जैसलमेर : स्वर्णनगरी को पर्यटन नगरी के रूप में विख्यात करने में बंगाली सैलानियों की सबसे बड़ी भूमिका है. ऐसा माना जाता है कि सबसे पहले बंगाली सैलानियों के ही जैसलमेर आने से यहां पर्यटन की शुरूआत हुई थी. इसके बाद पूरे देश और उसके बाद विदेशों में भी जैसलमेर की पहचान स्थापित हो गई. इतना ही नहीं, हर साल नवरात्र में बंगाली सैलानियों की आवक के साथ ही पर्यटन सीजन की शुरूआत होती थी, लेकिन कोरोना के बाद से ही बंगाली सैलानियों का जैसलमेर से मोह भंग हो गया है. इस साल भी नवरात्र में बंगाली सैलानियों से जैसलमेर के गुलजार रहने की उम्मीद थी, लेकिन पूरा नवरात्र बीतने के बावजूद बंगाली सैलानियों की आवक बहुत कम हुई.
पर्यटन व्यवसायी लव जोशी और योगेश बिस्सा ने बताया कि हर साल नवरात्र शुरू होने के साथ ही बंगाली सैलानी जैसलमेर पहुंच कर सीजन की शुरुआत कर देते थे. इसके बाद नवरात्र खत्म होने पर वे वापस बंगाल लौट जाते थे. पश्चिम बंगाल में नवमी पूजा का विशेष महत्व है. इसी के चलते नवमी की पूजा बंगाली अपने घरों में करते हैं, लेकिन इस साल पूरा नवरात्र बीत गया. इसके बावजूद बंगाली सैलानी जैसलमेर में दिखाई नहीं दिए.
बंगाली सैलानी करते थे सीजन की शुरुआत :जैसलमेर में यह ट्रेंड बन गया कि नवरात्र शुरू होने के साथ ही बंगाली सैलानी जैसलमेर पहुंचने शुरू हो जाते थे. इसके बाद पूरे नवरात्र बंगाल के पर्यटकों से गुलजार रहता था. नवरात्र खत्म होने के साथ ही बंगाली सैलानी वापस लौट जाते थे. ऐसे में दीपावली से करीब एक महीना पहले पर्यटन सीजन की शुरुआत हो जाती थी. इसके बाद सैलानियों की रेलमपेल जारी रहती थी, लेकिन इस साल अब तक बंगाली सैलानियों के जैसलमेर नहीं आने से पर्यटन सीजन शुरू ही नहीं हो पाया है.
अब नॉर्थ इंडिया से पर्यटकों की उम्मीद :नवरात्र खत्म होने के बाद जैसलमेर में नॉर्थ इंडिया से सैलानी जैसलमेर पहुंचते हैं. इनमें भी खासकर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली के आस-पास के सैलानी जैसलमेर पहुंचते हैं. उम्मीद है कि अब नॉर्थ इंडिया के सैलानी जैसलमेर को गुलजार करेंगे. हालांकि, इक्का-दुक्का सैलानी जैसलमेर के पर्यटन स्थलों पर दिखते हैं, लेकिन इस बार पर्यटकों के समूहों का बूम नहीं होने से पर्यटन व्यवसायी काफी मायूस हैं.