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रोचक है भगवान शंभुनाथ के अवतरण की कथा, दर्शन मात्र से पूरी होती भक्तों की मनोकामना - Unique Story Of Shambhunath

Unique Story Of Shambhunath, अजमेर के सोमलपुर गांव की पहाड़ी पर भगवान शंभुनाथ का अति प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर और यहां के शिवलिंग को लेकर कई दंतकथाएं प्रचलित हैं. हालांकि, इस मंदिर और शिवलिंग का कोई लिखित इतिहास तो नहीं मिलता है, बावजूद इसके मान्यता है कि यहां देवाधिदेव महादेव स्वयंभू हैं.

Unique Story Of Shambhunath
दर्शन मात्र से पूरी होती भक्तों की मनोकामना (ETV BHARAT AJMER)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Aug 11, 2024, 6:33 AM IST

भगवान शंभुनाथ के अवतरण की कथा (ETV BHARAT AJMER)

अजमेर :कोई कुछ भी कर ले, लेकिन हकीकत यही है कि बिना भगवान की मर्जी के एक पत्ता तक नहीं हिल सकता है. राजस्थान के अजमेर जिले के सोमलपुर गांव की पहाड़ी पर एक शिवालय स्थित है. ये शिवालय 1500 साल से भी अधिक पुराना है और इसे शंभुनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है. पहाड़ी, हरियाली, झरने और सुंदर प्राकृतिक छटाओं के बीच स्थित भगवान शंभुनाथ का ये मंदिर बेहद खास है. ऐसा इसलिए क्योंकि यहां देवाधिदेव महादेव स्वयंभू हैं. हालांकि, इस मंदिर का कोई लिखित इतिहास नहीं मिलता है. बावजूद इसके यहां सालों से शिव भक्त दर्शन व पूजन के लिए आते हैं. साथ ही इस मंदिर व शिवलिंग के अवतरण को लेकर कई दंतकथाएं प्रचलित हैं.

ऐसे अवतरित हुए थे भगवान :मंदिर के पुजारी विजय सिंह ने बताते हैं कि दौराई गांव में गुर्जर समाज के बगड़ावत गोत्र के 30 से ज्यादा भाई रहते थे. वो सभी शिवलिंग को नाग पहाड़ी से लेकर आए थे. बगड़ावत भाई शिवलिंग को दौराई गांव में स्थापित कर मंदिर बनाना चाहते थे. मगर मार्ग में ही सोमलपुर के पास शिवलिंग से मनुष्य के रूप में शंभुनाथ प्रकट हुए, जिसकी भनक बगड़ावत भाइयों को नहीं लगी.

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दोबारा नजर नहीं आए भगवान : शंभुनाथ ने शिवलिंग को दौराई गांव में स्थापित करने से मना कर दिया. मगर बगड़ावत भाई नहीं माने. उन्होंने शिवलिंग को ले जाने का काफी प्रयास किया, मगर उनके सभी प्रयास विफल हो गए. आखिरकार शंभुनाथ के कहने पर इस स्थान पर ही बगड़ावत भाइयों ने शिवलिंग की स्थापना कर दी. उसके बाद शंभुनाथ कभी किसी को दोबारा नजर नहीं आए. हालांकि, उस वक्त शिवालय पर रोज एक गाय आती थी.

भगवान से मांगा मेहनताना :बगड़ावत भाइयों में से एक भाई भोजा उसको चराता था. शाम को गाय चराने के बाद वो गायब हो जाती थी. गाय को रोज चराने वाले भोजा ने सोचा कि क्यों न गाय का शाम को पीछा किया जाए. उसी दिन शाम को भोजा ने गाय का पीछा किया. गाय पहाड़ में स्थित एक गुफा में घुस गई. इस दौरान गाय की पूछ पकड़कर भोजा भी गुफा में घुस गया. गुफा के भीतर भोजा को भगवान शंभुनाथ के दर्शन हुए, लेकिन वो समझ नहीं पाया कि वो साक्षात शिव शंभू हैं या कोई इंसान.

भोजा ने शंभुनाथ से गाय को चराने का मेहनताना मांगा. इस पर शंभुनाथ ने भोजा को एक मुट्ठी ज्वार दे दी. भोजा एक मुट्ठी ज्वार लेकर अपने घर की ओर चल पड़ा. इस बीच रास्ते में उसने उस ज्वार को एक पेड़ के नीचे यह सोच कर डाल दिया कि एक मुट्ठी ज्वार का वो क्या करेगा. हालांकि, इस दौरान कुछ ज्वार भोजा के कपड़ों से चिपके रह गए. रात को जब भोजा अपने घर पहुंचा तो उसे देखकर परिजनों की आंखें फटी की फटी रह गईं.

