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मंदिरों से साईं मूर्ति हटाने का शंकराचार्य ने किया समर्थन - Varanasi Sai Statue Controversy

काशी के मंदिरों से साईं बाबा की मूर्तियों के हटाने के समर्थन में आए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद, अजय शर्मा की गिरफ्तारी का किया विरोध

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 4 hours ago

Published : 4 hours ago

शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती (Etv Bharat)

वाराणसी: काशी के मंदिरों से साईं बाबा की प्रतिमाओं को हटाए जाने के मामले में अब नया मोड़ आ गया है. ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने साईं बाबा की प्रतिमा हटाने वाले लोगों का समर्थन किया है. शंकराचार्य ने ने बयान जारी कर कहा है कि जिन लोगों ने भी यह कार्य किया है, उनका समर्थन होना चाहिए और सनातन धर्म से जुड़े लोगों को उनके साथ खड़े होना चाहिए. बता दें कि साईं बाबा की प्रतिमा को हिंदू मंदिरों से हटाए जाने के मामले में सनातन रक्षक दल के अध्यक्ष और केंद्रीय ब्राह्मण महासभा के प्रदेश अध्यक्ष अजय शर्मा को गिरफ्तार करके जेल भेजा गया है. इन पर चौक और सिगरा थाने में दो मुकदमे भी दर्ज हुए हैं.

पुजारियों और प्रबंधकों की लापरवाही से रखी गई साईं की मूर्तिःअजय शर्मा की गिरफ्तारी का विरोध करते हुए स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने कहा कि सनातनी मन्दिरों में पुजारियों व प्रबन्धकों की नासमझी, लापरवाही व शिथिलता से लोभ, भय अथवा अन्यान्य कारणों से ऐसी मूर्तियां स्थापित कर दी गईं. जिनका सनातन धर्मशास्त्रों में न तो उल्लेख है, न तो कोई उनकी पूजा की विधि है और न ही सनातनधर्मियों को उनसे किसी भी प्रकार की प्रेरणा मिलती है.

मूर्ति हटाकर किया सराहनीय कार्यःउन्होंने कहा कि इस तरह के सनातन धर्म विरोधी कार्य से अपने सनातन धर्म के मंदिर को मुक्त कराने के लिए परिसर में पुनः पवित्र वातावरण बनाने के लिए जागरूकता कुछ लोगों में आई. विशेष करके तब जब ये पता चला कि तिरुपति बालाजी जी मंदिर से जो प्रसाद बांटा जा रहा था व लोगों को खरीदने पर मिल रहा था. उसमें बहुत बड़ी मात्रा में बहुत लम्बे समय तक अखाद्य पदार्थ मिलाए जा रहे थे. ऐसे में शुद्धि के प्रति लोगों में मन में भावना जागृत हुई. तब उन्होंने सोचा कि हमारे सनातनी मन्दिरों के परिसर में ये जो अशुद्धियों आ गई हैं, इनको भी दूर किया जाना चाहिए और इसके लिए कुछ लोग खड़े हुए. ब्राह्मण सभा, सनातन धर्म रक्षक दल व अन्य ऐसी ही कई संस्थाओं के नाम हमको बताये गये और उन लोगों ने साईं की प्रतिमा सनातनी मंदिरों से हटाने का सराहनीय कार्य किया.

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने बताया कि इन लोगों ने कुछ मंदिरों के लोगों से बात की और वहां के लोग भी तैयार हुए. तब बनी सहमति के आधार पर ऐसे जो प्रदूषक तत्व थे, मूर्ति उनको हटा दिया गया. ये काशी में एक अच्छा कार्य हो रहा था. हमको भी लोगों ने बताया था तो हमने कहा कि ये अच्छा कार्य है, अभिनन्दनीय है. ऐसे में अब पता चला है कि ऐसा उत्तम सनातनधर्मानुरूप जो कार्य था, मन्दिरों के परिष्कार का कार्य था, अशुद्धि को दूर करने का कार्य था. उस कार्य में लगे लोगों में से एक पं. अजय शर्मा को पुलिस ने किन्ही लोगों की शिकायत पर शान्ति भंग की आशंका में गिरफ्तार कर लिया है और दूसरी अनेक धाराएं भी लगाई हैं.

मूर्ति तोड़कर फेंकी नहीं तो जा रहीःस्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि वाराणसी प्रशासन द्वारा ऐसा कार्य किया गया है. हम यही नहीं समझ पाते हैं कि अगर हम अपने मंदिरों में कोई शुद्धि कर रहे हैं, परिष्कार कर रहे हैं तो उसमें लोगों को क्या आपत्ति हो सकती है? जो लोग ये कार्य कर रहे थे उन्होंने स्पष्टता के साथ कहा है कि अगर कोई किसी का भक्त है तो वो उनका अलग मंदिर बनाए उसमें उसकी पूजा करें. हालांकि मंदिर तो सनातनी देवताओं का होता है, लेकिन फिर भी इतने तक तैयार हैं कह रहे हैं अलग मन्दिर बना लें और अपने स्वयं पूजा करें तो जब इतनी बात कही जा रही है अपमान किसी का किया नहीं जा रहा है. कोई मूर्ति तोड़कर फेंकी नहीं जा रही है. जब वहां से हटाया जा रहा तब उसे ढंक कर आदरपूर्वक हटाया जा रहा है, ताकि किसी की भावना को ठेस न लगे. ये भी मीडिया में बात आई है कि उनको गंगा में प्रवाहित किया गया. गंगा में प्रवाहित करने का मतलब यह ही कि इस बात का ध्यान रखा गया कि कहीं कूड़े-कचरे में न फेंका जाए ताकि लोगों की भावना आहत न हो.

प्रशासन को केवल हिन्दुओं से अशांतिः उन्होंने कहा कि जब हम अपने पूज्यपाद गुरुदेव की आज्ञा से जो काशी में शिवलिंग प्रकट होने पर उसकी पूजा करने जा रहे थे, तो हमको वहां के प्रशासन ने रोक दिया कि अशान्ति होगी. दोबारा हम परम्परा के अनुसार जब उस परिसर की परिक्रमा करने जा रहे थे तब भी हमें रोक दिया गया, क्योंकि अशान्ति हो रही थी, तो हम पूछना चाहते हैं कि क्या हिन्दू कुछ भी अपने धर्म के लिए करे उसमें अशान्ति हो जाती है और बाकी लोग जो चाहे करें उसमे कोई अशांति समाज में नहीं होती है? ये जो परिभाषा निकलकर धीरे-धीरे सामने आ रही है ये समझ से बाहर है. इसमें अपने को विचार करना पड़ेगा और हिन्दुओं को भी तत्पर होना पड़ेगा. आखिर ये क्या है और प्रशासन को केवल अशान्ति हिन्दुओं से है?

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