अयोध्या: रामनगरी में रामलला विराजमान हो चुके हैं. अयोध्या के राजा के टाट से ठाठ में आने की खुशी चारो ओर दिखाई पड़ रही है. लेकिन, इन खुशियों के पीछे का जो एक संघर्ष रहा है, वह कभी नहीं भूलने वाला है. जो आज अपने भगवान को महल में बैठा देख रहे हैं, उन्हें इस बात की खुशी भी है और कुछ गम भी है. लेकिन, हम आज सिर्फ खुशियों पर ही बात करने जा रहे हैं. इस संघर्ष में शामिल कारसेवकों ने अपना जीवन खपा दिया. इस इंतजार में कि एक दिन रामलला मंदिर में विराजमान होंगे. इन्हीं कारसेवकों में से एक कारसेवक ओम प्रकाश तिवारी हैं, जिन्होंने भरी आंखों से कहा कि कारसेवकों के रक्त से सरयू लाल थी. आज प्राण प्रतिष्ठा से मन बहुत खुश है.
ओम प्रकाश तिवारी बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव के शासनकाल में ये स्थिति थी. उन्होंने हिन्दू जनमानस को चैलेंज किया था कि अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता है. हम लोग नंदीग्राम भरत कुंड तपस्थली से रातभर गन्ने और खेतों की मेडों पर चलते हुए बिना किसी साधन के अयोध्या पहुंचे थे. ट्रेनें सारी बंद कर दी गई थीं. इसके बावजूद मुलायम सिंह यादव की तानाशाही भाषा का जवाब देना चाहते थे. लाखों की संख्या में कारसेवक, जब भी विश्व हिन्दू परिषद और आरएसएस द्वारा आह्वान किया जाता था, हम लोग तन-मन-धन से अयोध्या नगरी में अपने प्रभु राम का मंदिर बनाने का संकल्प लेकर आया करते थे.
सरयू का रंग हो गया था लाल:ओम प्रकाश तिवारी बताते हैं कि 1990 में मुलायम सिंह की सरकार थी. स्थिति ये थी कि कारसेवक निहत्थे थे. कारसेवा के लिए वे लोग जा रहे थे. मुलायम सिंह का आदेश आता है कि निहत्थे कारसेवकों पर गोलियां चला दी जाती हैं. निहत्थे कारसेवकों पर जिस तरह से गोलियां चलाई गई थीं. सरयू का पानी लाल हो गया था. कितने कारसेवक शहीद हो गए थे. हम लोग उस वक्त बीएस दूसरे साल के छात्र थे. साकेत महाविद्यालय में पढ़ाई कर रहे थे. अयोध्या की गलियों-गलियों से वाकिफ थे. शिवसेना के संतोष दुबे भी थे. जिस समय ढांचा गिराया गया, वे दब भी गए थे. उस दौर में अंदर प्रवेश करने की अनुमति भी नहीं थी. इस तरह का माहौल अयोध्या में बनाकर रखा गया था.