वाराणसी :बात बनारस की हो तो पान का जिक्र सबसे पहले आता है. पान महादेव को भी अति प्रिय माना गया है. यही वजह है कि काशी में हर शुभ काम के पहले भगवान को पान अर्पण करने और खाने की परंपरा है. इन्हीं परंपराओं के बीच बनारस में पुरी के जगन्नाथी पान की भी अपनी अलग कहानी है. यह पान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को भोग स्वरूप अर्पित किया जाता है.
काशी के पहले लक्खे मेले में शुमार रथ यात्रा मेले में भगवान जगन्नाथ को सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए नानखटाई व जगन्नाथी पान भोग लगाने की परंपरा है. मान्यता है कि पान अर्पित करने से भक्त को सुख, सौभाग्य और प्रगति की प्राप्ति होती है. भगवान जगन्नाथ को अर्पित होने वाला पान बेहद खास होता है और इसे खास तरीके से तैयार किया जाता है.
पूरी से आता है जगन्नाथी पान:तांबूल विक्रेता बताते हैं कि भगवान जगन्नाथ को जगन्नाथी पान चढ़ता है जो पुरी (उड़ीसा) से ही आाता है. जगन्नाथ पुरी से ही यह पान बनारस में आया है. वाराणसी में जब भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकलती हैं तो अमृत तुल्य तांबूल (पान) उनको सबसे पहले भोग लगाया जाता है. उसके बाद अन्य व्यंजनों का भोग लगता है.
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र मीठा पान खाते हैं और बहन सुभद्रा को सादा मीठा पान दिया जाता है. इसमें कत्था, नारियल, चूना, गुलाब की पंखुड़ी, गुलकंद, मधुरस, मीठी सुपारी का प्रयोग किया जाता है. भोग चखने के बाद तीनों लोग रथ पर बैठकर जनता को दर्शन देते हैं और शहर भ्रमण करते हैं.
भगवान भोले और विष्णु का अति प्रिय है पान:मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ को भी पान अति प्रिय है और पान का पहला बीज भगवान शिव और माता पार्वती ने हिमालय के पहाड़ पर लगाया था. जिस वजह से पान के पत्ते को पवित्र के रूप में देखा जाता है. इसे हर पूजा में देवताओं पर अर्पित किया जाता है.