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पिता की अंतिम इच्छा और गुरु दक्षिणा, एक साथ चुकाया दोनों का कर्ज! जानें, तीन भाइयों की भावनात्मक कहानी - Government school

Three brothers renovated government school. बचपन का पहला कदम और स्कूल की पहली सीढ़ी, जिनसे हमारा बड़ा गहरा नाता होता है. पिता की उंगली पकड़ कर उठा पहला कदम और पिता के कंधे पर बैठक स्कूल का रास्ता. पिता-पुत्र के इस भावनात्मक जुड़ाव और सपने के रूप में नया आयाम मिला. इस रिश्ते और साकार हुए सपने की पूरी कहानी सुनें, हजारीबाग के इन तीन भाइयों की जुबानी.

Three brothers together renovated government school in Hazaribag
ग्राफिक्स इमेज (Etv Bharat)

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Aug 12, 2024, 6:39 PM IST

हजारीबागः वो विद्यालय, जिस परिसर में खूब दौड़े-भागे, दोस्तों के साथ खूब लड़े, बाल्यकाल से लेकर किशोर अवस्था तक नये-नये स्वप्न गढ़े, एक छत के नीचे बैठकर ककहरा पढ़े. पिता के बाद बच्चे भी इसी स्कूल परिसर में बड़े हुए. पढ़-लिखकर आज आगे बढ़े, ये यादें आज भी इन भाइयों के जहन में उभर आते हैं. अपने पिता की अंतिम इच्छा पूरा करते हुए हजारीबाग के ये तीन भाई आज समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन गये हैं. आज आपको ईटीवी भारत ऐसे तीन भाइयों के बारे में बताने जा रहा है, जिन्होंने समाज को यह बताने की कोशिश की है कि अगर आप सक्षम हैं तो कुछ ऐसा कीजिए. जिससे समाज का भला हो जाए.

ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्टः हजारीबाग के तीन भाइयों की कहानी (ETV Bharat)

सरकारी स्कूल का कायाकल्प

शहर के जादो बाबू चौक निवासी स्व. महेन्द्र प्रसाद गुप्ता के तीन पुत्रों राजेश गुप्ता, रूपेश गुप्ता और रितेश गुप्ता ने जिस सरकारी बालिका मध्य विद्यालय कुम्हारटोली, कानी बाजार में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की थी. उन्होंने अपने पिता के सपने को साकार करते हुए उस विद्यालय का कायाकल्प करते हुए स्कूल की तस्वीर पूरी तरह से बदल दी. जिस विद्यालय में चारों ओर कभी कचरे का अंबार रहता था, टूटी चहारदीवारी के भीतर बच्चे पढ़ाई छोड़ अन्य गलत संगत में बेकार के काम थे. लेकिन गुप्ता बंधुओं के निजी प्रयास से इसकी तस्वीर बदल गई है. 13 अगस्त को ये परिवार जिला प्रशासन को विद्यालय हैंडओवर करेगा. पूरे विद्यालय को नए रूप में तैयार किया गया है. तस्वीर बदलने का काम सितंबर 2022 से शुरू हुई. जब उपायुक्त से विभागीय अनुमति लेकर जीर्णोद्धार कार्य प्रारंभ किया गया.

पिता की थी अंतिम इच्छा

स्व. महेन्द्र प्रसाद गुप्ता के बड़े पुत्र राजेश गुप्ता ने बताया कि पिता ने अखबार में पढ़ा था कि जिस स्कूल में उन्होंने पढ़ाई की थी उसे वहां के छात्र की निजी प्रयास से जीर्णोद्धार किया गया था. पिता की चाहत थी कि उनके पुत्र भी कुछ ऐसा ही करें और ये इच्छा ही उनके पिता की अंतिम इच्छा बन गयी. क्योंकि कोरोना काल में उनके पिता का साया उठ गया. इसके बाद तीनों भाइयों ने मिलकर अपने पिता की आखिरी ख्वाहिश को पूरा करते हुए स्कूल का कायाकल्प कर दिया.

राजेश गुप्ता का कहना है कि तीनों भाई ने प्रारंभिक शिक्षा इसी सरकारी स्कूल से प्राप्त की थी. इसी स्कूल की देन है कि आज तीनों भाई समाज में स्थापित है. छोटा भाई रितेश गुप्ता साउथ अफ्रीका में सीए की नौकरी करता है. राकेश गुप्ता रूपेश गुप्ता हजारीबाग में ही व्यवसाय करते हैं. आज हम ऐसे में तीनों भाई सक्षम है. तीनों के सामूहिक प्रयास से स्कूल का कार्यक्रम किया गया है.

रितेश गुप्ता साउथ अफ्रीका से हजारीबाग आए हुए हैं. 13 अगस्त को विद्यालय को प्रशासन को देने की तैयारी चल रही है. उन्होंने कहा कि समाज में हर एक व्यक्ति जो सक्षम है उसे कुछ करना चाहिए क्योंकि इसी समाज से हम लोग लेते हैं तो देने की आदत भी बनानी चाहिए. उन्होंने कहा कि इस विद्यालय में किचन, नया बाथरूम, हॉल, पानी की सुविधा, पेंटिंग, मरम्मत कार्य, गेट, बिजली का काम, प्रधानाध्यापक कक्ष और ऑफिस की रिपेयरिंग कराई गई. सुरक्षा को देखते हुए विद्यालय को सीसीटीवी कैमरे से सुसज्जित किया गया. मेन हॉल में इलेक्ट्रानिक बोर्ड स्थापित किया गया. पूरे परिसर को पौधों और फूलों की क्यारियों से सजाया गया है.

सिर्फ सहयोग नहीं सामाजिक सरोकार भी जरूरी

रूपेश गुप्ता ने बताया कि तीन भाइयों का ही सिर्फ सहयोग नहीं है. बल्कि समाज के कई लोग हैं जिन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से मदद की है. जैसे ठेकेदार ने उतना ही पैसा लिया जितना में काम हो जाए. ईंट वाले ने भी पैसा कम लिया. यह भी एक तरह का सहयोग है. उन्होंने कहा कि यह कोशिश होनी चाहिए हम लोग कुछ समाज के लिए कुछ कर पाएं. उनका यह भी कहना है कि हर एक व्यक्ति की इच्छा होती है कि वह कुछ करें लेकिन उन्हें उचित प्लेटफार्म नहीं मिल पाता है.

इसको लेकर विद्यालय के प्रभारी प्राधानाध्यापक विजय कुमार कर्ण भी इन तीन भाइयों के प्रयास की तारीफ करते हुए थक नहीं रहे हैं. उन्होंने कहा कि यही सोच अगर हर एक व्यक्ति में आ जाए तो देश का कोई भी ऐसा स्कूल नहीं होगा जो मूलभूत सुविधा से दूर हो. विद्यालय में 1 से 8वीं तक की कक्षा संचालित होती है. विद्यालय में 110 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं, यहां दो सरकारी और दो सहायक अध्यापक प्रतिनियुक्त हैं. विद्यालय की स्थापना 1942 में बंगाली दुर्गा स्थान से हुई थी. बाद में इसे यहां संचालित किया जाने लगा.

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