रांची:पलामू की हुसैनाबाद सीट से एनसीपी विधायक कमलेश कुमार सिंह के भाजपा में शामिल होने से यहां का राजनीतिक समीकरण और ज्यादा पेचीदा हो गया है. इस बात की चर्चा है कि जिस एनसीपी की बदौलत कमलेश कुमार सिंह को राजनीतिक पहचान मिली, उन्हें भाजपा का दामन क्यों थामना पड़ा. क्योंकि सिवाय 1990 का चुनाव छोड़कर यह सीट कभी भाजपा के लिए मुफिद नहीं रही है. तब अयोध्या के राममंदिर का मामला चल रहा था. इसका फायदा भाजपा को मिला था. लेकिन उसके बाद हुसैनाबाद में भाजपा कभी खड़ी नहीं हो पाई.
आलम यह है कि हुसैनाबाद में राजनीति के पंडितों का भी माथा घूम जाता है. यह ऐसी सीट है जहां पिछले चार दशक में हुए आठ चुनावों के दौरान किसी भी प्रत्याशी ने लगातार दो बार जीत हासिल नहीं की है. 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य बनने से पहले एकीकृत बिहार में इस सीट पर राजद का कब्जा था. लेकिन 2005 से 2019 तक हुए चार चुनावों में एनसीपी के कमलेश कुमार सिंह एकमात्र नेता रहे जिन्होंने 2005 और 2019 का चुनाव जीता. इस बीच 2009 में राजद और 2014 में बसपा काबिज रही.
चुन-चुनकर भ्रष्टाचारियों को भाजपा कर रही शामिल - झामुमो
कमलेश सिंह के भाजपा में शामिल होने पर झामुमो के प्रवक्ता मनोज पांडेय ने चुटीले अंदाज में इसपर प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने ईटीवी भारत को बताया कि चार हजार करोड़ के घोटाले के आरोपी मधु कोड़ा जैसे लोग पीएम मोदी के मंच की शोभा बढ़ा रहे हैं. मनी लाउंड्रिंग मामले में हरिनारायण राय सजायाफ्ता हैं. उनके घर भाजपा नेताओं का आना-जाना लगा हुआ है. दवा घोटाला और आय से अधिक संपत्ति मामले में भ्रष्टाचार के आरोपी भानु प्रताप शाही पहले ही भाजपा में जा चुके हैं. अब मनी लाउंड्रिंग का ट्रायल फेस कर रहे भ्रष्टाचार के आरोपी कमलेश कुमार सिंह की भी एंट्री हो गयी है. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी चाहते हैं कि एक भी भ्रष्टाचारी ना छूटे. सभी को चुन-चुनकर भाजपा में शामिल करना है. इसे जनता देख और समझ रही है.
हुसैनाबाद सीट का जातीय समीकरण
हुसैनाबाद में राजपूत वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. पचास हजार से ज्यादा राजपूत वोटर हैं. संख्या के लिहाज से दूसरे स्थान पर दलित वोटर हैं. इनकी संख्या करीब 40 हजार के आस-पास है. लेकिन दलित समाज की अलग-अलग जातियों का रुझान बसपा, राजद और भाजपा की तरफ रहा है. तीसरे स्थान पर मुस्लिम वोटर की संख्या करीब 33 हजार है. चौथे नंबर पर यादव हैं. इनकी संख्या करीब 25 हजार है. इसके बाद कोईरी वोटर करीब 20 हजार हैं. अन्य में बनिया, ब्राह्मण, चौधरी, चंद्रवंशी जातियां हैं. जानकारों के मुताबिक चंद्रवंशी का वोट राजद और भाजपा में बंटता है.
हुसैनाबाद के स्थानीय जानकारों का कहना है कि इसी समीकरण की वजह से कमलेश सिंह को एज मिलता रहा है. इस बार कर्नल संजय सिंह भाजपा के लिए मेहनत कर रहे थे. अगर वह निर्दलीय उतरते हैं तो समीकरण पर असर पड़ सकता है. ऊपर से भाजपा के विनोद कुमार सिंह अगर बागी बन जाते हैं तो भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है. हालांकि अभी तक विनोद कुमार सिंह ने अपना पत्ता नहीं खोला है.
हुसैनाबाद में किसी की जीत नहीं हुई रिपीट
1990 में अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा गरमाने लगा था. पहली बार भाजपा की टिकट पर दशरथ कुमार सिंह ने जीत हासिल की थी. उन्होंने जनता दल के विरेंद्र सिंह को कांटे की टक्कर में सिर्फ 163 वोट के अंतर से हराया था. जनता दल के विरेंद्र को 16,047 वोट मिले थे. कांग्रेस के प्रेम शंकर सिंह तीसरे और सीपीआई के औरंगजेब खान चौथे स्थान पर रहे थे. 6 अप्रैल 1980 को भाजपा के गठन के बाद भाजपा प्रत्याशी दशरथ कुमार सिंह ने 1985 के चुनाव में नौंवा स्थान लाया था. 1985 में कांग्रेस के हरिहर सिंह की जीत हुई थी.
1995 में जनता दल का था कब्जा
1995 में एकीकृत बिहार के वक्त हुसैनाबाद सीट पर जनता दल के अवधेश कुमार सिंह विजयी हुए थे. उन्होंने 28,551 वोट लाकर भाजपा के कामेश्वर प्रसाद को 13,802 वोट के अंतर से हराया था. तीसरे स्थान पर बसपा के हरि यादव थे. उन्हें 9,426 वोट मिले थे. जबति समता पार्टी से दशरथ कुमार सिंह चौथे स्थान पर रहे थे.
2000 में राजद के लालटेन ने बिखेरी थी रौशनी
2000 में एकीकृत बिहार समय हुसैनाबाद सीट पर राजद के संजय कुमार सिंह यादव विजयी हुए थे. उनका मुकाबला समता पार्टी के दशरथ कुमार सिंह से हुआ था. संजय ने 28,074 और दशरथ 22,102 वोट लाए थे. इस चुनाव में कांग्रेस के इरफान सिद्दिकी तीसरे और भाजपा के अवधेश कुमार सिंह चौथे स्थान पर रहे थे. खास बात है कि 1995 में जनता दल की टिकट पर चुनाव जीतने वाले अवधेश कुमार सिंह को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया था. फिर भी इनकी जमानत जब्त हो गई थी.
गौर करने वाली बात है कि इस चुनाव में एनसीपी की टिकट पर कमलेश कुमार सिंह नौंवे स्थान पर थे. उन्हें महज 1,550 वोट मिले थे. उनकी जमानत जब्त हो गई थी. लेकिन पांच वर्ष पूरा होते ही कमलेश सिंह ने बाजी पलट दी.