लातेहार: सरकार भले ही आदिम जनजातियों के नाम पर तमाम तरह की योजनाएं चलाती हो. लेकिन सच्चाई यह है कि सरकारी व्यवस्था की मनमानी के कारण आदिम जनजातियां अपने संवैधानिक हक और अधिकार से वंचित हैं. इसकी बानगी लातेहार के गारू प्रखंड में देखने मिली है. जहां के हेनार गांव का रहने वाला आदिम जनजाति युवक सुनील बृजिया सरकारी व्यवस्था की मनमानी का दंश झेल रहा है.
सुनील ब्रिजिया ने बताया कि उनके पिता रामदास बृजिया सरकारी शिक्षक थे. वर्ष 2007 में उनकी मृत्यु हो गई थी. सरकारी प्रावधान के तहत अनुकंपा के आधार पर उन्हें सरकारी नौकरी दी जानी थी. क्योंकि वे अपने माता-पिता के इकलौते संतान हैं.
उन्होंने बताया कि वे आठवीं पास थे. इसके कारण जिला स्तर पर आयोजित स्थापना समिति की बैठक में उनका चयन चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी के रूप में हुआ. जिला स्तर पर नियुक्ति का आदेश भी पारित हो गया, लेकिन सरकारी अधिकारियों की मनमानी के कारण अलग-अलग कारण बताकर उनकी नियुक्ति एक साल तक लंबित रखी गई.
उसके बाद वर्ष 2011 में सरकार का एक नया प्रावधान आया, जिसके अनुसार सरकारी नौकरी के लिए मैट्रिक पास होना जरूरी था. इस प्रावधान को मुद्दा बनाकर सरकारी क्लर्क ने फिर से अपनी मनमानी शुरू कर दी और उनकी नियुक्ति पर रोक लगा दी.
मैट्रिक पास होने के बाद भी नहीं मिली नौकरी
सुनील बृजिया ने बताया कि सरकारी सिस्टम की मनमानी से परेशान होकर उन्होंने अपनी पढ़ाई आगे बढ़ाई और मैट्रिक पास किया. वहीं सुनील की पत्नी हीरामणि देवी ने बताया कि मैट्रिक पास करने के बाद सुनील को नौकरी नहीं मिली, बिना रिश्वत लिए कोई उसकी फाइल आगे बढ़ाने को तैयार नहीं था. उनसे नौकरी के नाम पर पैसे भी लिए गए, लेकिन नौकरी नहीं दी गई.
मां की पेंशन में भी विभागीय लापरवाही