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ऐसे भोजा बना भक्त :भोजा के कपड़े पर लगे ज्वार हीरे, रत्न और स्वर्ण की तरह चमक रहे थे. परिजनों के पूछने पर भोजा ने पूरा प्रसंग सुनाया. तब भोजा और उसके भाइयों को पहली बार अहसास हुआ कि शंभुनाथ कोई और नहीं स्वयं महादेव हैं. भोजा ने उस वक्त से ही शंभुनाथ का चेला बनने का संकल्प ले लिया और वो शंभुनाथ के शिवलिंग की सेवा करने लगा. भोजा के बाद भी कई संतों ने यहां रहकर शंभुनाथ के शिवलिंग की सेवा की.

पुजारी विजय सिंह बताते हैं कि वर्षों से यहां धूना प्रज्ज्वलित है. यानी कोई न कोई व्यक्ति यहां हर दिन जरूर रहता है. उन्होंने बताया कि ये पूरा वन क्षेत्र है. यहां जंगली जानवर विचरण करते हैं. इस कारण भी शिवालय तक बहुत ही कम लोग आते हैं. सावन के महीने में कुछ श्रद्धालु यहां आते रहते हैं.

अलीबाबा करते थे पूजा :मंदिर के सेवादार श्रवण सिंह बताते हैं कि 1986 से पहले यहां अलीबाबा रहा करते थे. वे शंभुनाथ की सेवा किया करते थे. उन्होंने इस धुनें को प्रज्वलित रखा. उन्होंने बताया कि मंदिर से आगे पहाड़ी पर ही अलीबाबा की मजार है. अलीबाबा मुस्लिम समुदाय में मेहरात जाति के थे. मूलतः अलीबाबा ब्यावर के नजदीक बायला गांव के रहने वाले थे. वो जवानी में जोधपुर में फौज में थे. अफसर से अनबन होने के बाद वो फौज की नौकरी छोड़कर यहां आ गए और हमेशा के लिए यही रह गए.

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मंदिर और उसके आसपास का निर्माण अलीबाबा ने ही करवाया था. मंदिर आने वाले श्रद्धालु शंभुनाथ के शिवालय का दर्शन करने के बाद धूनी के दर्शन कर अलीबाबा की मजार की जियारत करते हैं. बाबा शंभुनाथ का शिवालय कौमी एकता की मिसाल है. यहां हर धर्म जाति के लोग आते हैं. मंदिर परिसर में ही चट्टान के नीचे अलीबाबा का कमरा भी है, जहां उनके बर्तन और अन्य सामान सुरक्षित रखे हैं. उन्होंने बताया कि मंदिर में आने वाले सभी श्रद्धालुओं की भगवान भोलेनाथ मनोकामनाएं पूरी करते हैं.

पहाड़ी के शीर्ष पर है शंभुनाथ का धूना :सोमलपुर की खटोला पहाड़ी के शीर्ष पर शंभुनाथ का घूना है. यहां तक पहुंचना हर किसी के बस की बात नहीं है. शंभुनाथ पहाड़ी के बीच शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं. बताया जाता है कि भगवान शंभुनाथ का शिवलिंग यहां पंद्रह सौ वर्ष पहले स्थापित किया गया था. पहाड़ी के बीच शंभुनाथ के मंदिर तक जाने का दुर्गम रास्ता है.

पहाड़, झरने और पक्षियों का कलरव यहां आने वाले श्रद्धालुओं का मन मोह लेता है. श्रद्धालु प्रकृति को महसूस करते हुए बाबा शंभुनाथ के शिवालय तक पहुंचते हैं. मंदिर के आसपास दिखने वाली प्राकृतिक नजारे सभी को खुद की ओर से आकर्षित करती है. हालांकि, इस पवित्र और अति प्राचीन शिवालय के बारे में कम ही लोग जानते हैं.

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वहीं, जो यहां पहली बार आता है, उसे दोबारा आने की प्रबल इच्छा रहती है. मंदिर के समीप ही एक धूना है, जो कई वर्षों से प्रज्ज्वलित है. मंदिर आने वाले श्रद्धालु धुनें के भी दर्शन करते हैं. बताया जाता है कि शंभुनाथ का मुख्य धूना पहाड़ी के शीर्ष पर है, जहां तक पहुंच पाना काफी मुश्किल है. मंदिर तक पहुचने में ही भक्तों के सांस फूलने लगती है, लेकिन यहां की प्राकृतिक नजारें और शुद्ध हवाएं मन को तरोताजा कर देती है.

यहां पहुंचने पर होता अद्भुत अहसास :बुजुर्ग श्रद्धालु राजेंद्र शर्मा बताते हैं कि शहर के निकट होने के बावजूद भी वो मंदिर में पहले कभी आ नहीं पाए. यह महादेव की ही कृपा है कि इस उम्र में महादेव ने उन्हें बुलाया. शर्मा बताते हैं कि लोग महादेव के दर्शन करने के लिए और प्रकृति का अनुपम नजारा देखने के लिए केदारनाथ, अमरनाथ आदि बड़े धार्मिक स्थलों पर जाते हैं, लेकिन अजमेर में ही शंभुनाथ के दर्शन करने को मिल रहा हैं. लोगों को यहां जरूर आना चाहिए. यहां शंभुनाथ के दर्शन के साथ ही प्रकृति को महसूस करने का अद्भुत अनुभव होता है.

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