लखीमपुर खीरी:यूपी के दुधवा टाइगर रिजर्व नेशनल पार्क में तीन गैंडों पर सबकी नजर है. वन्य जीवों की देखभाल करने और इनके व्यवहार पर नजर रखने वालों के लिए दुधवा के ये तीन गैंडे उत्सुकता का विषय बने हैं. पिछले करीब 25 साल तक एकछत्र राज करने वाले गैंडे बांके की मौत हो चुकी है. बांके की जगह पाने के लिए ये तीन गैंडे गाहे-बेगाहे एक-दूसरे से भिड़ते रहते हैं. दुधवा का सरताज कौन बनेगा, तीनों में इसके लिए जोर आजमाइश चल रही है. दुखद यह कि तीनों के लिए चुनौती बने चौथे गैंडे भीमसेन ने इसी वर्चस्व की लड़ाई में अपनी जान गंवा दी.
पार्क में अभी 46 गैंडे :दुधवा में गैंडों का कुनबा फूलफूल रहा है. फिलहाल यहां 46 गैंडे हैं. करीब 40 साल पहले गैंडों के परिवार को अपने पुरखों की धरती पर 100 साल बाद बसाया गया था. तब से गैंडों के परिवार में कोई न कोई मुखिया होता है. हालांकि मुखिया बनने की राह कभी आसान नहीं रही. फिलहाल दुधवा में रघु, विजय और पवन में वर्चस्व के लिए अक्सर भिड़ंत होती रहती है. दुधवा में इन तीनों के बीच की लड़ाई चर्चा बनी है.
25 साल रहा यहां बांके का राज :करीब 25 साल तक यहां बांके गैंडे का राज रहा. बांके के जिंदा रहने तक किसी दूसरे गैंडे ने अपना राज कायम करने की हिमाकत नहीं की. अब बांके की मौत हो चुकी है. अब बांके की सत्ता पर रघु, विजय' और पवन नाम के युवा गैंडों में दबदबा बनाए रखने को लेकर द्वंद चल रहा है. गैंडों का सरदार बनने के लिए तीनों आमने-सामने हैं. जोश और ताकत से भरे इन तीनों गैंडों में आए दिन भिड़ंत हो जाती है.
लड़ाई में भीमसेन ने दम तोड़ा :दुधवा में बांके और राजू के बाद भीमसेन और सहदेव का नाम भी चर्चा में रहा. वर्चस्व के लिए रघू के साथ कई बार भीमसेन की लड़ाइयां हुईं. इसी लड़ाई में भीमसेन ने दम तोड़ दिया. फिर सहदेव ने रघु को चुनौती दी, लेकिन बाजी रघु के हाथ रही. अब रघु को विजय और पवन नाम के गैंडे चुनौती दे रहे हैं. इस तरह दुधवा में सरताज बनने की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है.
1984 में बसा था दुधवा में गैंडों का परिवार :दुधवा टाइगर रिजर्व में 1984 में गैंडों को उनकी खोई जमीन पर 'रिहेबिलिटेट' किया गया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसके लिए व्यक्तिगत रुचि ली. हवाई जहाज से असम से पांच मेल और फीमेल गैंडों को लाया गया. गैंडों को तराई की धरती की आबोहवा खूब भाई. कुनबा फलने-फूलने लगा. पहले राजू फिर बांके का बरसों तक गैंडों के कुनबे पर एकछत्र राज रहा. करीब 25 सालों तक बांके पूरे कुनबे पर अपने भारी भरकम डीलडौल और ताकत के बल पर राज करता रहा. दुधवा के सलूकापुर में चल रहे गैंडा पुनर्वासन केंद्र में बांके की मौत के बाद कुनबे का सरदार बनने को युवा गैंडे बराबर कोशिश में जुटे हैं.
भारी पड़ रहा रघु :नई पीढ़ी का रघू अपने आकर्षक गठीले शरीर, सूझबूझ और ताकत के बल पर पूरे गैंडा कुनबे पर भारी साबित हो रहा है. रघू दुधवा के मेल गैंडों में इस वक्त सबसे ताकतवर गैंडा माना जा रहा है. रघू की बादशाहत को भीमसेन और सहदेव की मौत के बाद अब विजय और पवन चुनौती दे रहे हैं.