वाराणसी: पीरियड महिलाओं के 5 दिन की इस जटिल समस्या से वहीं महिलाएं जुझती हैं, जो इस दौर से गुजर रही होती हैं. बच्चियों के लिए भी अचानक से शुरू होने वाली यह प्रक्रिया निश्चित तौर पर परेशान करने वाली होती है, लेकिन आज भी इस पर खुलकर बात करने से लोग डरते हैं. बाजार में पैड लेने जाने से बच्चियों भी डरती हैं और उनके घर वाले भी. यही वजह है कि वाराणसी का एक बैंक ऐसे गंभीर मामले पर न सिर्फ लोगों को जागरूक करने का काम कर रहा है, बल्कि बच्चियों तक निशुल्क पैड भी पहुंचा रहा है. अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन की रियल स्टोरी वाराणसी के तमाम इलाकों में महिलाओं के ग्रुप के साथ चरितार्थ दिखाई देती है.
दरअसल, वाराणसी की सुनीता भार्गव और उनकी टीम 10 सालों से सखी पद बैंक का संचालन कर रही है. सुनीता बताती हैं कि डिजिटल दौर में उनके पास लगभग 10 साल पहले एक ऐसा मैसेज आया, जिसने उन्हें विचलित कर दिया. उसमें महिलाओं की इस गंभीर समस्या पर किस तरह से पर्दा डालकर घर की महिलाएं ही बच्चियों को भ्रांतियां के साथ जीने पर मजबूर करती हैं. वह उस एक सोशल मीडिया के वीडियो में दिखाया गया था.
उस वीडियो को देखने के बाद मेरी बेटी ने मुझे इस बारे में डिस्कशन किया और मुझे भी यह बात समझ में आई कि यह मामला बेहद गंभीर है आज भी महिलाएं गंदे कपड़े का इस्तेमाल करती हैं और भ्रांतियां के साथ जीती हैं. अचार ना छूना पानी के मटके को हाथ ना लगाना 5 दिनों तक घर के कोने में बैठे रहना, अलग बर्तन का इस्तेमाल करना और किचन में प्रवेश न करना. यह कुछ ऐसी भ्रांतियां हैं, जो पुराने वक्त में तो सही थी, लेकिन आज के बदल चुके दौर में इन चीजों को साथ लेकर चलना मुश्किल है.
उन्होंने कहा कि आज महिलाएं अलग अपने परिवार के साथ मेट्रो सिटीज में रहती हैं. नौकरी करती हैं और इसी दौर में ऑफिस जाकर खाना-पीना बनाने से लेकर सब काम करती हैं. ऐसे में इन भ्रांतियां का दूर होना बेहद जरूरी है. यही वजह है कि हमने महिलाओं का एक ग्रुप तैयार किया और सभी महिलाओं ने 10 साल पहले 5000-5000 जोड़कर इस बैंक की शुरुआत की. पारदर्शिता बनी रहे. इसके लिए हमने बैंक अकाउंट ओपन किया और सभी ने उसी के जरिए पद बैंक में पैड जमा करना शुरू किया. सुनीता का कहना है कि बैंक लेनदेन करता है. हम लेते तो अपने ग्रुप से हैं, लेकिन देते उन लोगों को हैं, जिनको इसकी जरूरत होती है.