देहरादून:चमोली जिले में स्थित माणा गांव विश्व प्रसिद्ध है, जिसे अतीत में मणिभद्र के नाम से जाना जाता था, लेकिन बीते कुछ सालों से इस गांव का पूरा स्वरूप बदल गया है. गांव में पर्यटन गतिविधियां बढ़ी हैं, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त हो रहे हैं. वहीं भारत और तिब्बत सीमा पर बसा ये गांव सामरिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है. कभी इस गांव को देश का अंतिम गांव कहा जाता था, लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी के दौरे के बाद इस गांव को प्रथम गांव का दर्जा मिलने के बाद तरक्की की इबारत लिख रहा है. मान्यता है कि वेदव्यास ने इसी गांव में कई ग्रंथों को लिखा है. वहीं इसी स्थान से सरस्वती नदी का उद्गम होता है.
पीएम मोदी के संबोधन के बाद बदली तस्वीर:माणा गांव उत्तराखंड के सीमांत जिले चमोली में पड़ता है. यूं तो शुरू से टूरिस्ट माणा गांव पहुंचते हैं, मगर तब इनकी संख्या बेहद कम होती थी. पीएम मोदी एक संबोधन के बाद माणा गांव की तस्वीर ही बदलने लगी है. पीएम नरेंद्र मोदी के 'पहले गांव' के संबोधन से माणा गांव एक बार फिर से सुर्खियों में आया है. इसके बाद चारधाम यात्रा पर आने वाले पर्यटकों के साथ ही एंडवेचर में रूचि रखने वाले टूरिस्ट हर रोज यहां पहुंचते हैं. वे यहां की खूबसूरती के साथ ही यहां के इतिहास को भी जानने की कोशिश करते दिखते हैं. माणा गांव आज उत्तराखंड के टूरिज्म सेक्टर में अलग पहचान बना रहा है. टूरिज्म बढ़ने से इस गांव और इसके आस पास के इलाकों में रोजगार भी बढ़ा है.
तेजी से बदल रहा माणा गांव: आज से लगभग 4 साल पहले माणा गांव में लोग अपनी दिनचर्या में व्यस्त रहते थे, लेकिन अब इस गांव में हर तरफ व्यावसायिक गतिविधियां दिखाई दे रही हैं. इस गांव में अब पर्यटकों की भारी भीड़ और दुकानों में बैठी अनुसूचित जनजाति की महिलाएं देखने को मिलती हैं. इस गांव में लगभग 60 घर थे, लेकिन अब वो घर होमस्टे और दुकानों में तब्दील हो गए हैं. माणा को पूर्व में मणिभद्रपुर के नाम से जाना जाता है.