पटना: लोकसभा चुनाव 2024 के लिए तिथियों की घोषणा हो गयी है. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. 2004 में राजद ने 22 सीट जीती थी, तो कांग्रेस ने तीन सीटों पर जीत हासिल की थी. इस तरह से 25 सीटों पर लालू यादव के गठबंधन की जीत हुई थी. लेकिन, उसके बाद लालू यादव लोकसभा के किसी चुनाव में ना तो पार्टी को डबल डिजिट में पहुंचा सके और ना ही गठबंधन को. अब, इस बार तेजस्वी यादव के कंधों पर पार्टी और गठबंधन को डबल डिजिट में पहुंचाने की चुनौती है.
2019 में नहीं खुला था खाताः राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो तेजस्वी के लिये ऐसा करना आसान नहीं होगा. लालू के जमाने में कई जिताऊ उम्मीदवार थे. तेजस्वी अभी जिताऊ उम्मीदवार की खोज कर रहे हैं. ऐसे में तेजस्वी के लिए लोकसभा चुनाव में राजद को शून्य से शिखर तक पहुंचाने की चुनौती होगी. बिहार में 2004 के बाद एनडीए के सामने लालू प्रसाद यादव के गठबंधन को लगातार हार का सामना करना पड़ा. 2019 में राजद की ऐसी स्थिति हो गई थी कि पार्टी का खाता तक नहीं खुला था. महागठबंधन में राजद के साथ कांग्रेस और वामपंथी दल हैं. 2004 को छोड़ दें तो तीनों का जो प्रदर्शन रहा है ना तो अकेले बल्कि साथियों के साथ भी डबल डिजिट पर नहीं पहुंच पाए हैं.
तेजस्वी के कंधे पर बड़ी जिम्मेवारीः एक समय लालू के पास शहाबुद्दीन, तस्लीमुद्दीन, रघुवंश प्रसाद सिंह, जगदानंद सिंह, रघुनाथ झा जैसे उम्मीदवार हुआ करते थे. 2020 विधानसभा में तेजस्वी यादव ने अपने बल पर पार्टी और गठबंधन को बड़ी जीत दिलाई, हालांकि सरकार बनाने से जरूर चूक गए. अब एक बार फिर से तेजस्वी के कंधे पर न केवल आरजेडी बल्कि गठबंधन को डबल जीत में ले जाने की बड़ी चुनौती है.
"पिछले 10 सालों से केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार है. बीजेपी की सरकार ने जो वादा किया था, वह सब जुमला साबित हुआ. जबकि, तेजस्वी यादव ने 17 महीने में काम करके दिखाया है. इसलिए 2019 वाली स्थिति अब कभी आने वाली नहीं है. इसका उल्टा इस बार होने वाला है."- मृत्युंजय तिवारी, राजद प्रवक्ता