नई दिल्ली:30 जनवरी का दिन विश्व कुष्ठ रोग दिवस के रूप में मनाया जाता है. रुई कंट्रोल कुष्ठ रोग, जिसे हैनसेन रोग के नाम से भी जाना जाता है. माइकोबैक्टीरियम लेप्रोस्कोपी के कारण होने वाला एक दीर्घकालिक संक्रामक रोग है. भारत में कुष्ठ रोग बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, यूपी, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और एमपी राज्यों में स्थानिक है.
दिल्ली के मैक्स अस्पताल वैशाली में त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सौम्या सचदेवा का कहना है कि यह रोग त्वचा, परिधीय तंत्रिकाओं और आंखों को सबसे अधिक प्रभावित करता है. कुष्ठ रोग बचपन से लेकर बुढ़ापे तक सभी उम्र के लोगों में होता है. कुष्ठ रोग का इलाज संभव है और प्रारंभिक अवस्था में उपचार से विकलांगता को रोका जा सकता है. कुष्ठ रोग अनुपचारित मामलों के साथ निकट और लगातार संपर्क के दौरान नाक और मुंह से बूंदों के माध्यम से फैलता है.
कुष्ठ रोग के लक्ष्ण एक वर्ष के भीतर में दिख सकते हैं, लेकिन उत्पन्न होने में 20 साल या उससे भी अधिक का समय लग सकता है. यह रोग आमतौर पर त्वचा पर घाव और परिधीय तंत्रिका भागीदारी के माध्यम से प्रकट होता है. विश्व कुष्ठ रोग दिवस मनाने की शुरुआत वर्ष 1954 में की गई थी. इस बार की कुष्ठ रोग दिवस की थीम बीट लेप्रोसी रखी गई है.
कुष्ठ रोग का निदान निम्नलिखित प्रमुख संकेतों में से कम से कम एक का पता लगाकर किया जाता है:
(1) पीली (हाइपोपिगमेंटेड) या लाल त्वचा के पैच में संवेदना का निश्चित नुकसान
(2) परिधीय तंत्रिका का मोटा या बड़ा होना, संवेदना की हानि औरा उस तंत्रिका द्वारा आपूर्ति की गई मांसपेशियों की कमजोरी के साथ
(3) स्लिट-स्किन स्मीयर में एसिड-फास्ट बेसिली की उपस्थिति त्वचा के घाव में आम तौर पर आसपास की सामान्य त्वचा की तुलना में एक अलग रंग का दिखता है