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Delhi: यमुना का प्रदूषित पानी परिंदों के लिए बना खतरा, किडनी फेल, अंधेपन के शिकार हो रहे पक्षी

यमुना के प्रदूषित पानी से बेजुबान पक्षियों की जान पर बन आई. पक्षियों की हो रही किडनी फेल, अंधापन जैसी गंभीर बीमारी.

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यमुना के प्रदूषित पानी से बेजुबान पक्षियों की जान पर बन आई. (Etv Bharat)

By ETV Bharat Delhi Team

Published : Oct 24, 2024, 7:15 PM IST

नई दिल्ली:दिल्ली की यमुना नदी, जो एक समय में अपनी स्वच्छता और सुंदरता के लिए जानी जाती थी, अब गंभीर प्रदूषण का सामना कर रही है. यह प्रदूषण न केवल इंसानों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बना हुआ है, बल्कि नदी के आसपास रहने वाले पक्षियों के लिए भी जानलेवा साबित हो रहा है. चांदनी चौक स्थित पक्षियों के धर्मार्थ चिकित्सालय में डॉ. हरअवतार सिंह के अनुसार, बढ़ते प्रदूषण के कारण कई पक्षी गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं.

जल प्रदूषण का खतरनाक प्रभाव: डॉ. सिंह ने बताया कि प्रदूषित पानी पीने के कारण पक्षियों में संक्रमण की संख्या बढ़ रही है. यह जहरीला पानी उनके किडनी फेलियर, लिवर की समस्याओं, मल्टीपल ऑर्गन फेलियर और अंधेपन जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन रहा है. एक मोर का इलाज किया जा रहा है, उसकी स्थिति गंभीर है. सिर में सूजन और भोजन न कर पाने के कारण उसकी जिंदगी खतरे में है. इस मोर की बीमारी भी यमुना के दूषित पानी से हुई है.

चिकित्सालय में पिछले 15 दिनों में रोज तीन से चार बीमार पक्षियों का आना आम बात हो गई है. इस अवधि में 70 से अधिक पक्षी प्रदूषण के कारण बीमार पाए गए, जिनमें कबूतर, चील, कौवा और तोते शामिल हैं. यह आंकड़ा केवल उन्हीं पक्षियों का है, जो चिकित्सालय तक पहुंच पाते हैं. असलियत में यमुना का पानी पीने वाले हजारों पक्षी ऐसे भी हैं, जो इस घातक स्थिति में पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं.

यमुना का प्रदूषित पानी परिंदों के लिए बना खतरा (ETV Bharat)

प्रदूषण का कारण:डॉ. सिंह ने बताया कि यमुना का जल स्तर वर्तमान में काफी नीचे चला गया है और गंदे नालों का पानी इसमें मिल रहा है. इससे प्रदूषण बढ़ता जा रहा है. यदि नदी का जल स्तर अच्छा होता तो इसका बहाव उचित होता और प्रदूषक तत्वों की मात्रा कम रहती. इसके अलावा जैसे-जैसे मौसम में बदलाव आता है और ठंड बढ़ती है, जल में बैक्टीरिया और अन्य बीमारियां पनपने लगती हैं, जो पक्षियों के लिए और भी अधिक खतरनाक होती हैं.

पक्षी प्रजनन का समय: डॉ. सिंह ने बताया कि उनके अस्पताल में 3000 पक्षियों को रखने की क्षमता है. मार्च और अप्रैल प्रजनन का समय होता है, जब नवजात पक्षियों और उनकी माताओं का इलाज किया जाता है. यह समय चिकित्सालय के लिए चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि बीमारी से बचाने के लिए अतिरिक्त प्रयास की आवश्यकता होती है.

बता दें, यमुना नदी के बढ़ते प्रदूषण का प्रभाव केवल मानव स्वास्थ्य तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह पर्यावरणीय संतुलन और जीव-जंतुओं के अस्तित्व को भी खतरे में डाल रहा है. इसे रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि हम इस प्राकृतिक धरोहर को बचा सकें और इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रख सकें. पक्षियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना, हमारे पर्यावरण के स्वास्थ्य के लिए एक अनिवार्य कदम है.

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