप्तकोसीय परिक्रमा के साथ होगा.
श्रद्धा से भरी यात्रा :राहुल ने ये यात्रा 11 दिसंबर को मुरैना से शुरू की थी. हर दिन सुबह 8 बजे से लेकर शाम 5.30 बजे तक दंडवत परिक्रमा करते हैं. उनके साथ उनके पिता भी पैदल यात्रा कर रहे हैं, जो उन्हें लगातार सहारा और प्रेरणा दे रहे हैं. दिनभर की कठिन यात्रा के बाद रात को वे किसी आश्रम या धर्मशाला में विश्राम करते हैं.
गिरिराज जी के अनन्य भक्त राहुल की अनूठी दंडवत यात्रा (ETV BHARAT BHARATPUR) इसे भी पढ़ें -मुस्लिम भक्त की अनूठी भक्ति, मनसा देवी के मंदिर में चार पीढ़ियों से बजा रहे नगाड़ा... यहां पूरी होती है हर मनोकामना
राहुल बताते हैं कि यह यात्रा उनके लिए केवल एक परिक्रमा नहीं है, बल्कि उनकी आत्मा और गिरिराज जी के बीच की भक्ति है. राहुल ने बताया कि करीब दो-ढाई महीने पहले से मेरे भीतर कुछ अलग-सा हो रहा था. राधा रानी और गिरिराज जी की छवि हर पल आंखों के सामने रहती थी. रातों को नींद नहीं आती थी और कई बार तो भावुक होकर आंसू निकल आते थे. तब मुझे लगा कि अब गिरिराज की दंडवत यात्रा पर निकलना चाहिए.
गिरिराज जी की भक्ति में डूबे राहुल हर कदम पर गिरिराज जी का स्मरण करते हुए धरती पर लेटते हैं, फिर अपने हाथ से उस स्थान को चिन्हित कर अगले दंडवत के लिए आगे बढ़ते हैं. यह प्रक्रिया न केवल उनके शरीर के लिए चुनौतीपूर्ण है, बल्कि गिरिराज जी के प्रति उनके समर्पण को भी दर्शा रही है. राहुल पहले भी तीन बार गोवर्धन की 21 किलोमीटर लंबी दंडवत परिक्रमा कर चुके हैं.
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इस यात्रा में राहुल के पिता राम रतन प्रजापत भी उनके साथ पैदल यात्रा कर रहे हैं. पिता-पुत्र की यह जोड़ी इस कड़ाके की सर्दी में भक्ति और श्रद्धा की अनूठी मिसाल पेश कर रहे हैं. राहुल के पिता रामरतन का कहना है कि यह हमारे लिए गर्व की बात है कि मेरा बेटा इतनी भक्ति से यह कठिन यात्रा कर रहा है. मैं बस उसके साथ हूं, ताकि वह इस यात्रा को पूरा कर सके.
गौरतलब है कि गोवर्धन की परिक्रमा हिंदू धर्म में बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है. भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी. सप्तकोसीय परिक्रमा और दंडवत परिक्रमा को पापों से मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति का माध्यम माना जाता है.