शिमला: उस बोतल से कुछ घूंट अंदर लेने के बाद मेरे पेट में भारी जलन होना शुरू हो गई. ऐसा लग रहा था मेरा पेट जल रहा है. कुछ मिनटों में खून की उल्टियां होना शुरू हो गई थी. आईजीएमसी पहुंचते पहुंचते मैं बेहोश हो गई थी. बस कुछ ही मिनटों में मेरी जिंदगी हमेशा के लिए बदल चुकी थी. ये कहानी है शिमला के ठियोग की रहने वाली अंकिता की, जिन्होंने गलती से गाड़ी में रखा बैटरी वाटर गलती से पानी समझ कर पी लिया था.
अंकिता वर्मा हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ मास कम्यूनिकेशन की पढ़ाई कर रहीं थी. 6 दिसंबर 2018 को उनका प्रैक्टिक्ल था. अंकिता उस दिन को याद करती हुई बताती हैं कि उस दिन सुबह मैं भूखे पेट ही घर से निकल गई थी. प्रैक्टिक्ल के बीच में मुझे प्यास लग रही थी. प्रैक्टिकल से बाहर निकलने के बाद मैं बस स्टॉप पर पहुंची इतने में मेरे गांव के परिचित जो रिश्ते में मेरे भाई थे मुझे मिल गए और मैं उनकी गाड़ी में बैठ गई.
गाड़ी में गलती से पी लिया बैटरी वाटर
अंकिता बताती हैं कि,'गाड़ी में बैठने से पहले ही मुझे जोर से प्यास लगी थी. गाड़ी में एक साथ तीन बोतल रखी थीं. दो बोतल में पानी था और एक में बैटरी बॉटल था. मैंने गलती से बैटरी वाटर को पानी समझ कर पी लिया, क्योंकि ये एकदम पानी जैसा ही था. एक दो घूंट लेने के बाद मुझे जलन होना शुरू हुई. गाड़ी में ही बैठे-बैठे मैंने अपने दोस्त से पीने का पानी मांगा. इतने में मुझे बेहोशी छाने लगी थी और मुझे खून की उल्टियां होने लगी. इसी बीच मेरे दोस्त मुझे आईजीएमसी हॉस्पिटल लेकर पहुंचे.
बैटरी वाटर पीने के बाद जल चुका था पेट
अस्पताल पहुंचने से पहले रास्ते में अंकिता ने एक समझदारी भरा काम ये किया कि बैटरी वाटर पीने के बाद उन्होंने पानी पी लिया था. इससे वैटरी वाटर का असर कम हो गया और उनकी फूड पाइप को नुकसान नहीं हुआ, लेकिन उनका पेट अंदर से जल चुका था. अंकिता ने बताया कि अस्पताल पहुंचने से पहले ही मैं बेहोश हो गई थी. मेरे कपड़े जल चुके थे. अंकिता ने बताया कि बैटरी वाटर में न कोई बदबू थी और न ही उसका कोई रंग था, यानि कि बैटरी वाटर देखने-सूंघने और स्वाद में पानी जैसा ही था, जिसे मैंने पानी समझकर पी लिया था और इसे पीने के कुछ सेकेंड बाद मुझे ये अंदाजा हुआ कि ये पानी नहीं कुछ और था.
चंडीगढ़ में हुई बाईपास सर्जरी
अंकिता आगे बताती हैं कि, 'अस्पताल जाते जाते मुझे ऐसा लग रहा था कि अब मैं नहीं बच पाऊंगी. IGMC में डॉक्टरों ने मेरे केस को हल्के में लिया, डॉक्टर इसे बस सामान्य घटना ही समझ रहे थे. दो बार मेरी एंडोस्कोपी की गई. मैं करीब एक महीने तक आईजीएमसी में एडमिट रही और इस दौरान मैं सिर्फ ग्लूकोज पर ही जिंदा रही. उसके बाद मेरे परिजनों ने मुझे डिस्चार्ज करवा लिया, क्योंकि मुझे आराम नहीं मिल रहा था.'
अंकिता वर्मा बताती हैं कि, 'आईजीएमसी से लौटने के बाद मैं एक दिन घर पर पूरी तरह से बेहोशी की हालत में चली गई थी. मेरे पापा ने मुझे अपने मुंह से सांस दी. बर्फ के बीच ठियोग से मुझे दोबारा आईजीएमसी पहुंचाया गया. आईजीएमसी से मुझे मेरे माता-पिता PGI चंडीगढ़ लेकर आए. PGI जाते-जाते भी गाड़ी में खून की उल्टियां होने लगीं. मैं चंडीगढ़ तक पहुंचते ही जिंदगी हार चुकी थी. चंडीगढ़ में मुझे डॉक्टर ने ऑपरेशन के लिए कहा था. मैं ऑपरेशन नहीं करवाना चाहती थी, लेकिन में अपने पेरेंटस के लिए ठीक होना चाहती थी. ऑपरेशन के बाद मुझे सर्जन ने बताया कि मेरा साठ प्रतिशत पेट निकाल दिया गया है. मेरी बाईपास सर्जरी की गई थी. मेरे पेट से 14 सेंटीमीटर आंत निकाल दी गई थी.'
ऑपरेशन के बाद सामने आई ये चुनौतियां
अंकिता ने बताया कि,'ऑपरेशन के बाद डॉक्टरों ने मुझे खाने पीने का ध्यान रखने के लिए कहा था. तला हुआ भोजन, पैकेड जूस और फूड खाने से परहेज करने के लिए कहा था. ऑपरेशन के बाद खाने से सिर्फ मेरा पेट भरता है, उससे कोई एनर्जी नहीं मिलती है. मुझे हर महीने में विटामिन और हर तीन चार महीनों में आयरन के इंजेक्शन लेने पड़ते हैं. वैटरी वाटर पीने के बाद मेरे दांत पीले पड़ गए थे, जीभ पूरी तरह से जल गई थी. मेरा वजन घटकर 38 किलो पहुंच गया था. मेरे लिए ये बेहद तकलीफ देने वाला समय था. आज भी मैं ज्यादा ट्रैवल नहीं कर पाती. सिर में दर्द बना रहता है और कमजोरी महसूस होती है. आज भी जिंदगी आसान नहीं है.'