पटना: बचपन में सरकारी स्कूल से पढ़ाई की, सड़क किनारे बोड़ा बिछाकर सब्जी बेचने का काम किया. उच्च शिक्षा के लिए बिहार से बाहर पढ़ने गए तो मेस का खाना पसंद नहीं आया, ऐसे में मां के नाम पर फूड एंड स्वीट्स वेंचर शुरू किया. आज 600 से अधिक लोगों को रोजगार दे रहे हैं, इसके अलावा टर्नओवर 20 करोड़ से अधिक का हो गया है. यह कहानी है छपरा के एक छोटे से गांव के रहने वाले अर्जुन कुमार की है.
पढ़ाई में भी तेज थे अर्जुन: अर्जुन ने बताया कि वह छपरा के एक छोटे से गांव खलपुरा के रहने वाले हैं. वह दो भाई एक बहन है और उनके पिताजी रेलवे में ग्रुप डी की नौकरी करते थे. शुरुआती शिक्षा गांव के ही स्कूल में हुई. घर की परिस्थिति के कारण जब चौथी कक्षा में थे, तो अपने खेत से उगी हुई सब्जियों को गांव के बाजार में सड़क किनारे बेचने का काम किया करते थे.
फूड एंड स्वीट्स वेंचर (ETV Bharat) एपीजे अब्दुल कलाम से मिला राष्ट्रीय पुरस्कार: अर्जुन पांचवी कक्षा में थे तो घर में किराने का छोटा दुकान शुरू हुआ, जिसमें बैठकर वह दुकान चलाते थे. पढ़ाई में वो अच्छे थे तो साल 2007 में अपने स्कूल से वह 14वें राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस में शामिल हुए और पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम से राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किया. दसवीं के बाद 2008 में वह आगे की पढ़ाई के लिए पटना आए, यहां उन्होंने आईआईटी की तैयारी शुरू की.
तैयारी के दौरान शुरू किया मेस बिजनेस: पटना में उन्हें मेस का खाना अच्छा नहीं लगा तो अपना मेस शुरू कर दिया. इससे पढ़ाई का खर्चा भी निकल गया. उस समय AIEEE में ठीक-ठाक अंक आया तो एजुकेशन लोन पर गलगोटिया यूनिवर्सिटी में उनका एडमिशन हो गया. घर में पैसे की दिक्कत रहती थी तो कॉलेज में जाने के बाद अपने ही कॉलेज में एडमिशन कंसल्टेंसी का काम शुरू कर दिया और पैसा कमाना चालू हो गया.
पैसे कमाने के लिए छोड़ दिया फाइनल एग्जाम: अर्जुन ने बताया कि पैसे कमाने का चस्का ऐसा लगा कि बीटेक फाइनल ईयर में एक बिजनेस में ₹6 लाख कमाने का मौका मिला. जिसकी वजह से फाइनल एग्जाम तक छोड़ दिया और बिजनेस के लिए बाहर चले गए. इंजीनियरिंग की पढ़ाई यहीं से अधूरी रह गई. साल 2017 में नोएडा में उन्होंने चार-पांच ठेला खरीद कर फूड स्टॉल लगाना चालू किया. चाय, समोसा, कचौरी, गोलगप्पा के अलग-अलग लोकेशन पर ठेले लगाए. स्थानीय कारीगर ढूंढ कर उन्हें वहां काम पर रखा.
मां के नाम पर शुरू किया फूड वेंचर (ETV Bharat) कोविड में बर्बाद हुआ बिजनेस: कंसल्टेंसी और फूड का काम नोएडा में अच्छा चलने लगा. पटना आकर उन्होंने 2019 में पटना मेगा मार्ट्स के नाम से सुपरमार्केट शुरू किया. हालांकि अचानक सब कुछ बर्बाद हो गया. अर्जुन ने बताया कि साल 2020 में जब कोविड का दौर आया तो उनका सारा बिजनेस बंद हो गया. स्टाफ को पैसा देने के लिए मार्केट से कर्ज लेना पड़ा और कर्ज भी काफी अधिक हो गया. घर में लोग बोलने लगें की पढ़ाई छोड़कर तुमने अपना जीवन बर्बाद कर लिया.
"एक समय ऐसा आया कि कर्ज अधिक होने के कारण घर परिवार छोड़कर नेपाल भाग गए. फिर एक दिन तय किया कि परिस्थिति से भागने से बेहतर है कि लड़ा जाए. रेस्टोरेंट बिजनेस करने का सोचा. देखा कि बदलते समय में बर्थडे और एनिवर्सरी जैसा कार्यक्रम लोग रेस्टोरेंट में करना चाहते हैं. साथ ही चाहते हैं कि सभी कुछ बजट में हो जाए."-अर्जुन, रेस्टोरेंट ऑनर
मां के नाम पर शुरू किया फूड वेंचर: अर्जुन ने बताया कि इसके बाद उन्होंने 8 मार्च 2022 को अपनी माता शांतिलाल के नाम पर शांतिलाल फूड एंड स्वीट्स वेंचर शुरू किया. इसके लिए उन्होंने बैंक से लगभग एक करोड़ रुपये का लोन लिया. उन्होंने अपने यहां अनलिमिटेड बफेट का एक नया प्रयोग शुरू किया जिसमें 399 की थाली में 75 से ज्यादा प्रकार का व्यंजन उपलब्ध कराया गया. यह लोगों को काफी पसंद आया और उनकी माता का आशीर्वाद रहा की दो वर्ष में पटना में 10 जगह पर उनके आउटलेट खुल गए हैं.
600 से अधिक लोगों को मिला रोजगार: बिहार के अलग-अलग जिलों से फ्रेंचाइजी की डिमांड आ रही है तो उन लोगों ने फ्रेंचाइजी की भी सुविधा शुरू कर दी है. उनका उद्देश्य यही है कि उचित मूल्य पर लोगों को अच्छा भोजन उपलब्ध हो. अर्जुन ने बताया कि बैंक से लोन लेकर एक आउटलेट खोला लेकिन उनका अनलिमिटेड बफेट का प्रयोग इतना शानदार रहा की कई आउटलेट खुले. आज उनके यहां 600 से अधिक लोग रोजगार प्राप्त कर रहे हैं. पहले साल का टर्नओवर जहां 3 करोड़ गया, वहीं इस साल उनका टर्नओवर 20 करोड़ से अधिक का हो गया है.
20 करोड़ से अधिक का टर्नओवर (ETV Bharat) लोन लेकर शुरू किया स्टार्टअप: स्टॉक मार्केट में भी उनकी कंपनी लिस्टेड हो गई है और अगले 1 साल में वह 1000 से अधिक लोगों को अपने यहां रोजगार से जोड़ लेंगे. उनका टर्नओवर भी 50 करोड़ से अधिक का हो जाएगा. उन्होंने कहा कि काम कोई भी छोटा बड़ा नहीं होता बस ईमानदारी से पैसा आना चाहिए. वह जब नोएडा में ठेला लगाना शुरू किया तो ठेला पर खुद खड़ा रहते थे और लोगों को चाय छान कर देते थे, आज जब बिजनेस ग्रो कर गया है तो भी वह अपने आउटलेट पर जाते हैं तो खुद से कस्टमर को सर्व करते हैं और इसमें वह गर्व महसूस करते हैं.
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